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Albela Khatri

शान्ति मुस्कुराती हुई चलती है



अगर तुम घर में शान्ति चाहते हो,

तो तुम्हें वह करना चाहिए जो गृहिणी चाहती है


-डेनिश कहावत



मौन के वृक्ष पार शान्ति का फल उगता है


-अरबी कहावत



आनन्द उछलता - कूदता जाता है ;

शान्ति मुस्कुराती हुई चलती है


-हरिभाऊ उपाध्याय














दादा कोंडके और अलबेला खत्री फ़िल्म येऊ का घरात ?

के हिन्दी संस्करण " चिट्ठी आई है " की ऑडियो रिकोर्डिंग

के अवसर पर मुम्बई के एम्पायर स्टूडियो में

4 comments:

अनामिका की सदायें ...... July 18, 2010 at 8:46 AM  

बिलकुल सही बात.

ब्लॉ.ललित शर्मा July 18, 2010 at 9:21 AM  

वाह वाह वाह जी
आज सुबह दादा कोंड़के जी मिलवा दिया,
अंधेरी रात में,दिया तेरे हाथ में।

कुछ नाम भूल रहा हूँ।
क्या फ़िल्मे बनाई इन्होने।

आपका आभार

राज भाटिय़ा July 18, 2010 at 3:03 PM  

यह शांति क्या साली है, जिसे पाने के लिये बीबी की गुलामी करनी पडे :) अजी हमे नही चाहिये शांति...हम ठहरे शरीफ़ आदमी, बीबी के भगत

dev July 31, 2010 at 1:32 PM  

अपनी इच्छाओं को कम कर दो, “शांति” अपमे आप मिलने लगेगी ,कही एक दिन ऐसा ना हो कि गृहिणी की इच्छाओं को पूरा करते करते तुम हमेशा के लिए “शांत” हो जाओ !

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