पानी में अगर सिवार हो तो
मनुष्य उसमे अपना प्रतिबिम्ब नहीं देख सकता .
इसी प्रकार जिसका चित्त आलस्य से पूर्ण होता है,
वह अपना ही हित नहीं समझ सकता,
दूसरों का तो क्या समझेगा .
- महात्मा बुद्ध
पाप के लिए प्रायश्चित करना तो साधारण है
लेकिन आलस्य के लिए प्रायश्चित करना असाधारण है
- जून्नुन
www.albelakhatri.com
2 comments:
क्या कहने महाराज ! बहुत खूब !
great..........
Post a Comment