मैं बहुत कम रोता हूँ...........
रोने के मामले में बहुत दरिद्र हूँ.........
लोग ही नहीं, घर वाले भी मुझे पत्थरदिल कहते हैं, परन्तु आज मैं
बहुत रोया..... रुला रुला दिया एक माँ के दुःख ने ......उस माँ के दुःख
ने जिस के बच्चे को सिर्फ़ इसलिए प्राण गंवाने पड़े क्योंकि शहर में
प्रधानमन्त्री साहब आये हुए थे ।
जैसा कि मैंने एक चैनल पर देखा - कानपुर शहर में अमन नाम का
एक बालक लोहे का गेट गिरने से उसकी चपेट में आकर, बुरी तरह
घायल हो गया । ज़िन्दगी और मौत के बीच झूलते उस बच्चे को माँ-
बाप तुरन्त अस्पताल लेजाने लगे लेकिन रास्ते में पुलिस वालों ने
उन्हें इसलिए रोक दिया क्योंकि वहां से प्रधानमन्त्री का काफ़िला
गुजरने वाला था । बच्चे के पिता ने बहुत विनय की, घायल बालक
भी दिखाया, परन्तु पुलिस ने उन्हें जाने न दिया जबकि उस समय
प्रधान मन्त्री उस जगह से कमसे कम आधा किलोमीटर दूर थे.........
इस बाधा में फंसा बच्चा अस्पताल पहुँचने में कम से कम आधा
घंटा लेट हो गया और जब पहुंचा तो डाक्टर ने सिर्फ़ इतना कहा -
"काश ! आप इस बालक को पाँच मिनट पहले ले आते........अब तो
बच्चा इस दुनिया में नहीं रहा । "
ओह !
हे मेरे भगवान् !
बिजली टूट पड़ी ................माँ- बाप पर
मैं पूछना चाहता हूँ कानपुर की पुलिस से कि यदि वह घायल बालक
एक साधारण नागरिक के बजाय आपके शहर के किसी बड़े पुलिस
अधिकारी, किसी प्रशासनिक अधिकारी या किसी राजनैतिक शख्स
का बेटा होता तो भी क्या आप उसे यों ही रोक देते..............?
आपके फ़रिश्ते भी नहीं रोक सकते थे, लेकिन इस मामले में बच्चा
चूँकि साधारण नागरिक का था .............सो आपका न तो मन पसीजा
और न ही आपको कोई डर था ।
वैसे दुर्भाग्यपूर्ण संयोग ये है कि जब से मनमोहनसिंह जी प्रधानमन्त्री
बने हैं, ऐसी बहुत सी मासूम जानें इसी कारण गई हैं । शहर बदल जाते
हैं, मरने वालों के नाम बदल जाते हैं ..लेकिन व्यवस्था नहीं बदलती ।
कहिये प्रधानमन्त्री जी ! और कितनों की जान लेनी बाकी है अभी ?
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hindi hasyakavi sammelan in mangalore by MRPL
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शानदार, शानदार, शानदार …………………
शानदार और जानदार रहा मंगलूर रिफ़ाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड द्वारा
राजभाषा विभाग के तत्वाधान में डॉ बी आर पाल द्वारा आ...
10 years ago
7 comments:
दुखद
अफ़सोस जनक
दादा अत्यंत भावुक औरों को हँसी बाँटने वाले चुपचाप ग़म पीने वाले शख़्शियत के मालिक हैं आप एक बच्चे के लिए रो-रो के हलकान हो रहे हैं वहाँ मुर्दों के ढेर पर सियासत हो रही है.
दादा दुष्यन्त कुमार की याद दिला दिए-
ज़रा सा तौर तरीकों में हेर फरे करो,
तुम्हारे हाथ में कालर हो आस्तीन नहीं.
कालर पकड़ो साहब ये नामी गिरामी रोने धोने से नहीं मानने वाले.
आज की व्यवस्था में लोग तो भाग्य भरोसे जी रहे हैं !!
शानदार पोस्ट
बेहद दुखद !
जबसे से ये वाले प्रधानमंत्री जी आए हैं तबसे पूरा देश मरे ही जा रहा है. महंगाई की मार से. विदेशी ख़ासकर अमेरिकी दबाव की मार से, बेकारी की मार से........ अरे कौन-कौन सी मार गिनाएं यार...!
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