परम पूज्य,
प्रातः स्मरणीय,
अनुकरणीय,
वगैरह वगैरह महात्मा गांधी जी !
प्रणाम ।
यों तो लोगों की देखा देखी और लोकलाज वश मैं भी आपका बहुत
सम्मान करता हूँ । आपको राष्ट्रपिता मानता हूँ , साबरमती का सन्त
कहने में भी आपत्ति व्यक्त नहीं करता । और तो और गांधी चौक पर
खड़े आपके पुतले पर कबूतर्स और कौएज़ जब सामूहिक रूप से
दो नम्बर करते हैं तो मुझे शर्म भी आती है, लेकिन इसका मतलब
ये नहीं कि मैं आपका अन्धभक्त हूँ...............
आपकी ये बात मुझे गले नहीं उतर रही है :
" आज हम जिसे विवाह कहते हैं वह विवाह नहीं,
उसका आडम्बर है । जिसे हम भोग कहते हैं वह भ्रष्टाचार है "
हम तो विवाह को एक पवित्र और जनम जनम का सम्बन्ध मान कर
पता नहीं क्या क्या झेल रहे हैं
और आप हमारे साथ ऐसा खेल खेल रहे हैं
कि विवाह को विवाह नहीं, आडम्बर बता रहे हैं
बापू ! ये तो आप ज़ुल्म ढा रहे हैं
और वो कौन सा भोग है जिसे आप भ्रष्टाचार बता रहे हैं ?
मैं समझ नहीं पाया अभी तक
लेकिन एक बात तय है कि अगर मैं कभी मर गया
हालाँकि लगता नहीं कि मैं कभी मरूँगा -
क्योंकि मरते वो हैं जो जीवित होते हैं
यहाँ तो पैदाईशी " साधो ये मुर्दों का गाँव " है
लेकिन बाइदेवे यदि मर गया तो आपसे पूछूँगा ज़रूर कि बापू !
आपने ऐसा क्यों कहा ?
जवाब तैयार रखना
राम राम
-अलबेला खत्री
www.albelakhatri.com
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शानदार, शानदार, शानदार …………………
शानदार और जानदार रहा मंगलूर रिफ़ाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड द्वारा
राजभाषा विभाग के तत्वाधान में डॉ बी आर पाल द्वारा आ...
10 years ago
4 comments:
ओह तो बापू को भी नही बख्शेंगे आप? शुभकामनायें
इस तार्किक पोस्ट के लिए आभार!
बकरी पाल लो जी:)
kavi to kavi hai. jab bechaini hoti to kuchh kahne ko dil karta hai.kavi ko apni bechaini kahni hi chahiye tabhi sakoon milta hiai.
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