छुप छुप के नहीं मैंने सरे-आम लिखा है
कालेज की दीवारों पे तेरा नाम लिखा है
मेरी ये ज़िन्दगी है एक वीणा की तरह
जिसके सभी तारों पे तेरा नाम लिखा है
ख़त भी लिखा तो ऐसा कि कुछ भी नहीं लिखा
सलाम ही सलाम ही सलाम लिखा है
न जाने कितनी रातों का लोहू भरा गया
तब जा के इस कलम ने इक कलाम लिखा है
पत्थर की बात छोड़िये कलयुग में 'अलबेला'
नेता भी तर गया है जिस पे राम लिखा है
कालेज की दीवारों पे तेरा नाम लिखा है
मेरी ये ज़िन्दगी है एक वीणा की तरह
जिसके सभी तारों पे तेरा नाम लिखा है
ख़त भी लिखा तो ऐसा कि कुछ भी नहीं लिखा
सलाम ही सलाम ही सलाम लिखा है
न जाने कितनी रातों का लोहू भरा गया
तब जा के इस कलम ने इक कलाम लिखा है
पत्थर की बात छोड़िये कलयुग में 'अलबेला'
नेता भी तर गया है जिस पे राम लिखा है
3 comments:
अच्छी लगी आपकी यह रचना शुक्रिया
aapki is rachna me prem ke ras bhaavpoorn dhang se ubhaare gaye hai ..
ख़त भी लिखा तो ऐसा कि कुछ भी नहीं लिखा
सलाम ही सलाम ही सलाम लिखा है
kya khoob bhai mere ..waah waaah ..
padhkar dil jhoom gaya sir ji
mera salaaam kabul karenn
aapka
vijay
मेरी ये ज़िन्दगी है एक वीणा की तरह
जिसके सभी तारों पे तेरा नाम लिखा है
-क्या बात है!!
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