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Albela Khatri

ढूंढते रह जाओगे...

लूटो खाओ मौज करो आज़ादी है
कभी किसी से नहीं डरो आज़ादी है
मौत बहुत सस्ती कर दी नेताओं ने
जी चाहे तो रोज़ मरो आज़ादी है

कल रात दो बजे मैंने एक लोकल नेता का चरित्र देखा और देख कर ख़ूब एन्जॉय किया। अब आप भी करो। हुआ यूं कि नशे में धुत्त वह नेता लड़खड़ाता हुआ सड़क पर चल रहा था। फुटपाथ पर एक बुज़ुर्ग कुत्ता सोया हुआ था, नेता को पता नहीं क्या सूझी, उस सोये हुए कुत्ते पर ज़ोर से एक लात चला दी, बेचारा नींद का मारा कुत्ता रोता हुआ वहां से भागा । ये देख कर मुझे गुस्सा तो बहुत आया लेकिन मैंने नेता से कुछ नहीं कहा, पीड़ित कुत्ते के पास गया और प्यार से पूछा कि उस नेता ने अकारण ही तुझे लात मार दी, क्या तुझे गुस्सा नहीं आया, क्या तेरा ख़ून नहीं खौला, क्या तेरे मन में उसे काटने के भाव नहीं जगे? वो बोला - जगे भाई साहब जगे, बहुत जगे, पर क्या करूं, वो नेता है, नेताओं के मुंह कौन लगे?

गाड़ी फिएट हो या फोर्ड,
चलाने के लिए ज़रूरत तेल की होगी
और चान्द पर बस्ती पहले रूस बसाये या अमेरिका
पर पहली मॉटेल वहां किसी पटेल की होगी।
ये दो पंक्तियां मैंने पहली बार सन 1996 के अगस्त महीने की 27 तारीख को अमेरिका के नॉक्सविल (टेनिसी) में जब सुनाईं तो तालियों की .जबर्दस्त गड़गड़ाहट से वह समूचा मंदिर गूंज उठा जहां हमारा रंगारंग कार्यक्रम चल रहा था। इन पंक्तियों की भयंकर 'वन्स मोर' हुई, तो मैंने फिर सुनाईं। फिर भी वन्स मोर हुई और तब तक होती रही जब तक कि लोग सुन-सुन के और मैं सुना-सुना के धाप नहीं गया। आगे की रॉ में बैठे एक काकाजी उठ के मंच पर आए और जेब में से 100 डॉलर का एक नोट निकाल कर मुझे भेंट किया। मैं बड़ा प्रसन्न हुआ... मैं क्या कोई भी प्रसन्न होता, तुम्हें मिलता तो तुम भी प्रसन्न होते... लेकिन मैं रातभर सोचता रहा कि आखिर ऐसी क्या बात थी इन पंक्तियों में कि लोगों ने इतना भारी प्रतिसाद दिया। जबकि दर्शकों में पटेल लोग बहुत कम थे.. ज्य़ादातर बंगाली, मराठी व दक्षिण भारतीय थे.. कुछ एक पाकिस्तानी भी थे। और मज़े की बात ये थी कि ज्य़ादातर लोग हिन्दी को पूरी तरह समझते भी नहीं थे। मैंने बहुत चिन्तन किया लेकिन समझ नहीं पाया।
अगले दिन नैशविल (टेनिसी) के डी.वी. पटेल ने बताया कि जो 40-50 लोग हिन्दी समझने वाले या गुजराती मूल के लोग थे उन्होंने तो इसलिए वन्स मोर किया क्यूंकि पूरे नॉर्थ अमेरिका में मॉटेल का सारा कारोबार पटेलों के हाथ में है और वे इस क्षेत्र में वाक़ई छाये हुए हैं जबकि अहिन्दी भाषियों ने सि़र्फ इसलिए पसन्द किया क्यूंकि उसमें पटेल का नाम था और वहां के लोग पटेल से सीधा अर्थ सरदार वल्लभ भाई पटेल लगाते हैं। अब चूंकि भारतीय ही नहीं, ग़ैर भारतीय भी सरदार पटेल की स्मृति को अत्यधिक सम्मान देते हैं इसलिए लोगों ने इन पंक्तियों को इतना सराहा। उनकी समझ में और कुछ आया या नहीं, लेकिन पटेल ज़रूर समझ में आ गया था। ये सुनके मेरे रोंगटे खड़े हो गए.... इतना सम्मान? भारत के नेताओं का इतना सम्मान? काश... कि ऐसे नेता आज भी होते... लेकिन आज तो नेता ऐसे मिल रहे हैं कि
सर में भेजा नहीं है फिर भी सोच रहे हैं
खुजली ख़ुद को है, पब्लिक को नोच रहे हैं
अब क्या बतलाऊं हाल मैं इन नेताओं का
मैल जमी है चेहरे पर और दर्पण पोंछ रहे हैं
पुराने नेताओं और आज के नेताओं में ज़मीन-आस्मां का फ़र्क है। पहले नेता से ऐसे बात होती थीः नेताजी कहां से आ रहे हो - दिल्ली से आ रहा हूं, कहां जा रहे हो- अपने चुनाव क्षेत्र में जा रहा हूं, यहां कैसे-कलेक्टर से थोड़ा काम था गांव का, वही करवा रहा हूं। जबकि आज के नेता से ऐसी बात होती है : नेताजी कहां से आ रहे हो-कांग्रेस से आ रहा हूं, कहां जा रहे हो-भाजपा में जा रहा हूं, यहां कैसे - बसपा वालों का भी कॉल आने वाला है, उसी के लिए खड़ा हूं।
इन ख़ुदगर्ज़ और अवसरवादी नेताओं की एक लम्बी जमात है इसीलिए इतने खराब हालात हैं। काश.. ये नेता सुधर जाएं तो भारत के भी दिन फिर जाएं..। पर अपनी तो तक़दीर ही खराब है। अपन मांगते कुछ हैं और मिलता कुछ है। राम को मांगा तो राम नहीं मिले सुखराम मिल गया, राणा प्रताप मांगा तो विश्र्वनाथ प्रताप मिल गया, झांसी की रानी मांगी तो रानी मुखर्जी मिली और सरदार पटेल को चाहा तो सरदार मनमोहनजी मिल गए। पता नहीं कब कोई ढंग की सरकार आएगी...और देश को अच्छे से चलाएगी। लेकिन अनुभव बताता है कि अब ईमानदार नेता मिलने बड़े मुश्किल हैं। जैसे धतूरे में इत्र नहीं होता वैसे ही आजकल नेता में चरित्र नहीं होता। कवि हुक्का बिजनौरी ने जो बात पुलिस के लिए कही, वही मैं नेता के लिए कहता हूं-
नेता और ईमान?
क्या बात करते हो श्रीमान?
सरदारों के मोहल्ले में नाई की दुकान?
ढूं....ढ़ते रह जाओगे

5 comments:

जयंत - समर शेष May 11, 2009 at 11:26 AM  

"लूटो खाओ मौज करो आज़ादी है
कभी किसी से नहीं डरो आज़ादी है
मौत बहुत सस्ती कर दी नेताओं ने
जी चाहे तो रोज़ मरो आज़ादी है"

क्या बात है....
आप हैं ही अलबेले... :))

कितनी गहरी बात
कितने सरल तरीके से कह दी!!!

~जयंत
(मेरे ब्लॉग पर आने और अनुसरण-कर्ता बनकर मेरा मान बढाने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद...)

जयंत - समर शेष May 11, 2009 at 11:27 AM  

क्या बात है....
आप हैं ही अलबेले... :))

कितनी गहरी बात
कितने सरल तरीके से कह दी!!!

~जयंत
(मेरे ब्लॉग पर आने और अनुसरण-कर्ता बनकर मेरा मान बढाने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद...)

Unknown May 11, 2009 at 12:28 PM  

aapka bahut bahut dhanyavaad jayantji,
aate rahiyega mere gareeb blog par, bhavishya me aur zyada dhardar va bareek kaam karne ka prayas karoonga,ye mera vada hai
HARDIK AABHAAR
-albela khatri

Neha May 11, 2009 at 2:14 PM  

apko kai baar tv par dekha tha...mujhe bahut khusi hai ki aap mere blog par aaye..dhanyawaad.apki rachna acchi hai.

Unknown May 11, 2009 at 3:36 PM  

realy i salute your thinking and power of writing
gajab ka hai......

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