मान अभिमान तज,
तप और दान तज,
तज चाहे गीता और तज दे क़ुरान को
नौहा और नाला तज,
गिरजा शिवाला तज,
तज चाहे तीज चौथ नौमी रमज़ान को
काशी काबा ग्रन्थ तज,
चाहे सारे पन्थ तज,
तज दे तू भजनों की लम्बी लम्बी तान को
ईश की आराधना का
मन यदि करता है
प्रेम कर... प्रेम कर .....हर इन्सान को
तप और दान तज,
तज चाहे गीता और तज दे क़ुरान को
नौहा और नाला तज,
गिरजा शिवाला तज,
तज चाहे तीज चौथ नौमी रमज़ान को
काशी काबा ग्रन्थ तज,
चाहे सारे पन्थ तज,
तज दे तू भजनों की लम्बी लम्बी तान को
ईश की आराधना का
मन यदि करता है
प्रेम कर... प्रेम कर .....हर इन्सान को
2 comments:
"प्रेम कर... प्रेम कर .....हर इन्सान को"
वाह वाह वाह...खत्री साहेब...वाह...बहुत खूब लिखा है आपने...बहुत बहुत बधाई...
नीरज
बहुत ही सुंदर लगी आप की यह सच्ची ओर प्यारी सी कविता, सच मे अगर हम यह सब पांखड छोड कर सिर्फ़ भगवान का कहना माने उस के बन्दो से प्यार करे तो कितनी शांति हो इस संसार मै.
धन्यवाद
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