श्रीमान लालकृष्ण अडवाणीजी,
सादर वन्दे।
गत दिनों बाबा भीमराव अम्बेडकर जयंती के अवसर पर हमारी संसद में जो तमाशा हुआ उसे पूरे देश ने देखा और देख कर शर्मिंदा भी हुआ। जिस प्रकार अखबार में छपे फोटो में आप दोनों के सिर झुके हुए थे उसी प्रकार हम सब के भी झुक गए थे। लेकिन आप इस घटना को दिल पर मत लेना क्योंकि ये अपमान केवल आपका नहीं, बल्कि समूचे भारतीय परिवेश का है, राम-बुद्ध और महावीर के देश का है जिसमें पारस्परिक वैमनस्य और घृणा के लिए कोई जगह नहीं। हालांकि 'गुस्सा और देख लेने का भाव' तो आप में भी भरा था लेकिन आपने उसे जाहिर नहीं होने दिया। ये नेता में अभिनेताओं वाले विशेष गुण हैं जो सब में नहीं पाए जाते। आप में हैं, मुबारक हो।
आपने तो अपना हाथ भी बढ़ाया और वाणी से भी हाय हैलो किया लेकिन उन्होंने मुंह फेर कर अपने भीतर भरी हुई कड़वाहट दिखा दी जिससे पूरा माहौल खराब हो गया था। हो सकता है इसके लिए बाबा भीमरावजी और बापू गांधीजी ने उन्हें डांटा भी हो, लेकिन जहां तक मेरा ख्याल है, कुछ तो गलती आपकी भी थी। आखिर आपने ये कैसे सोच लिया कि जिस व्यक्ति की आप सरेआम जनसभाओं में धुर्रियां उड़ा रहे हैं, उसे एक कमज़ोर और नाकारा प्रधानमंत्री बता रहे हैं तथा उसकी कुर्सी के लिए सबसे बड़ा खतरा बन कर खड़े हुए हैं, वह रूबरू मिलने पर आपको नमस्ते कहेगा या हाथ मिलाएगा अथवा गले मिल कर अभिनंदन करेगा? छोड़ो जी, ऐसी विनम्रता गई तेल लेने। ऐसे विनम्र तो शास्त्रीजी थे। ये शास्त्रीजी नहीं, अर्थशास्त्रीजी हैं। अपना एक एक कदम बाज़ार का रुख देखकर चलते हैं और सबसे बड़ी बात ये है कि बाज़ार की तरह स्वयं भी अंदर से टूटे हुए हैं। अब एक टूटे फूटे और मंदी के मारे आदमी से स्वस्थ व्यक्ति जैसे सद्व्यवहार और शिष्टाचार की अपेक्षा रखना हो सकता है आचार संहिता के खिलाफ़ न हो, लेकिन वर्तमान राजनीतिक मूल्यों (?) के खिलाफ़ तो है ही। आपको उनसे ऐसी उम्मीद नहीं करनी चाहिए थी।
खैर.. जो हो गया, उसपे मिट्टी डालो और आगे बढ़ो, कम आन, बी प्रोफेशनल, डोन्ट बी इमोशनल, क्योंकि ये चुनाव का समय है इसलिए पूरे तनाव का समय है। अब भावुकता और मित्रता के दिन लद गए। वो तो त्रेता था जिसमें राम ने रावण को मारने के पहले उसकी विद्वता के लिए प्रणाम किया था, वो तो द्वापर था जिसमें अर्जुन जैसे धनुर्धर, भीष्म और द्रोण पर आक्रमण के पहले उन्हें प्रणाम करके उन्हीं से आशीर्वाद प्राप्त किया करते थे। आज तो राजनीति इतनी पतित और गर्हित हो गई है कि न कोई किसी का लिहाज करता है न ही किसी को शर्म आती है। क्योंकि चुनाव-चुनाव नहीं दंगल हो गया है। वैसे वे भी क्या करते, उनकी भी तो मजबूरी है कि वे अपनी मर्जी से कुछ नहीं कर सकते। अरे भाई, ये कुर्सी उन्हें आपने नहीं दी। जिस महिला के कारण वे पीएम पद का मजा लूट रहे हैं, उसी की प्यारी बिटिया पर जब आपके सिपहसालार नरेन्द्र मोदी शब्दों के पैने बाण चलाते हैं और आप स्वयं राहुल बाबा को बच्चा कहकर चिढाते हैं तो मैडम बर्दाश्त कैसे करेंगी और जब वे बर्दाश्त नहीं करेंगी तो उनके लोग भी कैसे करेंगे। इसलिए कुछ नहीं पड़ा इन बातों में, चुनाव लड़िए, जी भर के लडि़ए और जो थोड़ा बहुत भाईचारा व प्यार बचा है उसे भी छोड़िये ताकि दुनिया को पता तो चले कि भारत में आम चुनाव हो रहे हैं।
सादर वन्दे।
गत दिनों बाबा भीमराव अम्बेडकर जयंती के अवसर पर हमारी संसद में जो तमाशा हुआ उसे पूरे देश ने देखा और देख कर शर्मिंदा भी हुआ। जिस प्रकार अखबार में छपे फोटो में आप दोनों के सिर झुके हुए थे उसी प्रकार हम सब के भी झुक गए थे। लेकिन आप इस घटना को दिल पर मत लेना क्योंकि ये अपमान केवल आपका नहीं, बल्कि समूचे भारतीय परिवेश का है, राम-बुद्ध और महावीर के देश का है जिसमें पारस्परिक वैमनस्य और घृणा के लिए कोई जगह नहीं। हालांकि 'गुस्सा और देख लेने का भाव' तो आप में भी भरा था लेकिन आपने उसे जाहिर नहीं होने दिया। ये नेता में अभिनेताओं वाले विशेष गुण हैं जो सब में नहीं पाए जाते। आप में हैं, मुबारक हो।
आपने तो अपना हाथ भी बढ़ाया और वाणी से भी हाय हैलो किया लेकिन उन्होंने मुंह फेर कर अपने भीतर भरी हुई कड़वाहट दिखा दी जिससे पूरा माहौल खराब हो गया था। हो सकता है इसके लिए बाबा भीमरावजी और बापू गांधीजी ने उन्हें डांटा भी हो, लेकिन जहां तक मेरा ख्याल है, कुछ तो गलती आपकी भी थी। आखिर आपने ये कैसे सोच लिया कि जिस व्यक्ति की आप सरेआम जनसभाओं में धुर्रियां उड़ा रहे हैं, उसे एक कमज़ोर और नाकारा प्रधानमंत्री बता रहे हैं तथा उसकी कुर्सी के लिए सबसे बड़ा खतरा बन कर खड़े हुए हैं, वह रूबरू मिलने पर आपको नमस्ते कहेगा या हाथ मिलाएगा अथवा गले मिल कर अभिनंदन करेगा? छोड़ो जी, ऐसी विनम्रता गई तेल लेने। ऐसे विनम्र तो शास्त्रीजी थे। ये शास्त्रीजी नहीं, अर्थशास्त्रीजी हैं। अपना एक एक कदम बाज़ार का रुख देखकर चलते हैं और सबसे बड़ी बात ये है कि बाज़ार की तरह स्वयं भी अंदर से टूटे हुए हैं। अब एक टूटे फूटे और मंदी के मारे आदमी से स्वस्थ व्यक्ति जैसे सद्व्यवहार और शिष्टाचार की अपेक्षा रखना हो सकता है आचार संहिता के खिलाफ़ न हो, लेकिन वर्तमान राजनीतिक मूल्यों (?) के खिलाफ़ तो है ही। आपको उनसे ऐसी उम्मीद नहीं करनी चाहिए थी।
खैर.. जो हो गया, उसपे मिट्टी डालो और आगे बढ़ो, कम आन, बी प्रोफेशनल, डोन्ट बी इमोशनल, क्योंकि ये चुनाव का समय है इसलिए पूरे तनाव का समय है। अब भावुकता और मित्रता के दिन लद गए। वो तो त्रेता था जिसमें राम ने रावण को मारने के पहले उसकी विद्वता के लिए प्रणाम किया था, वो तो द्वापर था जिसमें अर्जुन जैसे धनुर्धर, भीष्म और द्रोण पर आक्रमण के पहले उन्हें प्रणाम करके उन्हीं से आशीर्वाद प्राप्त किया करते थे। आज तो राजनीति इतनी पतित और गर्हित हो गई है कि न कोई किसी का लिहाज करता है न ही किसी को शर्म आती है। क्योंकि चुनाव-चुनाव नहीं दंगल हो गया है। वैसे वे भी क्या करते, उनकी भी तो मजबूरी है कि वे अपनी मर्जी से कुछ नहीं कर सकते। अरे भाई, ये कुर्सी उन्हें आपने नहीं दी। जिस महिला के कारण वे पीएम पद का मजा लूट रहे हैं, उसी की प्यारी बिटिया पर जब आपके सिपहसालार नरेन्द्र मोदी शब्दों के पैने बाण चलाते हैं और आप स्वयं राहुल बाबा को बच्चा कहकर चिढाते हैं तो मैडम बर्दाश्त कैसे करेंगी और जब वे बर्दाश्त नहीं करेंगी तो उनके लोग भी कैसे करेंगे। इसलिए कुछ नहीं पड़ा इन बातों में, चुनाव लड़िए, जी भर के लडि़ए और जो थोड़ा बहुत भाईचारा व प्यार बचा है उसे भी छोड़िये ताकि दुनिया को पता तो चले कि भारत में आम चुनाव हो रहे हैं।
2 comments:
कम आन, बी प्रोफेशनल, डोन्ट बी इमोशनल..यही सलाह है इनको!! :)
Moti Moti Chamadi Chaahiye Ji!!!
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