चील की नज़र हमेशा मांस पर रहती है। यह एक पुरानी कहावत है लेकिन आजकल चूंकि चीलें देखने को नहीं मिलतीं इसलिए मैंने इसका नवीन संस्करण बना दिया है कि नेता की नज़र हमेशा पैसे पर रहती है। जिस प्रकार चीलें आकाश में बहुत ऊंचाई पर उड़ते हुए भी ज़मीन पर पड़ा मांस का टुकड़ा देख लेती हैं और झपट्टा मार कर ले उड़ती हैं इसी प्रकार हमारे भारत के नेताओं ने भी यहीं से स्विस बैंकों में पड़ा रुपया देख लिया है।
कमाल की नज़र है हमारे नेताओं के पास। हज़ारों मील दूर पड़ा कालाधन भी देख लेते हैं। ये अलग बात है कि इन्हें अपने देश में पड़ा माल दिखाई नहीं देता। नामांकन पत्र भरते समय जब बड़े-बड़े महारथी नेता अपनी सम्पत्ति और रुपया पैसा का ब्यौरा दे रहे थे तो पूरे देश के साथ-साथ मैं भी हैरान था, हैरान क्या परेशान था कि ये क्या? इनके सारे रुपए पैसे कहां गए? जिनके पास हज़ारों करोड़ होना चाहिए, वे एक-दो करोड़ पर कैसे आ गए? क्या भारत को चलाने वाले दिग्गज नेता इतनी साधारण सी वेल्थ के स्वामी हैं? मेरा मन कहता है कि रुपया तो है और स्विस बैंकों से भी कहीं ज्यादा रुपया हमारे देश में है लेकिन काला है ना, इसलिए दिखाई नहीं देता। उजले वस्त्रधारी हमारे कर्णधार इसमें झांकना ही नहीं चाहते वे जानते हैं कि इस अंधेरे में रखा कालाधन किसी और का नहीं, अपना ही है या किसी अपने वाले का है। इसलिए निकल पड़े मजबूत व पक्के इरादे के साथ स्विस बैंक की ओर। इसके दो फायदे हैं एक तो अपना धन सुरक्षित रहेगा, दूसरा जनता भी जय-जयकार करेगी कि देखो ये नेता कितने महान हैं जो विदेशों में पड़ा काला धन देश में वापस लाने की बात करते हैं। मैंने एक छुटभैये नेता से पूछा, क्या वाकई आप स्विस बैंकों में पड़ा काला धन वापस भारत में लाएंगे। वो बोले, क्यों नहीं लाएंगे। मैंने पूछा, इसकी क्या गारंटी है, वो बोले, हमारा बचन ही गारंटी है। हमने जो कह दिया सो कह दिया, जो कह दिया उसे पूरा करेंगे। मैंने कहा, कहा तो आपने पहले भी बहुत कुछ है लेकिन पूरा कुछ नहीं किया। एक बार आपने मंदिर बनाने का वादा किया था। वादा ही नहीं, दावा किया था कि हम सत्ता में आ गए भव्य मंदिर का निमार्ण करेंगे लेकिन आपने नहीं किया उसके बाद आपने वादा किया था कि हम सत्ता में आ गए तो मुंबई बम धमाकों के जिम्मेदार दाऊद इब्राहिम और उसके साथियों को भारत लेकर आएंगे ओर उन्हें मृत्यु दण्ड देंगे। उसमें भी आप असफल रहे।' मेरी बातें सुनकर उस नेता की त्यौरियां चढ़ गई। मैंने कहा, ' क्रोध मत कीजिए, जनता के लिए कुछ काम कीजिए ताकि जनता आपका भरोसा कर सके और आपको अपना समर्थन दे सके। रही बात स्विस बैंकों से कालाधन लाने की, तो वह आपको पांच साल पहले करनी चाहिए थी ताकि अब तक इस मुद्दे पर पूरा देश एक हो जाता और आपको चुनाव लड़ने का बड़ा मंच बना बनाया मिल जाता। लेकिन यदि वाकई आप देशहित में सोचते हैं तो पहले भारत में छुपा कालाधन निकलवाइए, भ्रष्ट अफसरशाहों व राजनीतिकों के नामी, बेनामी खाते खंगालिए और उन्हें निचोडि़ये, बहुत माल मिलेगा।' उन्होंने मुझे खिसियानी नज़र से देखा तो मैंने ये शेर मारा-
सोने की कैंची लाओ कि मुन्सिफ़ के लब खुलें
क़ातिल ने होंठ सी दिए चांदी के तार से
कमाल की नज़र है हमारे नेताओं के पास। हज़ारों मील दूर पड़ा कालाधन भी देख लेते हैं। ये अलग बात है कि इन्हें अपने देश में पड़ा माल दिखाई नहीं देता। नामांकन पत्र भरते समय जब बड़े-बड़े महारथी नेता अपनी सम्पत्ति और रुपया पैसा का ब्यौरा दे रहे थे तो पूरे देश के साथ-साथ मैं भी हैरान था, हैरान क्या परेशान था कि ये क्या? इनके सारे रुपए पैसे कहां गए? जिनके पास हज़ारों करोड़ होना चाहिए, वे एक-दो करोड़ पर कैसे आ गए? क्या भारत को चलाने वाले दिग्गज नेता इतनी साधारण सी वेल्थ के स्वामी हैं? मेरा मन कहता है कि रुपया तो है और स्विस बैंकों से भी कहीं ज्यादा रुपया हमारे देश में है लेकिन काला है ना, इसलिए दिखाई नहीं देता। उजले वस्त्रधारी हमारे कर्णधार इसमें झांकना ही नहीं चाहते वे जानते हैं कि इस अंधेरे में रखा कालाधन किसी और का नहीं, अपना ही है या किसी अपने वाले का है। इसलिए निकल पड़े मजबूत व पक्के इरादे के साथ स्विस बैंक की ओर। इसके दो फायदे हैं एक तो अपना धन सुरक्षित रहेगा, दूसरा जनता भी जय-जयकार करेगी कि देखो ये नेता कितने महान हैं जो विदेशों में पड़ा काला धन देश में वापस लाने की बात करते हैं। मैंने एक छुटभैये नेता से पूछा, क्या वाकई आप स्विस बैंकों में पड़ा काला धन वापस भारत में लाएंगे। वो बोले, क्यों नहीं लाएंगे। मैंने पूछा, इसकी क्या गारंटी है, वो बोले, हमारा बचन ही गारंटी है। हमने जो कह दिया सो कह दिया, जो कह दिया उसे पूरा करेंगे। मैंने कहा, कहा तो आपने पहले भी बहुत कुछ है लेकिन पूरा कुछ नहीं किया। एक बार आपने मंदिर बनाने का वादा किया था। वादा ही नहीं, दावा किया था कि हम सत्ता में आ गए भव्य मंदिर का निमार्ण करेंगे लेकिन आपने नहीं किया उसके बाद आपने वादा किया था कि हम सत्ता में आ गए तो मुंबई बम धमाकों के जिम्मेदार दाऊद इब्राहिम और उसके साथियों को भारत लेकर आएंगे ओर उन्हें मृत्यु दण्ड देंगे। उसमें भी आप असफल रहे।' मेरी बातें सुनकर उस नेता की त्यौरियां चढ़ गई। मैंने कहा, ' क्रोध मत कीजिए, जनता के लिए कुछ काम कीजिए ताकि जनता आपका भरोसा कर सके और आपको अपना समर्थन दे सके। रही बात स्विस बैंकों से कालाधन लाने की, तो वह आपको पांच साल पहले करनी चाहिए थी ताकि अब तक इस मुद्दे पर पूरा देश एक हो जाता और आपको चुनाव लड़ने का बड़ा मंच बना बनाया मिल जाता। लेकिन यदि वाकई आप देशहित में सोचते हैं तो पहले भारत में छुपा कालाधन निकलवाइए, भ्रष्ट अफसरशाहों व राजनीतिकों के नामी, बेनामी खाते खंगालिए और उन्हें निचोडि़ये, बहुत माल मिलेगा।' उन्होंने मुझे खिसियानी नज़र से देखा तो मैंने ये शेर मारा-
सोने की कैंची लाओ कि मुन्सिफ़ के लब खुलें
क़ातिल ने होंठ सी दिए चांदी के तार से
3 comments:
आपका लेख पढ़ते पढ़ते एक युक्ति सूझी है , क्यों ना देश की पूरी करेंसी बदल जी जाए , गाँधी के चेहरे को थोड़ी और मुस्कान वाला बनाया जाए और रिज़र्व बॅंक द्वारा कह दिया जाए की पुराने नोट वापस लाओ नये नोट ले जाओ , ये काम अकाउंट द्वारा लेनदेन से ही होगा और 1 साल बाद पुराने नोट चलना बंद हो जाएँगे . कैसे ना कैसे , भारत का हर नोट बॅंक तक वापस पहुचेगा और पूरा धन सफेद होज़ायगा .
बस यूँ ही कहते रहिए
धन्यवाद ,
मैने आपकी गुजरात पर लिखी गई कोई कविता देखी थी , कभी समय मिले तो लिखिएगा
मयूर
jab ve baaton se nai theek ho rahe toh jooton ko toh aana hi padega. interesting likha hai aapne
u r a very good actor i recognized ur familiar face
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