Albelakhatri.com

Hindi Hasya kavi Albela Khatri's blog

ताज़ा टिप्पणियां

Albela Khatri

शरद कोकासजी ! चश्मा तो गया, कर लो जो करना है ..

चश्मा शरद कोकास जी का


25 सितम्बर को जब शरद कोकास बी एस पाबला राधिका होटल आए थे तो

भूलवश कोकास जी अपना शानदार चश्मा वहीं भूल गए....... अगले दिन मैंने

देखा लेकिन लौटा नहीं पाया क्योंकि मुझे चारामा के लिए रवाना होना था ...

सो तीन दिन बाद जब मैं भिलाई के वैशाली नगर कवि सम्मेलन में आया तो

अच्छा मौका था लौटाने का क्योंकि उस दिन शरद जी सपरिवार आए थे

कविसम्मेलन में.........लेकिन उस दिन मैं भूल गया...... अगले दिन शरदजी

मुझे अपने घर कोकास भवन ले गए जहाँ आदरणीया भाभीजी भतीजी

सुश्री कोंपल ने केवल अच्छी अच्छी बातें कीं बल्कि अच्छा अच्छा भोजन

भी कराया ........हज़ार रूपये किलो वाली चाय पिलाई और रसमलाई तो वाह !

अभी तक स्वाद बाकी है मुंह में..............


शरद जी का बँगला भी शरदजी की तरह स्मार्ट है..........जैसे शरद जी शानदार

चुस्त और रंगीन लिबास में रहते हैं वैसे ही कोकास भवन भी इस सलीके और

करीने से सजा संवरा है जैसे वहां थोड़ी देर बाद मुगले-आज़म की शूटिंग होने

वाली हो............ आधुनिकता के साथ साथ पारम्परिक सजावट का एक एक

मंजर मन मोह लेता है......... शरदजी की लाइब्रेरी .......बाप रे बाप ! ब्लोग्वानी

पे लगादो तो कम से कम 10000 पसन्द मिल जाए..........



रंगोली नन्ही कोंपल की..........


नन्ही कोंपल का क्या कहना........ आज तक उसने चाय नहीं पी है, पीना तो

दूर चखी भी नहीं है, सिर्फ़ इस डर से की कहीं काली हो जाए........लेकिन

चाय बनाती बहुत अच्छी है ......मैं तो बड़े वाला कप पी गया........... वहाँ से

लौटते समय देखा कि नन्ही कोंपल मुख्य द्वार पर रंगोली बना रही थी.......

मैंने कहा- ये तो छोटी सी है, ज़रा बड़ी बनाओ.......तो बोली- अंकल ! छोटी

नहीं है ....बनते बनते बहुत बड़ी हो जायेगी........... उसकी तन्मयता और

उसका उत्साह देख कर मुझे विश्वास हो गया कि रंगोली वाकई बड़ी भी

बनी होगी और बड़ी सुंदर भी बनी होगी...................... लेकिन चश्मा अभी

भी मेरे ही कब्जे में था .शरदजी को नहीं लौटाया गया थाक्योंकि उन्हें

लेना याद रहा, मुझे देना याद रहा ...... वैसे कहना मत किसी से .... चश्मा

बहुत ही शानदार है ...... आँखों पे चढालो तो सारी दुनिया रंगीन नज़र आती हैं ,

महिलायें तो और भी सुन्दर नज़र आती हैं .... मैं तो कहता हूँ जिस आदमी को

अपनी पत्नी सुन्दर लगती हो, उसे शरद कोकास जी का चश्मा पहन कर घर

जाना चाहिए..........कमाल हो जाएगा......अपनी तो अपनी, पड़ोसी की पत्नी

भी सुन्दर लगने लगेगी....मौका मिले तो try करना लेकिन मौका मिलेगा नहीं

क्योंकि अभी वह चश्मा मैं try करना चाहता हूँ............खैर..........



पाबलाजी का पुष्पगुच्छ


रात को मैं चला गया दुर्ग के पास अहिवारा कवि सम्मेलन में.........और अगले

दिन सुबह साढे आठ बजे मेरी ट्रेन थी...... ठीक आठ बजे पाबलाजी का फोन

गया कि वे रहे हैं और भी गए....साथ में एक बहुत बड़ा और शानदार

पुष्पगुच्छ भी लाये जो आते ही टिका दिया मेरे हाथों में ........... मैंने पूछा ये

क्या ? वे बोले - पाबलाजी का प्यार.................. खूब जफ्फी सफ्फी हुई ...

प्यार की खुशबू और दोस्ती के रंग निखरे होगये हम स्टेशन रवाना.....

मन में मेरे एक खेद भी था कि बीती रात इसी शहर में गगन शर्माजी

के आयुष्मान सुपुत्र का वैवाहिक प्रीतिभोज एवं आर्शीवाद समारोह था

लेकिन मैं उसमे सम्मिलित नहीं हो पाया.........क्योंकि मेरा कवि सम्मेलन

वहाँ से 150 किलोमीटर दूर था....... खैर....साढे आठ बज गए.....पाबलाजी

ने चाय भी पिलादी और गाड़ी में भी मुझे बिठा दिया, गाड़ी चल भी पड़ी..लेकिन

शरद कोकास जी नहीं पहुंचे... क्योंकि एक तो वे ट्रेफिक में फंस गए थे, दूसरे

उस दिन उनका जन्मदिन होने के कारण फोन पर फोन चालू थे ..सो मैंने

तुरन्त पाबला जी का पुष्पगुच्छ वापिस पाबला जी को टिकाया उनका

स्वागत करने के लिए.....साथ ही गर्मजोशी से हाथ मिलाया ये कह कर कि

यही पुष्पगुच्छ अब कोकास जी को टिका देना उनके जन्मदिन की

बधाई देने के लिए......... कौन कहता है सरदारों में अक्ल कम होती है ?

पाबलाजी को देखो....एक ही पुष्पगुच्छ में सबको निपटा दिया.....हा हा हा



गाड़ी चल पड़ी............पता नहीं कब और कैसे मेरी कमीज़ के कॉलर गीले हो गए

थे देखा तो पता चला कि मेरी आँखें बह रहीं थीं..........आँखों के रास्ते मित्रता की

महकती धारा बह रही थी............... काश ! ऐसी मित्रता सभी ब्लॉगर्स आपस में

करें तो ब्लॉगिंग की दुनिया में वो कभी हो पायेगा....

जो
दुर्भाग्य से अभी चल रहा है



जो भी हो, शरद जी ! आपका चश्मा तो गया..... इस पर तो मेरी नीयत ख़राब हो

गई है......... आपको चाहिए तो सूरत आना पड़ेगा............हा हा हा हा हा












12 comments:

डॉ टी एस दराल October 10, 2009 at 8:02 PM  

ब्लॉग मित्रता का मज़ा हम भी ले चुके हैं, श्री समीर लाल जी के साथ.
इस अन्तरंग मुलाकात के लिए बधाई.
आजकल हमें भूल गए है शायद.

Khushdeep Sehgal October 10, 2009 at 8:41 PM  

अलबेला जी,
सबको हंसाने वाला इंसान दूसरों की आंखों में जज़्बात के आंसू भी ला सकता है, आज पता चला...

शरद जी,
आज आपके हर दम मुस्कुराते रहने का राज़ पता चला...ये चश्मे थोक के भाव मंगा कर एक-एक हम सभी ब्लॉगरों को भी भेज दें...शायद हमें भी दुनिया हसीं नज़र आने लगे...

पाबला जी,
मैं जब आप से साक्षात मिलूं तो ये पुष्प-गुच्छ वुच्छ नहीं, कैश ही हाथ पर टिका देना...क्योंकि न जाने वो सिलसिला आपने कब से चला रखा हो...आखिर कहीं तो विराम लगेगा...

जय हिंद...

दिनेशराय द्विवेदी October 10, 2009 at 9:24 PM  

शरद जी से तो मुलाकात अभी बाकी है। लेकिन पाबला जी के साथ तीन दिन बिताए हैं, उन्हीं के घर। उन्हें भूलना असंभव है।

राज भाटिय़ा October 10, 2009 at 10:17 PM  

काश हम भी भारत मै रहते तो हम भी अपने ब्लांग मित्रो से मिल पाते, बहुत अच्छा लगा आप का लेख, भाई यह हजार रुपये वाली चाय तो अब हमे खटकने लगी है, हम भी इसे पीना चाहेगे, वेसे हमारे यहां जो भारतीया चाय मिलती है वो तो १०, १२ हजार रुपये किलो के हिसाब से होगी, ओर पीते भी है, लेकिन यह भारत मै ... जरुर कोई खास होगी शरद जी क्या आप पिलायेगे हमे भी चाय बिटिया के हाथ की?
पाबला जी ने तो हां कर रखी है मिलने की, जब भी आये जरुर मिलेगे आप सब से.
बहुत सुंदर बाते लिखी.... काश ऎसा प्यार भारत मै अब परिवारो मे भी हो जाये, तो जीवन स्वर्ग बन जाये.
धन्यवाद

Udan Tashtari October 10, 2009 at 10:17 PM  

अच्छा लगा आपका संस्मरण पढ़कर.

शिवम् मिश्रा October 10, 2009 at 10:18 PM  

एक चमसा हुमाऊ दिबये दियो दद्दा !!

अजय कुमार झा October 10, 2009 at 11:36 PM  

हमें तो लगता है कि छत्तीसगढ का टिकट कटाना ही पडेगा...सब अपनी आंखों से देखेंगे..और आपकी तरह भावपूर्ण हो सकेंगे ...यादगार पोस्ट रही ये..

Mithilesh dubey October 10, 2009 at 11:46 PM  

अरे अलबेला जी हमें भी चश्मा दिला दीजिए ताकी हमको भी सब महिलाए सुन्दर लगे।

GK Awadhiya October 11, 2009 at 9:33 AM  

"अपनी तो अपनी, पड़ोसी की पत्नी भी सुन्दर लगने लगेगी"

अजी अलबेला जी, पड़ोसी की पत्नी तो वैसे ही सुन्दर लगती ही है। हाँ, कम से कम एक दिन के लिए शरद जी का चश्मा हमें भी ट्राय करने के लिए दीजियेगा ताकि हमें भी अपनी पत्नी सुन्दर लगे।

बवाल October 11, 2009 at 11:37 AM  

न जाने क्यों बहुत प्यारा लगा आपका यह संस्मरण खत्री साहब। शरद जी और पाबला जी को हमारा नमस्कार कहिएगा। कोंपल की रंगोली वाली बात दिल को बहुत भाई।

कोपल कोकास October 11, 2009 at 12:44 PM  

अकंल मुझे अभी अभी पता चला है कि आपने अपने ब्लोग पर मेरी रंगोली के बारे में लिखा है पढ़कर बहुत अच्छा लगा अगली बार घर आईयेगा तो मैं आपको अपने हाथ की चाय बनाकर पिलाऊँगी । पापा से खाने में सब्जी बनाना सीख रही हूँ वो भी बनाकर खिलाऊँगी । बाकी सभी अंकल और आंटी से मेरा अनुरोध है कि आप लोग भी ज़रुर दुर्ग आये । दिवाली पर जो रंगोली बनाऊँगी उसकी तस्वीर ब्लोग पर ज़रुर दूँगी ।
मेरा ब्लोग देखियेगा । http://nanhikopal.blogspot.com
आपकी नन्ही कोपल

राजीव तनेजा October 11, 2009 at 9:36 PM  

अलबेला जी,वैसे तो मैँ बड़ा ही सीधा साधा इनसान हूँ लेकिन अपने दिल के कारण बड़ा परेशान हूँ।अपने आप ललचाता है... लोग समझते हैँ कि ये तो इसकी आदत है।इसलिए अपने कीमती माल को मुझसे बचा कर रखते हैँ।खास कर के अपनी पत्नियों को...चश्मा जो हर समय आँखों पे चढा रहता है...


संस्मरण बढिया रहा...

Post a Comment

My Blog List

myfreecopyright.com registered & protected
CG Blog
www.hamarivani.com
Blog Widget by LinkWithin

Emil Subscription

Enter your email address:

Delivered by FeedBurner

Followers

विजेट आपके ब्लॉग पर

Blog Archive