अभी अभी बी एस पाबला जी के ब्लॉग पर मुझे यह माल पड़ा मिल गया । मैं
चुपके से बिना किसी को बताये ये उड़ा लाया । क्योंकि मुझे ये माल मेरे काम
का लगा । हालांकि भारतीय संस्कृति में सन्त लोग काम को मनुष्य का शत्रु
मानते हैं लेकिन मेरे प्रिय फिल्मी गीतकार आनन्द बख्शी ने फ़िल्म हाथी मेरे
साथी में एक गाना लिखा था "दुनिया में जीना है तो काम कर प्यारे" इसलिए मैं
तो काम नहीं छोडूंगा .........
पहले आप इस माल को देखलें ...
फ़िर मैं अपना रुमाल निकालता हूँ इसे पोंछने के लिए...........
ये माल किसी रचना का है । मैंने पता किया लेकिन प्रोफाइल का गेट बन्द
होने के कारण पता नहीं चला कि ये रचना साहब कौन हैं ? नर हैं , नारी हैं या
किन्नर हैं । खैर अपने को मतलब भी क्या है ? सारी रचना उस एक परमात्मा
की बनाई हुई है । सब एक जैसे हैं । अपने मतलब की तो वे दो आखरी पंक्तियाँ
हैं जिनमे कहा गया है कि
भारतीये संस्कृति मे जनम दिन मनाने
की परम्परा ही नहीं हैं
भाई ये तो बड़ी ऊँची सर्कस हो गई ...अगर भारतीय संस्कृति में जन्मदिन
मनाने की परम्परा ही नहीं है तो फ़िर हम इत्ते सालों से क्या झख मार रहे
हैं ? गणेश चतुर्थी को गणेशजी का, कृष्ण जन्माष्टमी को कृष्ण जी का ,
शीतला सप्तमी को शीतला माता का, दुर्गा अष्टमी को भवानी का, राम
नवमी को श्री रामचन्द्रजी का और महा शिवरात्रि को शिवजी के अलावा अलग
अलग दिनों में हनुमानजी का, बुद्ध का, महावीर स्वामी का, श्री गुरुनानक आदि
आदि इत्यादि का जन्मदिन हम मनाते आए हैं .
क्या ये सब नाम भारतीय संस्कृति से जुड़े हुए नहीं हैं ?
यार ये तो जिज्ञासा पैदा हो गई और चूँकि जिज्ञासा रचनाजी के कारण
पैदा हुई है और संयोग से बी एस पाबला जी के इलाके में हुई है इसलिए इसे
शान्त करने का काम उन्हें ही करना होगा............
सो हे अज्ञात रचनाजी ! हे ज्ञात पाबला जी ! आप दोनों ने मिल के जो जिज्ञासा
पैदा की है मुझ अज्ञानी के मन में, वह शान्त करो...ताकि मैं अपने दूसरे काम में
लग सकूँ...........
विनीत
-अलबेला खत्री
भारतीये संस्कृति के उपासक और
आंगल भाषा के विरोधी अगर आप
सच मे होते तो पाश्चात्य संस्कृति और
अग्रेजी तिथि से ना तो जन्म दिन मनाते
ना बधाई देते . दो कमेन्ट आपने
मेरे इस लिये डिलीट किये क्युकी इंग्लिश
मे थे बाकी मेने खुद कर दिये क्युकी
आप जो कहते हैं मानते नहीं . हिंदी भाषा
प्रेम तो आप का जग जाहिर हैं पर
पाश्चात्य संस्कृति प्रेम से आप और
आप जैसे जितने घिरे हैं वही जगह जगह
जा कर अपनी मानसिकता का परिचय
महिला के कपड़ो पर आ रहे लेखो पर
तालियाँ बजा बजा कर देते है
भारतीये संस्कृति में जनम दिन मनाने
की परम्परा ही नहीं हैं