अभी अभी राज भाटियाजी की एक टिप्पणी मिली ..
उसका सम्मान करते हुए ये आलेख
उन्हीं को समर्पित करता हूँ
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मेरे पास एक वोट है। अत्यन्त पवित्र और पाक, आज तक किसी की छाया भी
नहीं पड़ने दी मैंने उस पर। दुष्ट लोगों से सदैव बचा कर, सबकी नज़रों से छिपा
कर रखा है मैंने उसे। क्योंकि मैंने सुना है वह क़ीमती तो है ही, मेरा फण्डामेन्टल
राइट भी है इसलिए जबसे वह मेरे पास आया है, मैंने सहेज कर रखा है। कई
चुनाव आए और गए, कितने ही बड़े-बड़े ज़रूरतमंद उम्मीदवारों ने मेरे आगे
याचना की लेकिन मैंने वह वोट किसी को नहीं दिया। देता भी कैसे, वह मेरा
फण्डामेन्टल राइट जो है और अपना फण्डामेन्टल राइट भला किसी दूसरे को
कैसे दे देता? लेकिन अब मुझे लगता है कि मुझसे ज़्यादा देश को उसकी
ज़रूरत है, लोकतन्त्र को उसकी ज़रूरत है। इस बार चुनाव में यदि मैंने अपना
वोट किसी को नहीं दिया तो आने वाली पीढिय़ां मेरा नाम सड़क पर लिखकर
उस पर जूते मारेगी और इतिहास में मेरा नाम स्वर्णाक्षरों के बजाय लालू
यादव की भैंसों के गोबर से लिखा जाएगा।
आज मेरे देश को मेरे वोट की उतनी ही ज़रूरत है जितनी कि डा. मनमोहन
सिंह को आराम की, महंगाई को विराम की और करोड़ों बेरोज़गारों को काम
की। डेमोक्रेसी संकट में है और सिर्फ़ कम वोटिंग के कारण संकट में है
इसलिए मैंने मन बना लिया है कि मैं वोट दूंगा और ज़रूर दूंगा। लेकिन दुविधा
ये है कि किसको दूं? कौन है मेरे वोट का असली हक़दार। वैसे तो सभी
प्रत्याशियों और उनकी पार्टियों के रंग-ढंग, झण्डे-वण्डे अलग-अलग हैं लेकिन
ध्यान से देखो तो सब एक ही जैसे हैं। सबका टारगेट एक है और सभी की
मानसिकता भी लगभग एक जैसी है। लेकिन करें भी क्या, बाहरी देश से
आयात तो कर नहीं सकते, चाइना वालों ने सबकुछ बना दिया लेकिन
उनके बनाये भारतीय नेता तो अभी तक बाज़ार में आए नहीं हैं इसलिए जो हैं,
जैसे भी हैं मेड इन इण्डिया से ही काम चलाना पड़ेगा। क्योंकि चाहे सब कुछ
खत्म हो जाए, इस देश का लोकतन्त्र सलामत रहना चाहिए ताकि लोक को
लगे कि हमारा कोई तन्त्र है। जैसे दिवाली पर श्रीयन्त्र की पूजा-प्रतिष्ठा होती
है, वैसे ही चुनाव में लोकतन्त्र की पुनः प्राणप्रतिष्ठा की जाती है और इसके
नये पुरोहित चुने जाते हैं:
जैसे बाज़ार के लिए क्रेता ज़रूरी है
क्रेता से निपटने को विक्रेता ज़रूरी है
वैसे ही डेमोक्रेसी की दुकानदारी में
दलाली करने के लिए नेता ज़रूरी है
इस ज़रूरी घटक को जीवित और ऊर्जस्वित बनाए रखने के लिए मैं वोट
करूंगा, ज़रूर करूंगा, लेकिन पहले मुझे बताओ कि किसको दूं? एक तरफ
पंजा है जिसे देख कर डर लगता है, क्योंकि इसी पंजे ने जरनैलसिंह
भिण्डरावाला जैसा भस्मासुर तैयार किया था फिर उसका संहार करने के
लिए इसी पंजे ने स्वर्ण मन्दिर समेत सैकड़ों गुरूद्वारों को अपवित्र व
अपमानित किया था। कइयों पर तो बुलडोज़र फिरा दिए थे। इसी पंजे ने
श्रीलंका में शान्ति सेना भेज कर अपने देश में अशान्ति को हवा दी थी और
इसी पंजे ने इन्दिराजी की हत्या उपरान्त सिखों के सामूहिक क़त्लेआम पर
चुप्पी साध कर अपना मौन समर्थन दिया था। दूसरी तरफ कमल है जो पूरी
तरह कीचड़ व गन्दगी में सना है लेकिन अडवाणी जैसा वृद्ध होकर भी वरुण
जैसा तना है। इसने एक तरफ पोकरण में परमाणु परीक्षण करके वाहवाही
लूटी है तो दूसरी तरफ कारगिल में पाकिस्तानियों की घुसपैठ भी इसी के
राज में हुई थी, अक्षरधाम, संसद भवन, गोधरा और गोधरा के बाद की ऐसी
अनेक रक्तरन्जित यादें है जो भुलाये नहीं भूलतीं और वो सब कमल पर लगे
कीचड़ की तरह आभासित हो रही हैं।
तीसरी और चौथी तरफ कोई मोर्चा वोर्चा हैं जो ऐसा लावारिस है कि न माँ का
पता, न बाप का पता, न ब्लड ग्रुप की पहचान हो रही है न ही इसका अभी
तक डीएनए टेस्ट कराया गया है। इसमें कई लोग हैं, कई झण्डे हैं और कई
नेता हैं, लेकिन कौन कब कहां से फिसल कर किसकी थाली में कूद जाएगा,
कोई भरोसा नहीं। इसमें आधे से ज़्यादा लोग तो किस पार्टी के हैं ये ही पता
नहीं चलता। चलता है तो तब चलता है जब ये जीत जाते हैं क्योंकि जीतने
के बाद चूंकि इन्हें मन्त्री बनना ही बनना होता है इसलिए जिस पार्टी की
सरकार होती है, ये उसी में दाखिल हो जाते हैं। पिछले कुछ सालों में कई
सरकारें आईं, बनीं, टूटीं, फिर बनीं, फिर टूटीं, बन-बन के टूटीं, टूट-टूट कर
बनीं लेकिन ये नहीं टूटे, ये बने रहे हमेशा, हर सरकार के साथ। आदरणीय
रामविलास पासवान, मुलायम सिंह और लालू यादव जैसे नेताओं की भी
लार टपक रही है मेरा वोट देख कर मगर एक कोने में ताल ठोंक कर हाथी
भी खड़ा है जिसके सामने अच्छे-अच्छे कांपते हैं। सायकल पर तो ये ऐसा
चढ़ बैठा है कि सायकल -तो सायकल उसकी सवारियां भी बैठ गईं। सबको
मेरे वोट की ज़रूरत है बताओ यार !
अरे कुछ बोलो भी !
11 comments:
यदि भारत को बचाना है और देश में शान्ति पूर्ण व्यवस्था बनाये रखनी है
तो मेरे प्यारे पाठकों, मैं आप से करबद्ध निवेदन करता हूं कि मतदान
करने जाओ और इतनी श्रद्धा से जाओ जैसे मन्दिर में दर्शन करने जाते हो,
इतनी ख़ुशी से जाओ जैसे अपनी शादी में जाते हो और ऐसी मस्ती में
जाओ जैसे अपनी प्रेयसी से मिलने जाते हो।
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sahi kaha aapne..
aajkal vote daalne jana kisi party mein jane se kam nahi hai.. kehne ke liye democracy hai par votes aaj bhi kareede jate hai..kahin paiso se kahi saraab se.. to pata nahi kaise kaise..
-Sheena
bilkul sahi sabko mere vote ki jarurat hai, is samay isliye vote kisko bhi do koi fark nahi padtaa, koi dhang ka neta ho to sochain lekin sochane waale neta nahi hain
http://gogasar.blogspot.com
सब उलझन में हैं .. आपकी उलझन कौन दूर करे !!
पढ़कर मजा आ गया !!!!!!!!
फंडामेंटल राइट के कारण 'मेटल' होते किसी भी नागरिक के दर्द की अनुभूति छुपी है आपके आलेख में !
सच में आज अपने मत अधिकार का प्रयोग भी कितनी चिंता का विषय हो गया है !!
क्या हाल बनाया है देश का हमारे नेताओ ने !
फंडामेंटल राइट के कारण 'मेटल' होते किसी भी नागरिक के दर्द की अनुभूति छुपी है आपके आलेख में !
सच में आज अपने मत अधिकार का प्रयोग भी कितनी चिंता का विषय हो गया है !!
क्या हाल बनाया है देश का हमारे नेताओ ने !
आपका अमूल्य वोट किसी भारत भाग्य विधाता को जाना चाहिये लेकिन उसे तलाश करना होगा । रघुवीर सहाय जी ने उसे कुछ इस तरह तलाशने की कोशिश की है ..." राष्ट्रगीत में भला कौन वह भारत भाग्य विधाता है / फटा सुथन्ना पहने जिसका गुन हरचरना गाता है । " आओ इसे सब मिलकर ढूँढें ।
बहुत सुंदर लिखा आप ने,धन्यवाद आप का.
अब क्या कहें..हमें ही दे दो. :)
अलबेला जी, आपने राष्ट्र के मतदाताओं के आगे उपस्थित भीषण दुविधा का सही विश्लेषण किया है.. किन्तु एक प्रश्न हम सभी को स्वयं से भी करना होगा...हम इस दुविधा से निकलने के लिए क्या कर रहें है? वोट देकर अथवा न देकर भी यदि कूपमंडूक की स्थिति कायम रखनी हैं तो फिर लोकतंत्र नहीं हम भेड़-तंत्र की वकालत कर रहें हैं...
किसी को भी दिजीये नतीजा एक सा ही आता है।
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