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Albela Khatri

मैं तेरा अपराधी दाता.... मैं तेरा अपराधी

मैं तेरा अपराधी दाता

मैं तेरा अपराधी


तूने बख्शा नूर हृदय में लेकिन मैंने चुनी सियाही

तूने सैर चमन की बख्शी लेकिन मैंने कीचड़ चाही

सौ सौ क़समें खायीं लेकिन एक क़सम भी नहीं निबाही

मैं तेरा अपराधी दाता

मैं तेरा अपराधी


मालिक ! तेरी एक झलक में लाखों सूर समाये हैं

ऐसी एक झलक के दर्शन ख़ुद मैंने भी पाये हैं

लेकिन मैं वो ज्योत कि जिस पर तम के गहरे साये हैं

मैं तेरा अपराधी दाता

मैं तेरा अपराधी


तू है दयालु ,परम कृपालु , तेरे क़रम का अन्त नहीं

मैं छोटा ,मेरे पाप भी छोटे ,दोष की सूचि अनन्त नहीं

सत्य में शक्ति, शक्ति में भक्ति ,झूठ कभी बलवन्त नहीं

मैं तेरा अपराधी दाता

मैं तेरा अपराधी


एक बार फ़िर अवसर बख्शो ,बख्शो प्रेम पियाला

तम हो जायें दूर जगत के ,घट में होय उजाला

तन की सारी चाहो-हवस का कर डालो मुंह कला

मैं तेरा अपराधी दाता

मैं तेरा अपराधी

21 comments:

शिवम् मिश्रा October 17, 2009 at 10:09 AM  

बढ़िया रचना..दीवाली की हार्दिक शुभकामनाएँ!!

ब्लॉ.ललित शर्मा October 17, 2009 at 11:41 AM  

निशि दिन खिलता रहे आपका परिवार
चंहु दिशि फ़ैले आंगन मे सदा उजियार
खील पताशे मिठाई और धुम धड़ाके से
हिल-मिल मनाएं दीवाली का त्यौहार

संगीता पुरी October 17, 2009 at 11:57 AM  

अच्‍छी रचना !!
पल पल सुनहरे फूल खिले , कभी न हो कांटों का सामना !
जिंदगी आपकी खुशियों से भरी रहे , दीपावली पर हमारी यही शुभकामना !!

dpkraj October 17, 2009 at 1:16 PM  

आपको दीपावली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं एवं बधाई.
दीपक भारतदीप

परमजीत सिहँ बाली October 17, 2009 at 3:24 PM  

बहुत सुन्दर रचना।
दीपावली के शुभ अवसर पर आपको और आपके परिवार को शुभकामनाएं

दीपक कुमार भानरे October 17, 2009 at 3:29 PM  

दीपावली पर्व की कोटि कोटि बधाईयाँ और सुभ कामनाएं ।

Randhir Singh Suman October 17, 2009 at 6:18 PM  

दीपावली, गोवर्धन-पूजा और भइया-दूज पर आपको ढेरों शुभकामनाएँ!

एस.के.राय October 17, 2009 at 10:39 PM  

अलबेला खत्री जी ! दीपावली पर आपका टिप्पनी पढ कर वास्तव में मुझे ऐसा लगा कि मैं इस तरह की मुहिम में अकेला नहीं hun । हम भावना प्रधान लोग हैं ,मनुश्य भावना -प्रेम -दया -क्षमा आदी का जीता जगता ईश्वरीय वरदान हैं ,जिन लोगों में आवेश -भावना आदी का अभाव हैं वह तो जीवित लाश और दो पहिए का पशुतुल्य हैं ।

मैं भी जब लिखता हंू तो छोट करके नहीं लिख सकता ,जब विस्तार से लिखने पर भी लोगों का प्रतिक्रिया लगभग shuny हैं तो सक्षेप में कितने लोग हम जैसों ko समझ सकेंगे ?

ब्लॉगवाणी ने जो अवसर हमें प्रदान किया हैं उसका अधिकाधिक जनजागरण के काम में उपयोगा हो सकें यही मंशा के साथ लिखना shuru किया था ,आप जैसे अच्छे लोग भी यदि इस तरह की काम में हाथ बटायें तों मैं दावे के साथ कह सकता हंू कि हम विश्व गुरू के पद पर फिर से आसीन हो सकते हैं ,आपने एक कार्यक्रम में ऐसा ही सपना देखा हैं ..........हम सभी का सपना साकार हो यही ‘ाुभकामनाओं के साथ ..................साित्वक दीपवाली आप और आपके परिवार को मंगलमय हो .....

मनोज कुमार October 17, 2009 at 10:44 PM  

इसमें आध्यात्मिक रहस्य दिखाई पड़ता है।

राजीव तनेजा October 18, 2009 at 12:51 AM  

प्रभावित करने वाली रचना

प्रिया October 18, 2009 at 4:56 PM  

rachna achchi lagi...diwali ki shubhkaamnaye

SACCHAI October 18, 2009 at 5:09 PM  

" behtarin bhavo se bhari rachana .. is rachana ki tarif ke liye hum alfaz kahan se laaye ..DAATA ne hume bahut kuch diya magar hum nahi sambhal sakte hai ..vo hazar haath wala dil kholker hume de raha hai magar hum naadan use samaj nahi paa rahain .."

" aapko is rachana ke liye hamara dil se salam "

----- eksacchai { AAWAZ }

http://eksacchai.blogspot.com

लता 'हया' October 19, 2009 at 1:17 AM  

shukria;aapko dipawali ki shubh kamnayen.
main tera apradhi data.....bahut acchi rachana lagi.

Urmi October 19, 2009 at 5:21 AM  

बहुत ख़ूबसूरत रचना लिखा है आपने! आपको और आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें!

वन्दना अवस्थी दुबे October 20, 2009 at 2:59 PM  

वाह.बहुत सुन्दर स्वीकारोक्ति है. मेरे ब्लॉग का रास्ता भूल गये हैं क्या?

Shruti October 20, 2009 at 7:45 PM  

main bhi tera apraadhi daata
main bhi tera apraadhi

-Sheena

शरद कोकास October 21, 2009 at 12:41 AM  

यही दुआ है कि शीघ्रातिशीघ्र यह अपराध-बोध समाप्त हो लेकिन विनम्रता बनी रहे ,अहंकार प्रवेश न करे , बुराइयों से लड़ने की ताकत अता हो .. शुभकामनायें ।

Asha Joglekar October 21, 2009 at 4:18 AM  

बहुत ही गहरे पैठ कर लिखी है ये कविता आपने । मैं भी इस गीत में आपके साथ शामिल हूँ ।

Asha Joglekar October 21, 2009 at 4:21 AM  

बहुत गहरे पैठ कर लिखी है ये कविता आपने । हमें भी शामिल समझें प्रार्थना में ।

alka mishra October 21, 2009 at 1:22 PM  

गीत मुझे बहुत प्यारा सा लगा
शेष बातें कल दुबारा पढने के बाद
जय हिंद

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' October 23, 2009 at 2:33 PM  

बढ़िया रचना!
यह कवि सम्मेलनो और गोष्ठियों दोनों में चलेगी नही, दौड़ेगी!

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