हे भगवान् !
ये हिन्दू और मुस्लिम का अनर्गल और अवांछित प्रलाप
अभी भी चल रहा है । यह देख कर दुःख भी है और हैरत भी.........कि
अपनी लेखनी से जो लोग समूचे देश और समाज को दिशा देने का सामर्थ्य
रखते हैं, वे स्वयं ही इतने दिग्भ्रमित क्यूँ हैं ?
जितनी ऊर्जा इस विवाद को बढ़ाने पर खर्च कर रहे हैं उतनी ऊर्जा अगर
विवाद के निपटारे में खर्च हो तो बेहतर होगा.........
एक शे'र याद आता है...........
हमको तो ये ख़बर थी कि सलमान का घर है
अब लोग बताते हैं कि मुसलमान का घर है
_____कुछ खुशनुमा लिखना चाहता था........कुछ हँसाना चाहता था,
लेकिन माहौल कह रहा है कि पहले मैं एक पुराना छन्द पोस्ट कर दूँ........
जो मुझे बहुत पसन्द है.....
मान अभिमान तज,
तप और दान तज,
तज चाहे गीता और तज दे क़ुरआन को
नौहा और नाला तज,
गिरजा शिवाला तज,
तज चाहे तीज चौथ नौमी रमज़ान को
काशी काबा ग्रन्थ तज,
चाहे सारे पन्थ तज,
तज दे तू भजनों की लम्बी लम्बी तान को
ईश की आराधना का
मन यदि करता है
प्रेम कर... प्रेम कर .....हर इन्सान को
hindi hasyakavi sammelan in mangalore by MRPL
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शानदार, शानदार, शानदार …………………
शानदार और जानदार रहा मंगलूर रिफ़ाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड द्वारा
राजभाषा विभाग के तत्वाधान में डॉ बी आर पाल द्वारा आ...
10 years ago
25 comments:
बहुत बढिया रचना है .. अभी पोस्ट करने की खासी आवश्यकता थी !!
आपकी चिंता जायज है । बहुत सुन्दर रचना ।
आपकी संवेदना प्रेरित करती है...
आपने जो ये शेर उद्धृत किया है किसका है? आपने तो ऐसे लिखा है जैसे आपका ही है. और शेर भी गलत लिखा है. अगली पोस्ट में इसका खुलासा कीजियेगा अलबेला जी. ये कविसम्मेलनीय कलाबाजी और अति उत्साहधर्मिता में आप यह भी भूल गए कि इस तरह का कर्म चोरी कहा जाता है!
आपने जो ये शेर उद्धृत किया है किसका है? आपने तो ऐसे लिखा है जैसे आपका ही है. और शेर भी गलत लिखा है. अगली पोस्ट में इसका खुलासा कीजियेगा अलबेला जी. ये कविसम्मेलनीय कलाबाजी और अति उत्साहधर्मिता में आप यह भी भूल गए कि इस तरह का कर्म चोरी कहा जाता है!
वाह अलबेला जी ये तो आन डिमांड वाली बात हो गई।सही है।
चतुर्वेदीजी,
आपकी आपत्ति उचित है । मुझे अच्छा लगा कि आपने इसे उठाया । परन्तु
जहाँ मैंने इसे प्रयोग किया है और जिस मकसद से प्रयोग किया है वह
कवि सम्मेलनीय कला बाज़ी नहीं है । इसके अलावा मैंने यह भी साफ़ साफ़
लिखा है कि ek she'r yaad aa raha hai, maine ye nahin likha ki
ye she'r mera hai......... isliye ye chori ki shreni me nahin aata..
keval meri aalochnaa karne ke liye aalochnaa karne ke ati utsaah
me aap ye toh bhool hi gaye shrimaan ki shaayri ki sabse badi
kaamiyaabi hi ye hai ki shaayri yaad rah jaaye........shaayar ka
naam bhale hi yaad na rahe..........kyonki duniya me aise bahut se
shaayar hain jinke naam hamen yaad hai lekin unki koi shaayri
yaad nahin hai........
mujhe she'r yaad thaa maine likh diya , aapko shaayar ka naam
maaloom ho toh bataa dijiye, main voh bhi saharsh likh dunga...
ismen pareshaani ki kya baat hai ?
aur haan..........is she'r ke alava is post me ek chhand bhi hai, voh
bhi aap padh lete toh achha hota, aapke vichaaron se sahitya jagat
dhnya ho jaata.........
aapne do baar tippani ki takleef ki, zaroorat hi nahin thi, main toh
ek baar me hi padh leta hoon..........so yadi aap is umdaa she'r ke
shaayar ke baare me likh den aur she'r bhi sudhaar kar likh den
toh main sanshodhan karne ko haazir hoon...........
LIKHTE LIKHTE ACHANAK DEVNAAGRI ME LIPYANTAR HONA
BAND HO MGAYA HAI ISLIYE KRIPYAA ISE ISEE ROOP ME
SWEEKAAR KAR KE MUJHE KRITAARTH KAREN
-albela khatri
अलबेला जी, आप नरों से मेल मिलाप कराना चाहते हैं या नारियों से? नर तो वह हैं जो आपके खिलाफ हुये थी कोई इधर टिप्पणी करने ना आये अपने वादे पर ना चल सके, नारियों का साथ देने पर आप की एक गाली मेरे पर उधार है, जो महिलाओं को सपोर्ट करने वालों को आपने दी थी, निम्न पोस्ट पर 2 न. कमेंटस कैरानवी ने विरोध दरज किया था, याद ना हो तो उसका लिंक भी ढूंडा जाय, यह वही बात है देने वाला भूल जाता है जिसे दी जाती है उसे याद रहती है, आज यही नारियां इस्लाम का मजाक उडाकर सांकल लगा के बैठ गयीं जबकि उनकी पोस्ट पर ध्यान दो किनका मजाक उड रहा है यह ना जान सके,
''अलबेला खत्री आप हिन्दी ब्लॉग जगत की लेखिकाओ के प्रति जो शब्द इस्तमाल कर रहे हैं मुझे आपति है और ये एक
प्रकार का सेक्सुअल हरासमेंट हैं । हिन्दी ब्लॉग जगत मे पहले भी लेखिकाओ के प्रति इस प्रकार की भाषा का प्रयोग हुआ हैं और तब भी आपति हुई हैं ।
जेंडर बायस ना फैलाये हिन्दी ब्लॉग जगत मे अलबेला खत्री जी क्युकी हमने इसको दूर करने के लिये बहुत परिश्रम किया हैं''
http://indianwomanhasarrived.blogspot.com/2009/07/blog-post_29.html
ईश की आराधना का
मन यदि करता है
प्रेम कर... प्रेम कर .....हर इन्सान को ।
वाह्! अल्बेला जी, कितनी सुन्दर बात कही है....यदि इन्सान इतनी सी बात समझ ले तो किसी बात का कोई झगडा ही न रहे !!
बधाई!
हैरत हुई, सांकल लगी देख के, मैं तो समझूं था अलबेला नर है, अब पिछले कमेंटस के पब्लिश होने की उम्मीद क्या करूं आपसे? फिर भी आप तक बात तो पहुच ही जायेगी आप उर्दू से वाकिफ लगते हैं इसलिये बिन्दी का प्रयोग कर रहे हैं, क़ुरआन ऐसे लिखिये देखें www.quranhindi.com
टिप्पणी पब्लिश करने का धन्यवाद,यह आपको अलबेला भी साबित करते हैं, आपने देखा होगा पाठकों से प्रतिक्रिया का अधिकार छीना जा रहा है, और यह वह महान लिचपलून कर रहा है जो स्वयं अपने दरवाजे खिडकी खोले रखता है, इस लिये कि वह 3 साल में समझ गया के जो आरहा है आने दो उसके ब्लाग का कल्याण इसी में है
, वेसे मैं हैरत में हूं आपने क्यूं सांकल लगायी किसकी मजाल हुई जो आपसे पंगा ले
नर हो कि नारी बन जाते आपके सामने सब उधारी(कहना कुछ और चाहता था)
चौबे जी ,
बहुत गलत आरोप लगा दिया आपने एक सही आदमी पर !
आगे आप स्वयं ज्ञानी है !
अलबेला जी , लगे रहे !
खत्री जी, मेरी आपसे कोई जाती दुश्मनी नहीं है. दरअसल मैं इस प्रवृत्ति के खिलाफ हूँ. होता यह है कि हम बड़े भोलेपन में कह जाते हैं कि शेर याद रह गया, शायर का नाम नहीं. तो इस बात का स्पष्ट उल्लेख करना चाहिए कि यह शेर किसी और का है और नाम नहीं याद आ रहा. जब उस शेर से अपनी लोकप्रियता बढ़ती तो, पैसा मिलता हो तो इतनी नैतिकता की उम्मीद तो की ही जा सकती है...और इस्तेमाल करने वाले लोग इतने भोले भी नहीं हैं कि हजारों की भीड़ संभाल लेते हैं लेकिन धतकर्मों के बारे में नहीं जानते.
कई बार लोग मंचों या लेखों में निदा फाज़ली या दुष्यंत कुमार या बशीर बद्र या दूसरे छोटे-बड़े शायरों के लोकप्रिय के शेर इस तरह इस्तेमाल करते हैं जैसे उनके ही कहे हुए हैं. ऐसे में श्रोता या पाठक क्या समझेंगे? इसे ईमानदारी तो नहीं ही कहेंगे न आप? अब शायर तो पूछने नहीं आयेगा कि आपने किस इरादे से उसका बिना नाम लिए शेर सुना दिया!
खैर आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि यह शेर नीरज कुमार का है और इस तरह है-
हमको पता यही था के सलमान का घर था,
वो कह रहे हैं हमसे मुसलमान का घर था.
और यह शेर मुबई के दंगों के दौरान लिखा गया था जिसका मैं गवाह हूँ. धन्यवाद!
aapki likhi yeh do panktiya qatil hai.
bahut hi badiya
हमको तो ये ख़बर थी कि सलमान का घर है
अब लोग बताते हैं कि मुसलमान का घर है
-Sheena
वाह सही समय पर सही बात कहते हैं अलबेलाजी आप !! आरोप प्रत्यारोप को दरकिनार करते हुए !! यही कहना है की आप हमेशां अच्छा ही कहते है !
ीश की अराधना का
मन यदि करता है
प्रेम कर प्रेम कर बहुत सुन्दर बात कही धन्यवाद्
अलबेला जी , अब क्या लिखू, टिपण्णिया पढ कर ही हेरान रह गया, केसी केसी बाते कर रहे है लोग....कया कहुं कोई ठेके दार बन रहा है समाज का तो कोई सिपाही, चलिये आप भुल जाये इन वेबकुफ़ियो को ओर मस्त रहे
"प्रेम कर... प्रेम कर .....हर इन्सान को।"
अलबेला जी, देखा आपने, आ गए यहाँ पर प्रेम करने वाले।
आदरणीय चतुर्वेदी जी,
आपका धन्यवाद और मन से धन्यवाद ........क्योंकि सचमुच मुझे नहीं पता था
की ये शे'र किसका है । हाँ, मुंबई दंगों के समय लिखा गया मुझे मालूम है लेकिन
ये भी सच है कि मैंने इस शे'र को ऐसे ही सुना था जैसा कि मैंने लिखा है । मैंने सुना
था मुंबई में मंच संचालक सुभाष काबरा के श्रीमुख से और मैं ये भली भांति
जानता हूँ कि वे शे'र न तो लिखते हैं, न ही लिख सकते हैं इसलिए मैंने उनका
नाम नहीं दिया.........
चलो आपके सौजन्य से सच सामने आया...........कृतज्ञ हूँ........
वैसे आपकी जानकारी के लिए बतादूँ कि मैं कविता चोरी नहीं करता , हाँ
मेरी जूठन से कई लोग कमा -खा रहे हैं लेकिन मैं उनके ख़िलाफ़ भी कुछ
नहीं बोलता ..ये सोच कर कि क्जलो मैं न सही, मेरा हुनर तो किसी के काम
आ रहा है ...........
कल ही चित्तोड़गढ़ से फोन आए थे कि लाफ्टर चैम्पियन सुरेश अलबेला
मंच पर मेरी पैरोडियाँ सुना रहा है........ मैंने अपने क्रोध को जज़्ब कर लिया
और सिर्फ़ इतना कहा कि जब उस पट्ठे ने नाम ही मेरा उड़ा लिया है तो
माल उड़ाने में उसे कैसी शर्म ?
कुल मिला के आपका टिप्पणी करना सार्थक रहा ..बस किसी रचनाकार को
चोर कहते हुए जल्दबाजी मत करें............ बड़ा दुःख होता है और भीतर तक
होता है............शर्म आती है ख़ुद से..................
-अलबेला खत्री
अलबेला जी
बहुत सुन्दर रचना है.
सन्देश देती सार्थक रचना के लिये बधाई.
बहुत सुन्दर रचना ।
सही समय पर सही लिखा है पर इन मानसिक विकृत लोगो को कुछ भी तो समझ नहीं आता |
अलबेला भाई, हम तो अपनी ऊर्जा एकदम सही दिशा में लगाये हुए हैं और रहेंगे, दिक्कत तभी शुरु हुई थी जब किसी ने अपने धर्मग्रन्थों की तुलना हमारे वेदों और धर्मग्रन्थों से करना शुरु किया, तब तक कोई समस्या थी ही नहीं…। अब ये बात उन्हें कौन समझाये कि भाई यदि तुम्हारा ग्रन्थ श्रेष्ठ है तो उसे पढ़ो, उसे सिर पर रखो, लेकिन दूसरे के ग्रन्थ से तुलना करने की क्या जरूरत है? तुम अपने घर रहो, हम अपने घर रहें…। उनका "अवतार" अच्छा है, महान है तो हमें कोई आपत्ति नहीं, लेकिन हमारे अवतार को लेकर कोई बात क्यों करते हो? जितना ज्ञान हो उतनी बात करना चाहिये। इतनी सी बात यदि लोग समझ लें तो मामला सुलझ जाये, लेकिन यदि किसी के संस्कार ही ऐसे हों कि सामने वाला उन्हें अपने घर में नहीं आने देना चाहता, तब भी इधर-उधर कूड़ा फ़ैलाकर चला जाये, इसे क्या कहा जा सकता है… :) यदि कोई मुझसे कहे कि कृपया आज के बाद मेरे ब्लाग पर न आयें, न टिप्पणी दें, न कोई लिंक भेजें, तो मैं ताजिन्दगी उस ब्लाग पर न जाऊं, न ही उस व्यक्ति के बारे में बात करूं, मेरा "स्वाभिमान" अभी जीवित है… बाकियों के बारे में पता नहीं…
पोस्ट पढ़कर,
लाजवाब हूँ।
यह पोस्ट ही लाजवाब है,
टिप्पणी का क्या खिजाब दूँ
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