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अनिल पुसदकर जी ! कृपया अभिनय में हाथ आजमाइए...

वरिष्ठ पत्रकार और ब्लॉगर श्री अनिल पुसदकर जी पत्रकार कैसे हैं ,

लेखक कैसे हैं ? इस पर तो कुछ कहने की आवश्यकता ही नहीं.......लेकिन

वे तबीयत से बहुत रंगीन मिजाज़ और हँसमुख व्यक्तित्व के धनी हैं ये मैंने

बहुत नज़दीक से देखा है.........


पुसदकरजी की एक विशेषता ने मुझे प्रभावित किया और वो है उनकी

संवाद अदायगी ...कमाल करते हैं वे............जान डाल देते हैं शब्दों में...

मामूली से मामूली बात को भी इस अन्दाज़ में बयान करते हैं कि सुनने

वाला मंत्रमुग्ध हो जाता है........हँसाने में तो वे महारथी हैं........... उनकी आँखें,

आँखों की हरकतें और पूरी बॉडी लैंग्वेज़ कमाल के तारतम्य का प्रदर्शन

करती है


मेरा विश्वास, अटूट विश्वास है अनिल जी !

यदि आप अभिनय क्षेत्र में ख़ुद को आजमायें तो धूम मचा सकते हैं,

बहुत बड़े नायक की जगह बना सकते हैंएक बार कोशिश करके देखिये...

मज़ा जाएगा........


क्या ख्याल है अनिल जी को जानने वालों का ?

11 comments:

Unknown October 12, 2009 at 1:26 PM  

हम अनिल पुसदकर जी के हीरो बनने के बिलकुल खिलाफ़ हैं… आप अमिताभ को जल्दी रिटायर करवाना चाहते हैं क्या?
हमारी शुभकामनाएं रहेंगी अनिल पुसदकर जी के साथ कि जिस फ़िल्म में अनिल भाई "विलेन" के रोल में नज़र आयेंगे, वह फ़िल्म हम कम से कम 20 बार अवश्य देखेंगे…।

"विलेन" का रोल ही क्यों कहा मैंने? क्योंकि भाई, पूरी पिक्चर में विलेन ही तो शुरु से आखिर तक दारु-मुर्गा, हेरोईन, हीरोइन, एके-47 आदि के मजे लूटता है, बेचारे हीरो को तो आखिरी रील के आखिरी इंच में ही कुछ मिलता है… :) :) हा हा हा हा हा

Unknown October 12, 2009 at 1:43 PM  

आपका कहना वाजिब है सुरेशजी..........

मज़े तो विलेन ही लूटता है..........इसीलिए मैं अनिलजी को हीरो के रूप में

देखना चाहता हूँ ताकि विलेन बन कर ख़ुद मज़े कर सकूँ........हा हा हा

ब्लॉ.ललित शर्मा October 12, 2009 at 1:52 PM  

अलबेला जी फ़िल्म आप ही बनाओ, विलेन का रोल आप ही करो, अनील भैया को हीरो बनाओ, हमारे को साईड विलेन बना लेना एक मुंछ वाले आदमी की भी जरुरत पड़ेगी, और हिरोईन कौन सी साईन करना है? जरा इस पर भी मशविरा कर लो, पता चला के सारी ही बुक हैं।

Unknown October 12, 2009 at 2:05 PM  

सही कहा आपने। अनिल जी हमारे रायपुर की शान हैं!

राज भाटिय़ा October 12, 2009 at 4:06 PM  

बहुत सुंदर, हम ने तो उन्हे ब्लांगिग मै ही देखा है, ओर महसुस किया कि एक जिन्दा दिल इंसान है, चलिये जब फ़िल्म शुरु करे तो बताये हमारे लायक भी कोई काम, भाई हम सभी तरह के काम कर लेते है कोई परहेज नही,हीरो से मुंडु तक, यानि चाय पिलाने वाले....भी बन जायेगे

दिनेशराय द्विवेदी October 12, 2009 at 4:48 PM  

अनिल जी का वह रूप हमने भी देखा है। लेकिन मुझे नहीं लगता कि वे एक्टिंग कर सकते हैं। जितनी वे करते हैं जहाँ करते हैं वही अच्छी है।

Rakesh Singh - राकेश सिंह October 12, 2009 at 9:38 PM  

अनिल जी के कलम की ताकत क्या कहने .... ग़ज़ब का धार है उनकी लेखनी मैं |

उनकी प्रतिभा फिल्म मैं भी दिख जाए जो मजा आ जाए ....

Anil Pusadkar October 13, 2009 at 1:03 AM  

अलबेला जी ये बात आप कंहा से पकड़ लियें।वैसे मैं नकल उतारने मे उस्ताद था/हूं।एक बार इंटर कालेज क्रिकेट खेलने बिलासपुर गये।शाम को सारी टीम स्टेडियम मे बैठी हुई थी तब मैने अपने स्पोर्टस अफ़सर आदरणीय मेने सर की आवाज़ की नकल उतारी और उनकी आवाज़ और स्टाईल मे बाकी लोगो से बात करने लगा। हंसी-मज़ाक के दौर मे पता ही नही चला कि कब सर आ गये और पीछे खडे चुपचाप सुनने लगे।अचानक जब उनकी आवाज़ मे पुसदकर सुना तो सन्न रह गया।और उसके बाद जो उन्होने कहा वो तो मेरे पांव तले की ज़मीन खिसका गया।उनका दूसरा डायलाग था तुम तो बढिया एक्टिंग कर लेते हो तुम्हारे बाबूजी को बताना पड़ेगा।मै और वो बहुत पुराने दोस्त हैं और सालो बाद मिलेंगे।मै आऊंगा घर तुम्हारे।बस फ़िर क्या था हाथ-पांव जोड़ कर माफ़ी मांगी और बचे।मेरे वरीष्ठ और बड़े भाई तुल्य दिवाकर मुक्तिबोध अक्सर तनाव के क्षणों मे मुझसे स्टाफ़ की नकल उतारने के लिये कहा करते थे और सारा माहौल हल्का हो जाता था।वैसे एक्टर तो अपन बड़े है मगर हिरो कभी नही बन पाये।आपने बना दिया ।ये आपका प्यार है और बड्प्पन भी।इसे मै कभी नही भूलूंगा।

राजीव तनेजा October 13, 2009 at 8:17 AM  

लगता है कि अनिल जी से कभी मिलना ही पड़ेगा

संगीता पुरी October 13, 2009 at 8:52 AM  

वाह !! आपके पोस्‍ट से पुसादकर जी के बारे में एक नई जानकारी मिली .. धन्‍यवाद !!

शरद कोकास October 21, 2009 at 12:37 AM  

भई क्यो एक अच्छे लेखक की हत्या करने पर तुले हो ,, हम तो चाहते है कि लेखक अनिल ऐसे सम्वाद लिखे जिसे हर् अभिनेता अदा करे आखिर लेखक अभिनेता से बड़ा होता है ।

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