रात न ढले तो कभी
भोर नहीं होती बन्धु
सांझ न ढले तो कभी तम नहीं होता है
लोहू तो निकाल सकता
तेरे पाँव में से
कांच से मगर घाव कम नहीं होता है
जीने की जो चाह है तो
मौत से भी नेह कर
डरते हैं वो ही जिनमें दम नहीं होता है
सच मानो जब तक
पीर का काग़ज़ न हो
कवि की कलम का जनम नहीं होता है
hindi hasyakavi sammelan in mangalore by MRPL
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शानदार, शानदार, शानदार …………………
शानदार और जानदार रहा मंगलूर रिफ़ाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड द्वारा
राजभाषा विभाग के तत्वाधान में डॉ बी आर पाल द्वारा आ...
10 years ago
14 comments:
साधू साधू साधू !!
क्या खूब कहा डरते वही हैं जिनमें दम नहीं होता, बहुत सुन्दर अलबेली रचना,
बहुत खूब
बहुत सुंदर लिखा आप ने .
धन्यवाद
पीर के कागज़ पर कवि की कलम का जन्म यह बहुत ही सुन्दर बिम्ब है अलबेला भाई और यही यथार्थ है ।
इस रचना ने मन नोह लिया।
पीर का कागत और कलम ---
बहुत खूब
बहुत बढिया बात कह दी आपने
जय हो!! बहुत उम्दा!
बहुत ही सुंदर भाव और अभिव्यक्ति के साथ लिखी हुई आपकी ये शानदार रचना दिल को छू गई!
कम शब्दों मे काम की बात।
यही तो आपकी खूबी है जी!
बहुत खूब बात कही है. पर ये एक दम से संजीदा कैसे हो गए बंधू?
wihangam rachna
nice
अलबेला भाई, बहुत खूब, कमाल कर दिया.
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