ग़मगुसारों की निगाहें तीर सी क्यूँ है
शायरी में दर्द की तासीर सी क्यूँ है
हसरतें थीं कल बिहारी सी हमारी
आज दिल की आरज़ूएं मीर सी क्यूँ है
उनके आते ही सुकूं था लौट आता
सामने वो हैं तो शब शमशीर सी क्यूँ है
ला पिलादे मयफ़िशां अन्दाज़ ही से
दिख रही मय आज मुझको शीर सी क्यूँ है
हिन्द तो 'अलबेला' कितने साल से आज़ाद है
हम पे लेकिन अब तलक ज़ंजीर सी क्यूँ है
10 comments:
waah .........ek se badhkar ek sher........lajawaab
बहुत सुन्दर भाव की गज़ल
मुकम्मल
आपकी तरह मीर को ही तो सब धर्मों से प्रेम था , आखरी शे'अर तो है ही लाजवाबः 'हिन्दुस्तान तो 'अलबेला' कितने साल से आज़ाद है, हम पे लेकिन अब तलक जंजीर सी क्यूं है,
नो वोर्ड्स टू से
इस ग़ज़ल को पढ़ कर मैं वाह-वाह कर उठा।
बहुत सुन्दर
वाह-वाह
वाह-वाह
वाह-वाह
हसरतें थीं कल बिहारी सी हमारी
आज दिल की आरज़ूएं मीर सी क्यूँ है
ye line to ultimate hai
'हिन्दुस्तान तो 'अलबेला' कितने साल से आज़ाद है,
हम पे लेकिन अब तलक जंजीर सी क्यूं है,
बहुत बढिया..
एक बार फिर अलबेला जी आपका अंतिम शेर गहरी चोट दे गया....
हम पे लेकिन अब तलक ज़ंजीर सी क्यों हैं.....
वाह!!
sunder gazal.lekin shayri main agar dard ki taseer na ho to wo beasar hoti hai albelaji.
Post a Comment