वाह रे योद्धाओ !
निकाल लिए लट्ठ अपने अपने
और
बल दिखा रहे हो धर्म का
उस धर्म का
जिसे सिर्फ़ माना है........जाना नहीं तुमने !
क्योंकि जो जान लेता है धर्म को
वह ऐसी मूर्खतायें नहीं करता ...........
जो जान लेता है वह शान्त हो जाता है
तेरा मेरा नहीं करता
हद है तुम्हारी जहालत की................
हद है तुम्हारी ज़लालत की ..............
तुम घमण्ड करते हो धर्म पर ?
सिर्फ़ अपने धर्म पर ?
क्यों भाई ?
दूसरे का धर्म क्या किसी और ने बनाया है ?
क्या उनका ख़ुदा अलग
तुम्हारा ईश्वर अलग है ?
तुम त्यौरियां तान रहे हो उस धर्म के नाम पर
जो तुम्हारा है ही नहीं............
जिसे तुमने कमाया नहीं
जिसे तुमने बनाया नहीं
जो तुम्हें सिर्फ़ इसलिए मिल गया है
क्योंकि तुम एक ख़ास घर में पैदा हो गए हो....
मगर याद रखो...
पैदा अपनी मर्ज़ी से नहीं हुए हो !
हिन्दू बनने के लिए तुमने हिन्दू
या मुस्लिम बनने के लिए मुस्लिम माँ को
अपनी मर्ज़ी से चुना था ?
क्या जन्म से पहले तय किया था कि
क्या बनना है ?
नहीं न !
तो फ़िर वह धर्म तुम्हारा कैसे हो गया ?
और किस अधिकार से तुम दूसरे धर्म को
नीचा बताने पर तुले हो ?
अरे हाँ !
तुम तो गंवार भी नहीं हो................
पढ़े लिखे हो !
क्या तुमने पढ़ लिख कर भी कुछ नहीं सीखा ?
पढ़े लिखे जाहिलो !
कूपमंडूको !
निकलो ज़रा अपनी कुआनुमा केंचुली से बाहर..........
देखो धर्म क्या कहता है ?
देखो ...धर्म का स्वर्णिम अतीत
सुनो धर्म का पवित्रतम संगीत
गाओ वह भाव भरा मधुर गीत
जिसे गाते गाते
शम्स तबरेज़ अपनी खाल खिंचवा लेता है
लेकिन सच से विमुख नहीं होता........
गुरु तेग बहादुर बलिदान देते हैं
पर धर्म का दामन नहीं छोड़ते...........
मीरा ज़हर पचा लेती है
सरमद खड़े खड़े जान दे देता है
यीशु सूली पे लटक जाता है
कबीर की कुटिया और पलटू को उनकी दूकान में
ज़िन्दा जला दिया जाता है
एक नहीं
अनेक नहीं
अनगिन उदाहरण हैं
ये साबित करने के लिए
कि धर्मांध केवल तुम ही नहीं
तुम से बड़े बड़े तुम से पहले हो चुके हैं
लेकिन उनके निशाँ तुम्हें ढूंढने से भी नहीं मिलेंगे
जबकि धर्म पर चलने वालों को कोई मिटा नहीं पाया
धर्म पर चला प्रहलाद तुमने पढा होगा !
धर्म पर चला सुकरात तुमने पढा होगा !
तुम्हें क्या सिखाना ?
तुम सीखे सिखाये तोते हो....
वही बोलोगे जो तुमने रट रखा है...........
मेरे पास भी कहाँ वक्त है तुमसे माथा मारने का
लेकिन एक बात मेरी ध्यान से सुन लो !
मरने के बाद तो तुम्हें
अपने इन दुष्कर्मों के कारण नरक में जाना ही है
जीते जी क्यों नरक भोग रहे हो ?
कोई नहीं पूछेगा मरने के बाद तुमसे उस दरबार में
कि तुम हिन्दू हो या मुसलमान !
इसाई हो या सिख साहिबान !
कहाँ रहते थे अमेरिका या हिन्दुस्तान !
क्या करते थे नौकरी या अपनी दूकान !
कहाँ ठिकाना शमशान या कब्रस्तान !
वहाँ सिर्फ़ कर्म देखे जायेंगे
इसलिए कर्म ऐसे करो कि तुम्हारा और
तुम्हारे धर्म का गौरव बढे...........
न कि नाक कटे...........
तुम्हारे कर्म इतने उज्ज्वल हों कि ख़ुद बोलें
तुम्हें न चिल्लाना पड़े कि
मेरा धर्म महान !
तुमसे ज़्यादा सार्थक काम तो फ़िल्मी गीतकार कर गए
ये लिख कर कि
" गोरे उसके काले उसके ,
पूरब पश्चिम वाले उसके
सब में उसी का नूर समाया
कौन है अपना कौन पराया
सबको कर परणाम तुझको अल्लाह रखे..........."
_____बात अभी ख़त्म नहीं हुई है
_____शेष फ़िर ...अगली फुर्सत में
hindi hasyakavi sammelan in mangalore by MRPL
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शानदार, शानदार, शानदार …………………
शानदार और जानदार रहा मंगलूर रिफ़ाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड द्वारा
राजभाषा विभाग के तत्वाधान में डॉ बी आर पाल द्वारा आ...
10 years ago
13 comments:
NEK KHYALO SE BHARI PADI HAI RACHANA ........EK UDARWADI KHYAL SE SAJJI OUR SAWARI KHYAL........BAHUT HI SUNDAR ......AGALE ANK KA INTAJAR HAI............
बहुत ही सुन्दर अलबेला जी!!!
बेवजह जंग करता है जब जाहिल,
जो जबरदस्त धर्मान्ध होता है,
तो कवि को भी दुःख होता है,
उसका हृदय भी आक्रान्त होता है,
फिर जन्म होता है उस कविता का
जो जाहिलों का नाश कर दे,
और खत्म करके ही वैमनष्यता को
कवि का हृदय फिर शान्त होता है!
जबर्दस्त !!!!!!!!!
आज तो सही धार्मिक चर्चा छेड़ी है, भाई.
बहुत सही बात कही है.
यह रचना अपनी एक अलग विषिष्ट पहचान बनाने में सक्षम है।
तीखी...धारदार शैली में लिखी गई एक प्रेरक कविता....
बहुत-बहुत बधाई इस अविस्मरणीय रचना के लिए
वाह अलबेला जी आज तो अलबेली बातें सुनायीं, इसी ब्लाग में धर्म से संबन्धित बहुत कुछ सुना रखा है आपने, याद ना हो तो पिछली पोस्टस झांक लेना जिन दिनों आपने 'मां की चौ' पे तुकबंदी की थी, जब तुम अघाओ तो ठीक दूसरे अघायें तो गलत क्यूं हो जाता है,
आपकी ये रचना इतनी लाजवाब लगी कि मैं ब्यां नहीं कर सकता ।
वो लोग अगर समझना चाहें तो आपकी ये रचना मन में उगे हुए वैमनस्यता के खरपतवारों को नष्ट करने में एक कीटनाशक का कार्य कर सकती है ।
आभार्!
कैरानवी भाई से सहमत
सही है।
बहुत सुंदर कविता कहीआप ने, लेकिन कुछ लोग हर बात को अपने से जोड कर क्यो देखते है??
wo Isliye Raj ji ki chor ki dadhi me hi tinka hota hai...
Jai Hind
बहुत जबरदस्त रचना । धर्म का असली अर्थ समझाने वाली ।
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