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Albela Khatri

हास्य कवि अलबेला खत्री का विनम्र प्रणाम - प्रियदर्शिनी स्व. इन्दिराजी के नाम


श्रीमती इन्दिरा गांधी की निर्मम हत्या और उसके बाद दिल्ली समेत

अनेक नगरों me हुए भीषण नरसंहार पर लिखे तात्कालीन मुक्तक आज

25 साल बाद भी रोंगटे खड़े कर देते हैं मेरे...........


भले ही काव्य की दृष्टि से ये बचकाना हो सकते हैं क्योंकि तब मैं नया नया

लिखारी था लेकिन पोस्ट ज्यों का त्यों ही कर रहा हूँ ताकि shraddhaanjali

ज्यों की त्यों ही पहुंचे............


तीन मुक्तक : इन्दिराजी के नाम


बेशक तेरे जाने की ख़ुद तुझको फ़िकर हो

रो - के याद लेकिन ये सारा जहाँ करेगा

जिस मुल्क़ को सरसाया तूने खून अपना दे कर

सलामी--अक़ीदत वो हिदोस्तान देगा



फिर आई तेरी याद कलेजा मसल गई

रोकी बहुत आँखें बहुत आँसू निकल गया

गर एक गुल पे गिरती, तो हाल ये होता

बिजली गिरी है ऐसी कि गुलशन ही जल गया



ख़ल्क से हर रिश्ता -- जज़्बात तोड़ कर

रहबर चले जाते हैं, निज पद-चिन्ह छोड़ कर

एहसां - फ़रामोशी दरख्त कैसे करेगा उस से

सींचा हो जिसने लोहू -- ख़ुद को निचोड़ कर


31 अक्टूबर 1984, शाम 6 बजे
01 नवम्बर 1984 रात 10 बजे



3 comments:

अवधिया चाचा October 31, 2009 at 1:07 PM  

बहुत खूब अलबेला जी क्‍या खूब लिखा नगरों me मुक्‍तक वाकई रोंगटे खडे कर देते हैं,

अवधिया चाचा
जो कभी अवध ना गया

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' October 31, 2009 at 4:29 PM  

प्रियदर्शिनी इन्दिरा जी को हमारा भी नमन!

राजीव तनेजा October 31, 2009 at 6:31 PM  

इन्दिरा जी को विनम्र श्रधांजली

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