श्रीमती इन्दिरा गांधी की निर्मम हत्या और उसके बाद दिल्ली समेत
अनेक नगरों me हुए भीषण नरसंहार पर लिखे तात्कालीन मुक्तक आज
25 साल बाद भी रोंगटे खड़े कर देते हैं मेरे...........
भले ही काव्य की दृष्टि से ये बचकाना हो सकते हैं क्योंकि तब मैं नया नया
लिखारी था लेकिन पोस्ट ज्यों का त्यों ही कर रहा हूँ ताकि shraddhaanjali
ज्यों की त्यों ही पहुंचे............
तीन मुक्तक : इन्दिराजी के नाम
बेशक तेरे जाने की ख़ुद तुझको फ़िकर न हो
रो - के याद लेकिन ये सारा जहाँ करेगा
जिस मुल्क़ को सरसाया तूने खून अपना दे कर
सलामी-ए-अक़ीदत वो हिदोस्तान देगा
फिर आई तेरी याद कलेजा मसल गई
रोकी बहुत आँखें बहुत आँसू निकल गया
गर एक गुल पे गिरती, तो हाल ये न होता
बिजली गिरी है ऐसी कि गुलशन ही जल गया
ख़ल्क से हर रिश्ता -ए- जज़्बात तोड़ कर
रहबर चले जाते हैं, निज पद-चिन्ह छोड़ कर
एहसां - फ़रामोशी दरख्त कैसे करेगा उस से
सींचा हो जिसने लोहू -ए- ख़ुद को निचोड़ कर
31 अक्टूबर 1984, शाम 6 बजे
01 नवम्बर 1984 रात 10 बजे
hindi hasyakavi sammelan in mangalore by MRPL
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शानदार, शानदार, शानदार …………………
शानदार और जानदार रहा मंगलूर रिफ़ाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड द्वारा
राजभाषा विभाग के तत्वाधान में डॉ बी आर पाल द्वारा आ...
10 years ago
3 comments:
बहुत खूब अलबेला जी क्या खूब लिखा नगरों me मुक्तक वाकई रोंगटे खडे कर देते हैं,
अवधिया चाचा
जो कभी अवध ना गया
प्रियदर्शिनी इन्दिरा जी को हमारा भी नमन!
इन्दिरा जी को विनम्र श्रधांजली
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