अगर हम उस उच्चतर और गम्भीरतर चेतना में जाना चाहें
जो भगवान को जानती और उनके अन्दर ज्ञानपूर्वक निवास करती है,
तो हमें निम्न प्रकृति की शक्तियों से मुक्त होना होगा और भागवत
शक्ति की उस क्रिया के प्रति अपने को उद्घाटित करना होगा जो हमारी
चेतना को दिव्य प्रकृति की चेतना में रूपान्तरित कर देगी
-अरविन्द घोष
हमें निम्न प्रकृति की शक्तियों से मुक्त होना होगा
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मैं अलबेला खत्री भी आपको एक सौगात देना चाहता हूँ.......
आज इस विराट हिन्दी ब्लॉग जगत के अलावा फेस बुक पर ,
इ मेल पर और फोन पर जिन महानुभावों ने मुझे मेरे जन्मदिन
की शुभकामनायें और बधाइयां दे कर मेरा दिन ख़ुशनुमा बनाया
है उन सभी के प्रति मैं अपनी हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त करता हूँ , आभार
प्रकट करता हूँ और बड़े प्रसन्न हृदय से सभी के उदगार स्वीकार
करता हूँ ।
900 से भी ज़्यादा sms मिले हैं अब तक इसलिए सबका नाम
उल्लेखित करना उचित नहीं है, लेकिन एक बात की सचमुच मुझे
ख़ुशी है कि दुनिया भर से हिन्दी और हिन्दी हास्य प्रेमियों ने मुझे
आज अपना आशीर्वाद दिया है । आज बी एस पाबला जी का ब्लॉग भी
मेरे लिए शुभचिन्तन की ध्वजा ले कर खड़ा है जिस पर अभी तक
दो दर्जन लोग हस्ताक्षर कर चुके हैं ।
मित्रो !
आपने मुझे अप्रतिम उपहार दिया है स्नेह का तो मेरा भी फ़र्ज़ बनता
है कि मैं आपका मुँह मीठा कराऊं - तो लीजिये............प्रतीक रूप में
आप सब को हाज़िर नाजिर मानते हुए मैं ये पाँच रसगुल्ले, दो
लड्डू और चार काजू कतली के साथ साथ दो तीन बादाम रोल
भी आपकी ओर से खा लेता हूँ ताकि सबका मुँह मीठा हो जाये
...........इसके बाद एक और सौगात आप को आज के दिन देना
चाहता हूँ, शायद आपको पसन्द आये :
मैं अलबेला खत्री सुपुत्र भगवानदास खत्री उम्र 46 वर्ष, निवासी
सूरत आपको आज ये वचन देता हूँ कि आज के बाद मैं अपनी
लेखनी से और अपनी वाणी से किसी का दिल नहीं दुखाऊंगा ।
भले ही कोई मुझे कितना भी प्रेरित करे अथवा विवश करे, मैं जान
बूझ कर किसी भी नारी अथवा पुरूष अथवा बेनामी का शब्दों की
कारीगरी से मज़ाक तब तक नहीं उड़ाऊंगा जब तक कि बात
बर्दाश्त के बाहर न हो जाये......... ।
रही बात मेरे लेखन में कभी कभी अश्लीलता के प्रयोग की, तो वो
भी छोड़ दूंगा, लेकिन धीरे-धीरे.......अभी उसमे समय लगेगा ।
क्योंकि हिन्दी ब्लॉग जगत को अभी उन शब्दों के प्रयोग की बड़ी
ज़रूरत है जो मैं कभी-कभी प्रयोग करता हूँ । पाठक खींचने के लिए
और अधिकाधिक लोगों से सरोकार बनाने के लिए यदि मुझे
कभी कभी लाचारीवश कोई गरमागरम आलेख लिखना पड़े तो
आप निभा लेना, गुस्सा मत करना क्योंकि मैं नहीं चाहता कि मेरी
दूकान से कोई भी ग्राहक खाली हाथ लौटे.........अगरबत्ती से लेकर
कण्डोम तक हर वस्तु जैसे एक ही दूकान पर मिल जाती है इसी
प्रकार मेरे विभिन्न ब्लॉग भी आपकी हर प्रकार से सेवा करते
रहेंगे, ये मेरा वादा है ।
हाँ ज़बरदस्ती का नंगापन, गंदापन और बेहूदापन न तो मैंने कभी
किया है और न ही आगे कभी करूँगा । इसका भरोसा दिलाता हूँ ।
आपका एहसानमन्द
आपका विनम्र साथी,
-अलबेला खत्री
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अभी चार साल और जीना चाहता हूँ.....
अभी कुछ फ़र्ज़ अदा करने बाकी है
अभी कुछ क़र्ज़ अदा करने बाकी है
अभी माँ की आँखों के आँसू सूखाने हैं
अभी मुर्शिद से किए कौल निभाने है
अभी मन का मैल धोना शुरू नहीं किया
अभी तेरी याद में रोना शुरू नहीं किया
अभी मैं तेरी देहरी के काबिल नहीं हूँ
अभी मैं अलमस्त-ओ-गाफ़िल नहीं हूँ
चार साल और देदे मौला !
चार साल और देदे दाता !
छियालीस साल तो केवल दिन काटे है
जग में फूल कम, कांटे ज़्यादा बाँटे हैं
अब कुछ साल जीना चाहता हूँ
ज़हर ज़माने का पीना चाहता हूँ
डर मुझे मौत का नहीं, अपने आप का है
अपने ही कर्मों का है, अपने ही पाप का है
तेरे दरबार में
शर्मिन्दा नहीं होना चाहता
इसलिए
या मेरे वाहेगुरु !
या मेरे रब !
बस..थोड़ी सी मोहलत और बख्श दे ........
चन्द साँसों की दौलत और बख्श दे
चार साल बाद आज ही के दिन उठा लेना
पचास पूरे होते ही पास अपने बुला लेना
तेरा कृतज्ञ
तेरा एहसानमंद
तेरा कर्ज़दार
-मैं
पहले दर्द हुआ है पैदा, पीछे मर्द हुआ है
आज एक मुक्तक प्रस्तुत कर रहा हूँ..........जिसे मैं अक्सर अपने
कवि-सम्मेलनीय मंच संचालन के दौरान काम में लेता हूँ । ये नहीं
पता कि इसका रचयिता कौन है लेकिन मुझे यह बड़ा प्रिय है ।
आप भी आनन्द लें इसका :
दर्द दर्द क्यों चीख चीख कर चेहरा ज़र्द हुआ है
दर्द हमेशा से ही मानव का हमदर्द हुआ है
मेरी अगर न मानो, अपनी माँ से जा कर पूछो
पहले दर्द हुआ है पैदा, पीछे मर्द हुआ है
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अच्छे विचारों पर यदि अमल न किया जाये तो वे अच्छे स्वप्नों से बढ़ कर नहीं है
विचार भाग्य का दूसरा नाम है
- स्वामी रामतीर्थ
मनुष्य में जैसे विचार उत्पन्न होते हैं,
वैसे ही वह काम कर सकता है
-अरविन्द घोष
अच्छे विचारों पर यदि अमल न किया जाये
तो वे अच्छे स्वप्नों से बढ़ कर नहीं है
-एमर्सन
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सम्भोग करना है तो पूजा की तरह आराम से करो दोस्त ! नाश्ते की तरह फटाफट नहीं.........
कल रात मैंने अपने एक अभिन्न मित्र को फोन किया तो वो बड़े मूड
में था और ख़ुश भी । बोला - यार....दस मिनट बाद बात करता हूँ ।
अभी तेरी भाभी के साथ ज़रूरी काम कर रहा हूँ । मैंने कहा - भाई
कोई जल्दी नहीं है आराम से सारे काम निपटा, अपन कल बात
करते हैं ।
ये कह के मैंने फोन रख दिया और चिट्ठाजगत में लोगों के ब्लॉग
पढ़ने लगा । अभी तीन कवितायें भी न पढ़ी थीं कि उसका फोन
आ गया । मैंने कहा - बड़ी जल्दी निपटा दिया ........वो बोला -
यार टाइम किसके पास है ? अपन तो हर काम फटाफट निपटाते
हैं । उसे तो मैंने कुछ नहीं कहा, लेकिन मुझे ये बात पसन्द नहीं
आई उसकी.........क्योंकि मेरा मानना है कि या तो कोई काम
करो मत , अगर करते हो तो तरीके से करो ।
सम्भोग एक ऐसी क्रिया है जो सलीके से और बड़े खुशनुमा मूड
में फुर्सत के साथ हो, तभी करना चाहिए........वरना पूरा मज़ा
किरकिरा हो जाता है । जल्दबाजी में केवल अपना काम निकाल
लेना सम्भोग नहीं है दोस्त ! ये तो बलात्कार और दैहिक
शोषण जैसा कुछ है . आपका साथी भले आपसे शिकायत न
करे, लेकिन वो मन ही मन आपको उल्लू का पट्ठा समझना
शुरू कर देता है ।
याद रखें.........सम्भोग करने से पहले स्वयं को स्नान अदि से
स्वच्छ करके , खुशबू इत्यादि से महका लें, बढ़िया सा संगीत
लगा दें और सारे फोन, मोबाइल इत्यादि बन्द कर दें । धीरे- धीरे
शुरूआत करें और जब भूमिका बन जाये तभी काव्यपाठ करें,
अन्यथा श्रोता की वाह वाह नहीं मिलेगी.............बीच में कोई भी
और बात न करें, किसी को याद न करें..........एक ही विषय चलना
चाहिए - उस समय का आनन्द !
जिस प्रकार पूजा -पाठ में कोई विघ्न नहीं पड़ना चाहिए उसी प्रकार
सहवास में भी कोई विघ्न नहीं पड़ना चाहिए और सबसे ज़रूरी बात
ये है कि तूफ़ान गुजरने के बाद भी उसी खुशनुमा मूड में रह
कर अपने साथी के साथ लिपट कर सोना चाहिए, सहलाना चाहिए
और मीठी-मीठी बातें करते रहना चाहिए क्योंकि सम्भोग केवल १०
मिनट के दैहिक प्रवेश और घर्षण क्रिया का नाम नहीं है बल्कि
सम्भोग एक महान कला है और उस कला में पारंगत होना
विवाहित लोगों के लिए ज़रूरी है ।
लगता है तुम्हारे टूथपेस्ट में सचमुच नमक है
मेरे देश के नालायक नेताओ !
तुम किसी काम के नहीं हो...........
महंगाई डायन तुम्हें खाती नहीं है
गरमी से भी जान जाती नहीं है
रेल हादसे तुम्हारा कुछ बिगाड़ नहीं पाते
नक्सलवादी भी एक बाल उखाड़ नहीं पाते
बाढ़ का पानी तुम्हारे घर में आता नहीं है
स्वाइन फ्लू का भी तुम से नाता नहीं है
प्रजा रो रही है पर तुम्हारी आँखें नम नहीं हैं
क्योंकि इन हालात का तुम्हें कोई ग़म नहीं है
तुम्हारे चेहरे पे लावण्य और दान्तों में चमक है
लगता है तुम्हारे टूथपेस्ट में सचमुच नमक है
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जब हम रुक जाते हैं तो अन्धेरे में पड़ जाते हैं
जुगनू तभी तक चमकता है जब तक कि वह उड़ता रहता है ;
यही हाल हमारा और हमारे मन का है ।
जब हम रुक जाते हैं तो अन्धेरे में पड़ जाते हैं
-बेली
वह अभागा है और सर्वनाश के कगार पर है ,
जो वह नहीं करता जिसे वह भली भान्ति कर सकता है,
बल्कि वह करने की महत्वाकांक्षा रखता है
जिसे वह कर नहीं सकता ।
-गेटे
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माननीय रेलमंत्री के नाम .......अलबेला खत्री का पैगाम
माननीय नामाकूल और वाहियात रेल मन्त्री ममता बनर्जी जी,
सादर लाहनत मलामत !
आशा है आपको कोई फ़र्क नहीं पड़ा होगा कल की रेल दुर्घटना में
मरने वालों के परिवारजन की चीत्कारों से.........क्योंकि आप जिस
मिट्टी की बनी हैं उसमे ब्रह्मा जी ने बेशर्मी और निर्ममता का
सीमेन्ट मिक्स कर रखा था सो ये उम्मीद करना बेकार है कि
आप द्रवित हुई होंगी और भविष्य में ऐसी कोई विभीषिका न हो
इसका कुछ जतन किया होगा लेकिन एक निवेदन करना है
आपसे.............हो सके तो कृपया इस पर अमल करें ।
अगली बार जब आप रेल बजट पेश करें तो कृपया इन तथ्यों का
उल्लेख अवश्य करें ताकि पब्लिक इसके लिए पहले से ही
मूड बना कर तैयार रहे ।
# आपके कार्यकाल में रेल दुखान्तिकाओं में मृतकों की संख्या :
१ इस महीने में इतने
२ इस महीने में इतने
३ इस महीने में इतने
कुल इतने और चालू वर्ष का निर्धारित लक्ष्य

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थोड़ा सा रबड़ चढ़ा लेता तो तुझ जैसी नालायक औलाद भी नहीं होती
शहर में ऑटो रिक्शा और taxi की हड़ताल के कारण रंगलाल
और उसका बेटा नंगलाल रात को ग्यारह बजे पैदल ही चल कर घर
जा रहे थे । अब रात के सन्नाटे में बूढ़े रंगलाल की लाठी ठक ठक
की ज़ोरदार आवाज़ कर रही थी......जो कि नंगलाल को अत्यन्त
कर्कश लग रही थी और बर्दाश्त नहीं हो रही थी ।
नंगलाल : बापू, तुममे भी अक्ल नहीं है .....अरे ज़रा सा रबड़ चढ़ा लेते
तो ये लाठी घिसती भी नहीं और इतनी आवाज़ भी नहीं होती ।
रंगलाल : ठीक कहा बेटा ! थोड़ा सा रबड़ चढ़ा लेता तो बाप को
बेअक्ल कहने वाली तुझ जैसी नालायक औलाद भी नहीं होती ।
ख्याली सहारण और अलबेला खत्री अहमदाबाद में
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शान्ति मुस्कुराती हुई चलती है
अगर तुम घर में शान्ति चाहते हो,
तो तुम्हें वह करना चाहिए जो गृहिणी चाहती है
-डेनिश कहावत
मौन के वृक्ष पार शान्ति का फल उगता है
-अरबी कहावत
आनन्द उछलता - कूदता जाता है ;
शान्ति मुस्कुराती हुई चलती है
-हरिभाऊ उपाध्याय
दादा कोंडके और अलबेला खत्री फ़िल्म येऊ का घरात ?
के हिन्दी संस्करण " चिट्ठी आई है " की ऑडियो रिकोर्डिंग
के अवसर पर मुम्बई के एम्पायर स्टूडियो में
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एक डिस्प्रिन गोली दो सौ रूपये की ? किसी का बाप भी रोक नहीं सकता अब मुम्बई को शंघाई बनने से ?
बम्बई, बम्बई थी भाई और मुम्बई, मुम्बई है भाई !
27 साल पहले की वो बम्बई जो मैंने पहली बार देखी थी और 20
तक मेरी कर्म-भूमि रही, वो बम्बई और आज की मुम्बई में जो
भयानक अन्तर आया है उसका विकराल सौन्दर्य कल ही मैंने देखा
और इस बात पर भरोसा हो गया कि अब मुम्बई को शंघाई बनने से
कोई नहीं रोक सकता । किसी का बाप भी नहीं रोक सकता ।
कल सुबह - सुबह जब मैं बोरीवली स्टेशन पर उतरा और ऑटो रिक्शा
पकड़ने बाहर सड़क पर आया तो अचानक मांसपेशियों में खिंचाव होने
से बड़ी पीड़ा होने लगी । जल्दी से मैंने वहां पड़े ईंटों के एक चट्टे पर
अपना बैग रखा और जेब से डिस्प्रिन गोली निकाल कर, पानी की
बोतल में डाल दी ताकि उसके घुलते ही पी सकूँ । गोली का चमकीला
कागज़ मैंने फैंक दिया सड़क पर, बस यहीं से मुम्बई शंघाई बनना
शुरू हो गया ।
एक लड़का आया जिसकी कमीज़ पर इंग्लिश में क्लीन-अप लिखा था,
बोला- निकालो दो सौ रुपया...........मैंने पूछा किस बात का ? बोला-
सड़क पर कचरा फैंकने का । मैंने पूछा - कौनसा कचरा ? उस भले
आदमी ने मेरा फैंका हुआ डिस्प्रिन का कागज़ दिखाया । बोला- ये !
और रसीद काट कर मेरे हाथों में थमादी.........जो कि मुम्बई महानगर
पालिका के स्वास्थ्य विभाग की है ।
मैंने कहा - भैया मैं तो बाहर से आया हूँ, दर्द हो रहा था, इसलिए गोली
खा ली, अब कागज़ कहाँ फैंकूं ? तुम बताओ..........वो बोला - ये काम
मेरा नहीं, मेरा काम सिर्फ़ पैसा लेना है क्योंकि मुम्बई को शंघाई बनाना
है और उसमे दो सौ रूपये कम पड़ रहे हैं इसलिए निकालो........जल्दी
जल्दी । मैंने उसे दो सौ रूपये दिए और ख़ुद को शाबासी दी कि चलो
आज अपन किसी काम तो आये अब जब मुम्बई को शंघाई बनाए जाने
का इतिहास लिखा जायेगा तो मेरा भी नाम याद रखा जाएगा ।
भैया, खाना लग चुका है और गुड्डू की माँ छाती पर आ कर खड़ी हो गई
है इसलिए बाकी की बातें अगली पोस्ट में.......लेकिन वो बड़ी रोचक
बातें हैं पढ़ने ज़रूर आना

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बाद में झुनझुना बजाने से अच्छा है, अभी से डंका बजादो
जैसा कि मैंने पिछली पोस्ट में कहा था
http://albelakhari.blogspot.com/2010/07/blog-post_3512.html
आओ..........कुछ ख़ास बिन्दुओं पर ध्यान दें :
हर तरफ़ एक ही समाचार
......मिलावट ! मिलावट !! मिलावट !!!
एक ही तरीके से मिलावट !
एक साथ पूरे देश में मिलावट !
दूध में यूरिया, सब्जियों पर रंग, फलों में घातक रसायन,
घी में चर्बी, मसालों में लकड़ी बुरादा और मिटटी- सीमेन्ट के
साथ साथ मावा में, पानी में व शीतल पेयों में जानलेवा
केमिकल्स........
रोज़ कहीं न कहीं, कुछ न कुछ पकड़ा जाता है और रोज़ वह हर
चैनल की मुख्य खबर बनती है । आमतौर पर होता ये आया है कि
हर चैनल की अपनी एक अलग और ख़ास न्यूज़ होती है, अलग
हैड लाइन होती है लेकिन मिलावट के मामले में मैंने अनुभव
किया है कि सभी बड़े चैनल्स पर एक ही अन्दाज़ में, वही वही
फुटेज़ और वही वही शब्दावली एक साथ एक ही टाइम पर
दिखती है अर्थात कोई भी चैनल लगाओ, वही नज़ारा दिखता है
मानो सभी चैनल एक ही जगह से चल रहे हों ।
इसका मतलब क्या है ?
मेरे ख्याल में इसका मतलब ये है कि सब कुछ एक साजिश
के तहत पूर्वनिर्धारित है ।
और खुल के बताऊँ तो यों समझो कि ये काम आम भारतीय
व्यापारियों का नहीं है । बल्कि बाहरी ताकतों का है जो हमें
डरा डरा कर मारना चाहती है । डराती है मीडिया के ज़रिये और
मारती है मिलावट के ज़रिये । भारत का कोई भी देशवासी इतना
कमीना नहीं हो सकता कि चन्द पैसों के लिए खाद्य वस्तुओं को
ज़हर बनादे ।
अरे ये तो वो धर्म-भूमि है जहाँ लोग दूसरों के प्राण बचाने के
लिए अपनी जान पर खेल जाते हैं । कोई रक्तदान करता है, कोई
नेत्रदान करता है, कोई अंग दान करता है, कोई देह दान करता
है.........संकट के समय लोगों के लिए अपने घर के सब दरवाज़े
खोल देने वाला यहाँ का व्यापारी बन्धु इतना निर्मम नहीं हो
सकता, ऐसा मेरा दृढ विश्वास है ।
अब यों भी सोचा जाये कि जब दुश्मन देश हमें ख़त्म करने के
लिए अथवा बर्बाद करने के लिए यदि आतंकवादी भेज सकता
है, नक्सलवादियों और अलगाववादियों को मदद कर सकता है,
नकली करंसी भेज सकता है, गोला बारूद भेज सकता है और
जासूस भेज सकता है तो वो नियोजित रूप से मिलावट क्यों
नहीं कर सकता ?
सतर्कता विभाग और गुप्तचर एजंसियों को इस ओर तुरन्त
ध्यान देना चाहिए और जो भी मिलावट के लिए दोषी मिले उसे
देशद्रोही मान कर मौके पर ही गोली मार देने का प्रावधान तुरन्त
संविधान में पारित होना चाहिए.....जहाँ तक मेरा यकीं है, सब के
सब बंगलादेशी या अन्य देशों के लोग ही मिलेंगे । रही बात
मीडिया की, तो इस मामले में भी गड़बड़ है । अरे जब
फार्मास्युटिकल कम्पनियां डाक्टरों से मनमानी दवाइयाँ लिखवा
कर अपना माल बेच सकती हैं तो पैसे के दम पर एक ही न्यूज़ को
हाईलाईट करना कौनसा मुश्किल काम है ।
कुल मिला कर इस मिलावट को महज़ मिलावट नहीं, बल्कि देश
के विरुद्ध युद्ध के रूप में देखा जाना चाहिए । दुश्मन का लक्ष्य ये
है कि हम इतना डर जाएँ मिलावट से कि सब कुछ खाना छोड़ दें,
खाना पीना छोड़ देंगे तो कमज़ोर हो जायेंगे और अगर खायेंगे तो
बीमार होकर मर जायेंगे.....दोनों ही तरफ़ दुश्मन का उल्लू सीधा
होता है । तीसरा एक अमोघ बाण है उनके पास जिससे बचना
नामुकिन है । वो ये है कि जब रोज़-रोज़ मिलावट करने वाले पकड़े
जायेंगे और सरकार कोई ठोस कारवाही नहीं करेगी तो किसी न किसी
दिन पब्लिक भड़केगी और कानून अपने हाथ में ले लेगी.........इस से
देश में अराजकता व गृहयुद्ध की स्थिति भी बन सकती है....ये सारी
बातें ध्यान में रख कर यदि सरकार अपने तंत्र को काम में लगाये
तो लोकतन्त्र बचेगा वरना मेरे भाई ! न लोक बचेगा और न तन्त्र ।
बाद में झुनझुना बजाने से अच्छा है,
अभी से डंका बजादो ।
जय हिन्दी !
जय हिन्द !!
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