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Unknown
Thursday, May 31, 2012
सांस में सुर सनसनाना प्यार का
ज़िन्दगी है ताना बाना प्यार का
मौत से कह दूंगा, रुक जा दो घड़ी
आने वाला है ज़माना प्यार का
यों तो हर मौसम का अपना रंग है
पर लगे मौसम सुहाना प्यार का
उफ़ जवानी का ये आलम जानेमन
और उस पर उमड़ आना प्यार का
चीज है अनमोल, पर बाज़ार में
नहीं मिलेगा चार आना प्यार का
बैठे ठाले यों ही कुछ कुछ लिख दिया
ख़ुद-ब-ख़ुद बन बैठा गाना प्यार का
है मुकद्दरमन्द जिसको मिल गया
ज़िन्दगी में गुनगुनाना प्यार का
उस घड़ी मत रोकना "अलबेला" को
जब लबों पर हो तराना प्यार का
जय हिन्द !
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gayika Sadhna Sargam, Sangeetkar Arnab aur geetkar Albela Khatri |
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Unknown
Wednesday, May 30, 2012
गड़गड़ गड़गड़ गड़गड़ गड़गड़ धुप्प
गड़गड़ गड़गड़ गड़गड़ गड़गड़ धुप्प
आओ आओ आओ,
आजाओ आजाओ आजाओ
हमारी दुकान पर आओ
बिना पूछे घुस जाओ
नो एंट्री वाला कोई गेट नहीं है
देना कोई सर्टीफिकेट नहीं है
मुफ़्त का मज़ा है जी भर लूटो
कोई नहीं कहेगा यहाँ से फूटो
ये मर्दों का मज़मा है, आराम से देखो
दिल है कमज़ोर तो ज़रा थाम के देखो
हमारे यहाँ रोज़ नई पोस्ट लगाई जाती है
और बिना भेदभाव सबको दिखाई जाती है
ऊँगली करने वालों का टूट गया तिलिस्म है
ब्लॉग्गिंग की दुनिया में ये उज्जड किस्म है
हम ऊँगली नहीं करते, लट्ठ या लट्ठा करते हैं
लोग हमारी दुकान पे आके हँसी-ठट्ठा करते हैं
छुपाने जैसी हमारे यहाँ कोई रचना नहीं है
लाज के मारे हमको किसी से बचना नहीं है
किसी से कोई प्रमाण पत्र माँगा नहीं जाता
रचना को किसी खूँटी पर टाँगा नहीं जाता
हमारी रचना सबकी सेवा में डे-नाईट उपलब्ध रहती है
नारी हो नर हो या किन्नर, किसी को ना नहीं कहती है
पेट्रोल के भाव बढे तो बढे, हमारे ब्लॉग के नहीं बढे
हम अभी तक चने के झाड़ पर बिलकुल नहीं चढ़े
टिप्पणियां का बॉक्स भी यहाँ सबके लिए खुला है
पाठकों को यहाँ रचनाकारी का हर रंग मिला है
स्वास्थ्य से लेकर व्याधि तक
सम्भोग से लेकर समाधि तक
यहाँ हर विषय और विकार मिलता है
धारा क्या, मस्ती का धार मिलता है
जहां शटर डाउन है वहाँ क्यों जाओ
आपको मज़ा लेना है तो यहाँ आओ
हमारे फ़नलैंड का कोई लोर्ड ही नहीं है
कुत्तों से सावधान वाला बोर्ड भी नहीं है
आ जाओ, आजाओ,आजाओ,
वैसे आना है तो आओ
नहीं तो भाड़ में जाओ
-जय हिन्द !

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Tuesday, May 29, 2012
एक था ताऊ.........ताऊ रामपुरिया .
बड़ा मस्तमौला, बड़ा हसमुख, मिलनसार और यारबाज़..........कई
वर्ष तक वो हिन्दी ब्लॉग्गिंग पर छाया हुआ था .........बड़ा आदमी
था, लाखों रूपये के ऑफिस में बैठ कर, करोड़ों का बिजनैस परे
रख कर, फ़ोकट की ब्लॉग्गिंग किया करता था . मुझे बहुत पसन्द
था . मैं उससे कई बार मिला ...उसने कई बार चाय पिलाई, खाना भी
खिलाया और मुझे jahan जाना होता था वहाँ के लिए टैक्सी भी
कम किराये में करवा के दी.
आजकल न तो ताऊ रामपुरिया दिख रहा है और न ही उसकी
शनिवारी पहेली का पन्ना नज़र आता है . अपनी टिप्पणी में सबको
राम राम करने वाला प्यारा ताऊ क्या ब्लॉग्गिंग को राम राम कर
गया है या हमसे रूठा हुआ है ..........मेरा दिल आज दिल फ़िल्म
के गाने में ताऊ को बुलाता है........कोई जाये ज़रा ढूंढ़ के लाये,
न जाने कहाँ ताऊ खोगया ............
कृपया ध्यान दें : इस आलेख में ताऊ को ताउजी नहीं कहा गया,
न ही उसके आगे सम्मानजनक संबोधन लगाया गया है . इसका
बुरा न मानें क्योंकि ताऊ हरियाणा का था और हरियाणा में
सम्मानजनक सम्बोधन का प्रयोग ज़रा कम ही होता है
जय हिन्द !
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प्यारे मित्रो !
ओपन बुक ऑन लाइन के तरही मुशायरे में मैंने भी तीन ग़ज़लें पेश की थीं. उन्हीं में से एक आज आपकी खिदमत में रख रहा हूँ ........अगर उचित समझें तो अपनी राय से अवगत कराएं
धन्यवाद - जय हिन्द !
माना कि सर पे धारते दस्तार हम नहीं
पर ये न समझना कि सरदार हम नहीं
पीहर पहुँच के पत्नी ने पतिदेव से कहा
लो अब तुम्हारी राह में दीवार हम नहीं
क्यों मारते हैं हमको ये शहरों के शिकारी
जंगल में जी रहे हैं पर खूंख्वार हम नहीं
डाक्टर की फीस सुनके, एक रोगी रो पड़ा
बोला कि मिलने आ गये, बीमार हम नहीं
तारीफ़ कर रहे हैं तो झिड़की भी झाड़ेंगे
अहबाब हैं तुम्हारे, चाटुकार हम नहीं
मुमकिन है प्यार दे दें व दिल से दुलार दें
मुफ़लिस को दे सकेंगे फटकार हम नहीं
माँ बाप से छिपा, घर अपने नाम कर लें
इतने सयाने, इतने हुशियार हम नहीं
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Monday, May 28, 2012
किंग खान का हो गया, स्वप्न आज साकार
आईपीएल का चैम्पियन बन गया केकेआर
बन गया केकेआर, डोन के ग्यारह डोनी
ले गये स्टम्प उखाड़, देखते रह गये धोनी
कोलकाता की बढ़ गई आन बान और शान
बहुत मुबारक आपको विजयश्री किंग खान
जय हिन्द !
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हास्यकवि अलबेला खत्री का सम्मान करते हुए अहमदाबाद में गुजरात हिंदी समाज के मंत्री राज कुमार भक्कड़ |
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Sunday, May 27, 2012
महक ये
उसी के मन की है
जो चली आ रही है
केश खोले
दहक ये
उसी बदन की है
जो दहका रही है
हौले हौले
महल मोहब्बत का आज सजा संवरा है
आग भड़कने का आज बहुत खतरा है
डर है कहीं आज
खुल न जाए राज़
क्योंकि मैं आज थोड़ा सुरूर में हूँ
उसी की मोहब्बत के गुरूर में हूँ
जो है मेरा अपना...........
सदा सदा से ..........
मेरा मुर्शिद
मेरा राखा
मेरा पीर
मेरा रब
मेरा मालिक
मेरा सेठ
मेरा बिग बोस
वो आज उतरा है भीतर मेरी टोह लेने
मैं सहमा खड़ा हूँ फिर इम्तेहान देने
जानते हुए कि फिर रह जाऊंगा पास होने से
आम फिर महरूम रह जाएगा ख़ास होने से
लेकिन मन लापरवाह है
क्योंकि वो शहनशाह है
लहर आएगी, तो मेहर कर देगा
मुझे भी अपने नूर से भर देगा
मैं मुन्तज़िर रहूँ ये काफ़ी है
मैं मुन्तज़िर रहूँ ये काफ़ी है
मैं मुन्तज़िर रहूँ ये काफ़ी है
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हास्यकवि सम्मेलन राजकोट में अलबेला खत्री मंचस्थ कवि मित्रों के साथ |
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Saturday, May 26, 2012
प्यारे भाई अनवर जमाल,
अक्सर तुम मेरे ब्लॉग पर आ कर, मेरी पोस्ट पर टिप्पणी के
बहाने अपने कुछ लिंक छोड़ते रहते हो, परन्तु स्वामी दयानंद
सरस्वती को तुमने कहीं का नहीं छोड़ा यार. इतनी दुर्गति कर दी
उनकी कि वे ख़ुद आज शर्म के मारे रो रहे होंगे वैकुण्ठ में कि
हाय रे ये क्या किया ..........
शाबास........सत्यार्थ प्रकाश के विवेचन की आड़ में जिस प्रकार
तुमने अपनी लेखनी और चतुराई का दुरूपयोग किया है वह
लाजवाब है . इसके लिए तुम्हें जितना भी पुरस्कार मिला होगा
वह कम होगा . तुम गज़ब के छिद्रान्वेषण करते हो प्यारे, हिन्दू
धर्म और मान्यता की तो तुमने फाड़ कर रख दी........गज़ब की
रिसर्च की यार........तुम्हारी टुच्ची और वैमनस्यपूर्ण आलेख माला
पढ़ते पढ़ते मुझे यकीन हो गया है कि तुम यों ही किसी मान्यता पर
भरोसा नहीं करते होवोगे, जब तक परख नहीं लेते ठोक बजा कर
तब तक तुम एतमाद नहीं करते . इस बिना पर मैं दावे के साथ
कह सकता हूँ कि तुमने तो अपने बाप को भी बाप कहने से पहले
उनका डीएनए टेस्ट कराया होगा और कई जगह करवाया होगा
तब कहीं जा कर बाप को बाप कहा होगा . वैसे कहना मत किसी
से..........अगर नहीं कराया हो तो अभी भी करा सकते हो क्योंकि
स्वामी दयानंद का जो अपमान तुमने किया है वो अलबेला खत्री की
नज़र में आगया है . और संयोग की बात है कि मैंने भी स्वामी दयानंद
का ख़ूब अध्ययन किया है . तो तैयार रहना भाई...मेरी आने वाली एक
पोस्ट आपसे कुछ सवाल करने वाली है .
जय हिन्द !
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गीतकार अलबेला खत्री, संगीतकार रामलक्ष्मण और गायक कुमार सानू फिल्म " चिट्ठी आई है" की ऑडियो रिकार्डिंग पर |
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Unknown
जल्दबाज़ी यों तो किसी भी काम में अच्छी नहीं होती, लेकिन लेखन के
मामले में यह बहुत ज़्यादा खतरनाक हो जाती है. लोग अर्थ का अनर्थ
निकालते समय नहीं लगाते. ऐसा ज्ञान मुझे आज सुबह सुबह तब प्राप्त
हुआ जब मैंने कंप्यूटर ऑन किया . देखा तो "लोमड़ी" वाली पोस्ट के
लिए बहुत सारी ऐसी टिप्पणियां मिलीं जो मेरी पोस्ट के लिए हो ही
नहीं सकती थीं . मैंने सबको रोक दिया और हमारी वाणी का एक
चक्कर लगाया तो समझ आया कि कुछ लोग आल रेडी किसी के पीछे
पड़े हुए हैं और ख़ुद को बाघ-घाघ कहते हुए किसी तथाकथित लोमड़ी
को घेरने के उपक्रम में व्यस्त हैं .
अब ये दुर्संयोग है कि मेरी पोस्ट भी लोमड़ी शीर्षक से आई और उन
लोगों ने समझ लिया कि मैंने उनके उस सन्दर्भ में लिखा है. लिहाज़ा
मैं ये बात साफ़ कर दूं कि मेरी लोमड़ी अलग है, कहने को वह भी एक
नारी है परन्तु उसकी रचना भगवान ने कुछ अलग ढंग से की है . वह
केवल मुझ में दिलचस्पी रखती है . इसलिए मैं तो उसके लिए प्रार्थना
कर रहा हूँ ईश्वर से..........
अनजाने में मेरे द्वारा एक ऐसी महिला को तकलीफ पहुंची जिनका मैं
स्वयं सम्मान करता हूँ और जो मुझे छेड़ती भी नहीं है. इसलिए उस
मित्र महिला के सम्मान में मैं मेरी लोमड़ी वाली पोस्ट डिलीट कर
रहा हूँ ताकि मेरा कन्धा किसी और की बन्दूक के लिए इस्तेमाल न हो
जय हिन्द !
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hasyakavi albela khatri & khyali saharan on stage |
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Unknown
Friday, May 25, 2012
आखिर तुम बाज़ नहीं आई . मेरे विनम्र अनुरोध वाले आलेख के तुमने
परखच्चे उड़ा दिए . अपने अहंकार में मदमस्त तुम वस्त्र उतार कर मेरे
सामने उन्मुक्त कैबरे करने लगी....ये भी न सोचा कि अब मैं लंगोट
बाँध चुका हूँ .
आज तुमने अपनी 18 गलतियों से भरी पोस्ट में पुनः मुझे छेड़ा है,
रब जाने ऊँगली की है या अंगूठा घुसेड़ा है परन्तु मैं अब भी शान्त हूँ
और तुम्हें मुफ़्त सलाह देता हूँ कि जीवन में यदि किसी चीज़ का अभाव
है तो उसे पाने की कोशिश करो . अपने दैहिक शून्य को मानसिक
रोग मत बनाओ वरना कहीं की न रहोगी .
प्रभु आपको स्वास्थ्य और सद्बुद्धि प्रदान करे ताकि मुझे दोबारा तुम
जैसे अवांछित विषय पर कुछ न लिखना पड़े. अन्यथा लंगोट बाँधने
में ही वक्त लगता है, खोलने में नहीं.............
नारी हो तो नारीत्व की मर्यादा में रहो..बार-बार मुझे चाटने की कोशिश
मत करो. कहीं ऐसा न हो......तुम्हारी ज़ुबान पर छाले पड़ जाएँ .
जय हिन्द !
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हास्यकवि अलबेला खत्री सोनी टीवी पर पाकिस्तानी कलाकार सुल्तान को हरा कर कॉमेडी का बादशाह ख़िताब प्राप्त करते समय सुल्तान, राजू श्रीवास्तव, काशिफ और राखी सावंत के साथ |
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Unknown
Thursday, May 24, 2012
मेरे देश के नालायक नेताओ !
तुम किसी काम के नहीं हो...........
महंगाई डायन तुम्हें खाती नहीं है
गरमी से भी जान जाती नहीं है
रेल हादसे तुम्हारा कुछ बिगाड़ नहीं पाते
नक्सलवादी भी एक बाल उखाड़ नहीं पाते
बाढ़ का पानी तुम्हारे घर में आता नहीं है
स्वाइन फ्लू का भी तुम से नाता नहीं है
प्रजा रो रही है पर तुम्हारी आँखें नम नहीं हैं
क्योंकि इन हालात का तुम्हें कोई ग़म नहीं है
तुम्हारे चेहरे पे लावण्य और दान्तों में चमक है
लगता है तुम्हारे टूथपेस्ट में सचमुच नमक है
जय हिन्द !
-अलबेला खत्री
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Unknown
भाव बढ़ा पेट्रोल का, रुक गई सबकी सांस
गवर्नमेंट ने कर दिया फिर जनता को बांस
फिर जनता को बांस, मच गई त्राहि त्राहि
उपभोक्ता का रुदन ये दिल्ली सुनती नाहिं
महंगाई ले डूबेगी, घर के बजट की नाव
दिन दिन बढ़ता जा रहा सब चीजों का भाव
___________________
सियासत एक की दुल्हन नहीं कइयों की रानी है
ये है बदनामी मुन्नी की तो शीला की जवानी है
सियासी लोगों की आँखों में जो घड़ियाली आँसू हैं
इलेक्शन में तो मोती है, पर उसके बाद पानी है
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हास्यकवि अलबेला खत्री जयपुर में काव्य प्रस्तुति देते हुए |
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Unknown
Wednesday, May 23, 2012
जब एक बार मैंने लिखित रूप से मान लिया कि भावावेश में आकर मेरे
द्वारा लिखी गईं कुछ पोस्ट्स अच्छी नहीं थी, घटिया थी, वैमनस्यपूर्ण
थी और उन सबको डिलीट करते हुए मैं भविष्य में सौहार्द्रपूर्ण सार्थक
पोस्ट ही लिखूंगा . तो अब और क्या कहने को बाकी रह गया भाई ?
क्यों मुझे बार बार उकसाने को गुमनामी के नाम से ऐसी टिप्पणियां
कर रहे हो जो कि कोई भी बर्दाश्त नहीं कर सकता . क्यों मुझे
unknown नम्बरों से फोन करके मेरा उपहास उड़ाया जा रहा है ?
एक बार पुनः विनम्र प्रार्थना करता हूँ कि ये ओछी हरकतें बन्द करो,
आप जो भी हो, मैं आपको आपके दड़बे से खींच निकालने में सक्षम
हूँ . परन्तु शान्ति की राह पर चलना चाहता हूँ ..मुझे चलने दो मेरी गति
से.......शूल बन कर राह में मत लेटो..........प्लीज़ .
जय हिन्द !
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सूरत में चैम्बर्स ऑफ़ कॉमर्स द्वारा आयोजित हास्य महोत्सव का सूत्र संचालन करते हुए हास्यकवि अलबेला खत्री |
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Unknown
Tuesday, May 22, 2012
प्यारे मित्रो, बन्धुओ, स्वजनों और समस्त परिचितों/अपरिचितो !
विनम्र प्रणाम
मुझे यह स्वीकार करते हुए अत्यन्त खेद और लज्जा के साथ साथ गहरे
दुःख का अनुभव हो रहा है परन्तु सच कहने से पीछे नहीं हटूंगा कि अपनी
तार्किक क्षमता अथवा अपरोक्ष अहंकार के चलते मैंने ब्लॉग्गिंग के इस
मंच पर बहुत से ऐसे आलेख लिखे जो मुझे नहीं करने चाहिए थे. परन्तु इन्सान
कितना भी चतुर क्यों न हो, भूल करता ही है . मुझसे भी भूलें हुईं और बहुतायत
में हुईं. भले ही उनके पीछे मेरा मक़सद केवल सच का साथ देना था लेकिन
विनम्रता के अभाव में वे सब आलेख मेरे लेखन पर काले धब्बों की भान्ति
अंकित हो गये और इसके लिए मेरा मन पश्चाताप कर रहा है .
सबसे ज़्यादा दुःख तो इस बात का है कि बाहर के इस फोकटिये चक्कर में
भीतर की यात्रा बन्द हो चुकी थी. आज से मैं एक नई शुरूआत करना चाहता हूँ .
भीतर की दुनिया बाहर की दुनिया से ज़्यादा चमकदार और सच्ची होने के
बावजूद अहम के अन्धेरे में मैंने उसे छिपा दिया था . आज सब परदे उतार कर
पुनः उजाले में आना चाहता हूँ .
अत्यन्त हार्दिक भाव से मैं यह कहना चाहता हूँ कि आप में से जिस किसी
ने भी मेरा दिल दुखाया हो, मुझे उत्तेजित करके अनर्गल लेखन के लिए प्रेरित
किया हो या वाद-विवाद में धकेला हो, मैं उन सबको हृदय से क्षमा करता हूँ
साथ ही जिन लोगों को मेरे द्वारा दुःख अथवा कष्ट पहुंचा हो, जिनके लिए मैंने
अपमानपूर्ण शब्दों का प्रयोग किया हो, उन सबसे कर बद्ध हो कर क्षमा चाहता हूँ .
भविष्य में आप में से किसी को कोई तकलीफ़ मेरे द्वारा न पहुंचे, इसका मैं पूरा
प्रयास करूँगा और इस क्रम में सबसे पहले मैं उन सब आलेखों को अथवा पोस्ट्स
को डिलीट कर रहा हूँ ताकि आज के बाद मेरे ब्लॉग पर उनका नाम-ओ-निशाँ न
रहे . अभी इतना ही......क्योंकि जिस शरीर पर मुझे अभिमान था वो अब ज़्यादा
दिन चलने वाला नहीं है और वैमनस्य अथवा रंजिश का बोझ लेकर मैं इस
जहान से जाना नहीं चाहता . अतः. क्षमाप्रार्थना के लिए ही आज यह पोस्ट लिखी है
जय हिन्द !
अलबेला खत्री
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हास्यकवि अलबेला खत्री मुंबई के एक समारोह में प्रेस को संबोधित करते हुए |
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Unknown
Monday, May 21, 2012
नमस्कार मित्रो !
कल मैंने आपसे अपने एक मुक्तक के जवाब में कुछ लिखने का
अनुरोध किया था परन्तु कुछ ख़ास रिस्पोंस नहीं मिला . अतः कौल के
मुताबिक मैं उसका जवाब छाप रहा हूँ . ये रहा जवाबी मुक्तक..इसी के नीचे
वह भी है जिसके जवाब में ये लिखा गया . अब आप चाहें तो इसके
जवाब में एक मुक्तक लिख भेजें.........मेरा जवाब कल प्रकाशित होगा .
जय हिन्द !
उसी ने फिर बनाया है, बनाना काम है उसका
बनाने में कुशल है वो, बड़ा ही नाम है उसका
मेरी हस्ती उसी से है, मेरी मस्ती उसी से है
मेरे भीतर की बस्ती में मुक़द्दस धाम है उसका
_________________________
वो तन में भी समाया है, वो मन में भी समाया है
जिधर देखूं उधर जलवा, उसी का ही नुमाया है
मेरा मुझमे नहीं कुछ भी, जो कुछ भी है उसी का है
मिटाया था कभी जिसने, उसी ने फिर बनाया है
 |
अग्रवाल विकास ट्रस्ट मुंबई के आयोजन में काव्यपाठ करते अलबेला खत्री और मंच पर उपस्थित हैं सर्वश्री शैल चतुर्वेदी, डॉ उर्मिलेश शंखधर, हुल्लड़ मुरादाबादी, लता हया और महेश दुबे |
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Unknown
Saturday, May 19, 2012
वो तन में भी समाया है, वो मन में भी समाया है
जिधर देखूं उधर जलवा, उसी का ही नुमाया है
मेरा मुझमे नहीं कुछ भी, जो कुछ भी है उसी का है
मिटाया था कभी जिसने, उसी ने फिर बनाया है
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हास्यकवि अलबेला खत्री और कॉमेडी कलाकार विनोद कुमार |
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Unknown
Friday, May 18, 2012
कंजूस आदमी का गड़ा हुआ धन
ज़मीं से
तभी बाहर निकलता है
जब वह
स्वयं ज़मीं में गड़ जाता है
- शेख सादी
 |
रचनाकार साहित्य संस्थान के मंच से नरेश कापडिया का सारस्वत सम्मान करते हुए श्री सुबचन राम, मुकेश अग्रवाल और श्री अतुल तुलस्यान |
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Unknown
Thursday, May 17, 2012
एक गोरी सांवरी सी मेरे गीतों की फ़ैन हो गई
एक छोरी बावरी सी मेरे गीतों की फ़ैन हो गई
पनघट जाती-जाती गाए
जल भर लाती-लाती गाए
आती गाए, जाती गाए
सखियों से बतियाती जाए
पल में सौ बल खाती जाए
गीत वो मेरे गाती जाए
कितनी बेचैन हो गई, कितनी बेचैन हो गई ...
रे मेरे गीतों की ....
उसकी छैल छबीली आँखें
चंचल आँखें , कटीली आँखें
बिजली सी चमकीली आँखें
मोटी-मोटी मछीली आँखें
नीली और नशीली आँखें
आबे-हया से गीली आँखें
तीर्थ उज्जैन हो गईं, तीर्थ उज्जैन हो गईं ...
रे मेरे गीतों की ...
जब जब मेरी याद सताये
उसकी मोहब्बत अश्क़ बहाये
तन घबराये, मन घबराये
उसका अखिल यौवन घबराये
जग-जग सारी रैन बिताये
पल दो पल भी नींद न आये
रातें कुनैन हो गईं, उसकी रातें कुनैन हो गईं
रे मेरे गीतों की ...
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Wednesday, May 16, 2012
ना तो आपने बुलाणा है, ना ही मुझे आणा है। ना मुझे प्रीतिभोज खाणा है,
न बारात में जाणा है, ना मुझे सेहरा गाणा है और ना ही आपकी घोड़ी
के आगे भंगड़ा पाणा है। फिर मैं क्यूं फोकट में परेशान होऊं भाई?
मुझे क्या मतलब है आपकी शादी से ? हां...आप अपनी शादी के स्वागत
समारोह में कोई हास्य कवि-सम्मेलन कराने का ठेका मुझे दो, तो मैं
कुछ सोचूं। अब मैं देश के अन्य लोगों की तरह फ़ुरसितया तो हूं नहीं
कि लट्ठ लेके आपके पीछे पड़ जाऊं या हाथ जोड़ के गिड़गिड़ाऊं कि
राहुल बाबा शादी करा लो ! शादी करा लो!!
भई आप बालिग हैं, अपनी मर्ज़ी के मालिक हैं, अपने निर्णय स्वयं
कर सकते हैं। जीवन आपका वैयक्तिक है, घर-संसार आपका वैयक्तिक
है और शरीर भी आपका ही वैयक्तिक है तो हम कौन होते हैं आपकी
खीर में चम्मच चलाने वाले... यदि आपको लगता है कि सब कुछ
ठीक-ठाक है, कहीं कोई प्रोब्लम नहीं है तथा शादी के बाद आप सारी
ज़िम्मेदारियां अच्छे से निभालेंगे तो कर लीजिए... और यदि ज़रा भी
सन्देह हो तो मत कीजिए... इसमें कौनसा पहाड़ उठा के लाना है। ये
कौनसा राष्ट्रीय चर्चा का विषय है जो देश के करोड़ों लोगों ने हंगामा
कर रखा है और आपकी माताश्री पत्रकारों को जवाब देते-देते थक
गई हैं कि भाई उसे जब शादी करानी होगी, करा लेगा। अब आपकी
दीदी प्रियंका यदि घर में भाभी लाने को उतावली हों, तो ये उनका
अपना निर्णय है और उनको पूरा अधिकार है कि वे आप पर
दबाव बना कर, अथवा प्यार से पुचकार कर आपको ब्याह के लिए
राज़ी कर ले, लेकिन आम जनता ख़ासकर टी.वी. चैनल वालों को
क्या मतलब है यार ? क्यों उनसे आपका सुख बर्दाश्त नहीं हो रहा ?
क्यों वे आपकी आज़ादी और उन्मुक्तता झेल नहीं पा रहे ?
ये सच है सोनियानंदन ! कि जिसने शादी नहीं की उसने अपना जीवन
बिगाड़ लिया, लेकिन मज़े की बात तो ये है, जिसने की उसने भी क्या
उखाड़ लिया ? सो हे राजीवकुलभूषण ! आप शादी कराओ तो मुझे कोई
फ़र्क नहीं पड़ता और न करवाओ तो भी कोई फ़र्क नहीं पड़ता। मैं तो
केवल और केवल इतना कहना चाहता हूं कि यदि आपको ऐसा लगे
कि आप शादी कराने के योग्य हो और वाकई गृहस्थी का भार उठाने
के काबिल हो, तो करा ही लेना, ज्य़ादा देर मत करना। क्योंकि कुछ
कार्य ऐसे होते हैं जो समय पर ही कर लेने चाहिए वरना कभी नहीं
होते। शादी भी उन्हीं में से एक है, सही समय पे शादी हो गई तो ठीक,
वरना सारी ज़िन्दगी यों ही रहना पड़ता है। मेरी बात का भरोसा न
हो तो अपने आस-पास नज़र दौड़ाओ.... अनेक उदाहरण मिल जाएंगे...
एपीजे अब्दुल कलाम, अटल बिहारी वाजपेयी, नरेन्द्र मोदी, ममता
बनर्जी, जयललिता व मायावती जैसे कितने ही उदाहरण आपके
सामने हैं। ये लोग राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री तो बन गए
लेकिन शादीशुदा नहीं हो सके...क्योंकि इन लोगों ने केवल एक गलती
की थी... अरे वही ...समय पर शादी नहीं करने की। अब ये लोग बहुत
पछताते हैं...रात-रात भर मुकेश के दर्द भरे गाने गाते हैं... अरे भाई
फूट-फूट के रोते हैं अपनी तन्हाई पर... लेकिन इनके आंसू पोंछने
वाला, इनकी पप्पी लेकर जादू की झप्पी देने वाला कोई नहीं है.... अब
नहीं है तो नहीं है, यार इसमें मैं क्या करूं ? मैं आऊं क्या ? मैंने कोई
ठेका ले रखा है इनके आंसू पोंछने का ?
मैं तो ख़ुद अपनी शादी करा के पछता रहा हूं.... जब तक कुंवारा था, शेर
था शेर.... किसी की परवाह नहीं करता था....जैसे आप नहीं करते हैं
लेकिन जब से ब्याहा गया हूं एकदम पालतू खोत्ता हो गया हूं। पहले इतनी
आज़ादी थी कि पलंग के दोनों ओर से चढ़ सकता था और दोनों ओर
से उतर भी सकता था... अब तो ज़रा सी जगह में दुबक कर सोना
पड़ता है क्योंकि बाकी जगह पर तो वो हाथी का अण्डा कब्ज़ा कर लेता है।
लोगबाग़ मुझे छेड़ते हैं। कहते हैं यार खत्री ! तेरी पत्नी तो तूफ़ान है
तूफ़ान, पूरे मौहल्ले को हिला रखा है.. मैं कहता हूं यार, बधाई मुझे दो
जो इस तूफ़ान में भी दीया जला रखा है। सो हे इन्दिराजी के लाडले पौत्र...
मिलाओ जल्दी से कुण्डली व गौत्र और हो जाओ हमारी तरह ज़ोरू के
गुलाम। हो जाओ ना भाई.... प्लीज......
जय हिंद !
-अलबेला खत्री
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he hanuman bachalo the new audio cd from albela khatri |
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Sunday, May 13, 2012
सूरत: बीती रात सुरती रसियाओं के लिए ठहाके और मस्ती लेकर आई
और चौपाटी स्थित तारामोती हाल में हँसी के फूल खिला कर गुज़र गई.
अलबेला खत्री की नई व्यंग्य कृति 'हे हनुमान बचालो' के लोकार्पण
अवसर आयोजित इस सुहानी शाम में कलासेवक नरेश कापड़िया
को सारस्वत सम्मान से भी नवाज़ा गया .
लाफ़्टर फेम टीवी सितारे राजन श्रीवास्तव, विनोद कुमार, राहुल इंगले,
अलबेला खत्री व निओमी पंड्या दर्शकों को जी भर हंसाने में सफल रहे.
आलम ये कि गर्मी और तपन के बावजूद लोग तीन घंटे तक कुर्सियों से
चिपके रहे . रचनाकार साहित्य संस्थान द्वारा आयोजित इस रंगारंग
हास्योत्सव में आयकर आयुक्त सुबचन राम, एडिशनल कलक्टर अजीत
खत्री, वरिष्ठ सी ए प्रदीप सिंघी, मुकेश खोर्डिया, अतुल तुलस्यान, संजीव
डालमिया समेत अनेक उद्योगपति, प्रशासनिक अधिकारी व कलाप्रेमी
उपस्थित रहे.
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Thursday, May 10, 2012
धन्य-धन्य ये धरती जिस पर ऐसे वीर जवान हुए
मातृ-भूमि की ख़ातिर जो हॅंसते हॅंसते क़ुरबान हुए
जिनकी कोख के बलिदानों पर गर्व करे मॉं भारती
आओ हम सब करें आज उन माताओं की आरती
आओ गाएं हम..
वन्दे मातरम् ...
वन्दे मातरम् ...
वन्दे मातरम् ...
ऑंचल के कुलदीप को जिसने देश का सूरज बना दिया
अपने घर में किया अन्धेरा, मुल्क़ को रौशन बना दिया
जिनके लाल मरे सरहद पर क़ौम की आन बचाने में
जान पे खेल गए जो मॉं के दूध का कर्ज़ चुकाने में
है उन पर बलिहारी, देश की जनता सारी
देश की जनता सारी, है उन पर बलिहारी
जो माताएं इस माटी पर अपने बेटे वारतीं
आओ हम सब करें आज उन माताओं की आरती... आओ गाएं हम...
जिनके दम पर फहर रहा है आज तिरंगा शान से
जिनके दम पर लौट गया है दुश्मन हिन्दोस्तान से
जिनके दम पर गूंजी धरती विजय के गौरव-गान से
जिनके दम पर हमें देखता जग सारा सम्मान से
है उन पर बलिहारी, देश की जनता सारी
देश की जनता सारी, है उन पर बलिहारी
जिनकी सन्तानें दुश्मन को मौत के घाट उतारतीं
आओ हम सब करें आज उन माताओं की आरती ... आओ गाएं हम...
जिन मॉंओं ने दूध के संग-संग राष्ट्र का प्रेम पिलाया
जिन मॉंओं ने लोरी में भी दीपक राग सुनाया
जिन मॉंओं ने निज पुत्रों को सीमा पर भिजवाया
जिन मॉंओं ने अपने लाल को हिन्द का लाल बनाया
है उन पर बलिहारी, देश की जनता सारी
देश की जनता सारी, है उन पर बलिहारी
जिनकी ममता रण-भूमि में सिंहों सा हुंकारती
आओ हम सब करें आज उन माताओं की आरती ... आओ गाएं हम...
वन्दे मातरम् ...
वन्दे मातरम् ...
वन्दे मातरम् ...
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Monday, May 7, 2012
देह की गंध
एक सी नहीं रहती
बदलती रहती है रंग
बदलते समय के संग
शैशव की गंध श्वेत होती है
किशोरवय में गुलाबी और यौवन में सुर्ख़ होती है
जो
अधेड़ावस्था में जोगिया होती हुई
बुढ़ापे में पीली हो जाती है
और
मौत पर काली हो जाती है
काली पड़ चुकी गंध में कोई और रंग चढ़ नहीं सकता
इसीलिए तो मानव का वय-रथ आगे बढ़ नहीं सकता
योनिद्वार से निकल कर
हरिद्वार तक की यात्रा करने वाला मनुष्य
पेट के नीचे से जन्म लेता है
और
जीवन भर पेट व पेट के नीचे की क्षुधा
भरने का प्रयास करता है
मगर अफ़सोस !
न तो पेट भर पाता है सदा के लिए
न ही पेट के नीचे की आग बुझा पाता है
घर्षण से लेकर स्खलन तक
अर्थात
सम्भोग से ले समाधि तक
तमाम रंग उभरते हैं उभारों की तरह
और
जलाते हैं मनुष्य को अंगारों की तरह
देह जब तक जीवित रहती, वासना में जलती है
इक धधकती आग हरदम तहे-दिल में पलती है
ये गाड़ी ज़ीस्त की ऐसे चलती है, ऐसे ही चलती है
-अलबेला खत्री
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Sunday, May 6, 2012
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Saturday, May 5, 2012
आज एक परिचित कन्या के लिए स्क्रिप्ट लिखते समय मैं भी
भावुक हो गया और लिखते लिखते ही रो पड़ा . उसके माता-पिता
की वैवाहिक वर्षगाँठ के अवसर पर उसके द्वारा बोलने के लिए
जो मैंने लिखा तो यह एहसास उमड़ आया कि बेटी कितनी
कोमलकांत, कितनी नाज़ुक और कितनी मासूम होते हुए भी
कितनी गहरी होती हैं
बेटी को जन्म देने से पहले कोख में मार देने वालो......लाहनत है
तुम पर...रब कभी माफ़ नहीं करेगा तुम्हारे पाप को.........
जय हिन्द
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Friday, May 4, 2012
ठहाकों की एक शाम,
सिल्कसिटी के नाम
सूरत : आगामी शनिवार की शाम सूरत को ठहाकों का ज़बरदस्त
उपहार मिलने वाला है . रचनाकार साहित्य संस्थान द्वारा 12 मई
की शाम चौपाटी स्थित सार्वजनिक एज्युकेशन सोसायटी के
तारा मोती ऑडिटोरियम में "ठहाकों की एक शाम- सिल्कसिटी
के नाम" आयोजित की है जिसमे दी ग्रेट इन्डियन लाफ्टर
चैलेन्ज के सुप्रसिद्ध हास्य सितारे राजन श्रीवास्तव,
विनोद कुमार और राजन इंगले के अलावा शेरो-शायरी की
मल्लिका शबीना अदीब भी अपनी प्रस्तुति देंगी. ठहाका नाईट
का रंगारंग संचालन सूरत निवासी लाफ़्टर चैम्पियन
अलबेला खत्री करेंगे.
इस अवसर पर श्री खत्री की नई ऑडियो सी डी "हे हनुमान
बचालो" का लोकार्पण होगा तथा शहर के जाने माने
कलाप्रेमी नरेश कापड़िया को उनकी अप्रतिम कला सेवा के
लिए सारस्वत सम्मान से अभिनंदित किया जायेगा जिसके
अंतर्गत उन्हें ग्यारह हज़ार रुपये नगद, सम्मान प्रतीक और
शाल-श्रीफल भेन्ट किये जायेंगे. समारोह की अध्यक्षता
आयकर आयुक्त मुंबई श्री सुबचन राम करेंगे जबकि मुख्य
अतिथि के रूप में एडिशनल कलक्टर सूरत श्री अजीत खत्री
तथा विशिष्ट अतिथि के रूप में सुप्रसिद्ध उद्योगपति श्री अतुल
तुलस्यान एवं श्री मुकेश अग्रवाल (खोर्डिया ) उपस्थित रहेंगे .
रचनाकार प्रवक्ता ने बताया कि गर्मी की इस भयंकर तपन में
यह कार्यक्रम एक ठंडी फुहार जैसा एहसास देगा .
जय हिन्द
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Tuesday, May 1, 2012
ख्याले यार में गुम वो जानेमन रहता क्यों नहीं है
मेरी तरह मस्ती के दरिया में बहता क्यों नहीं है
हया कैसी मोहब्बत में उसे, डर कैसा बदनामी का
वो मुझसे प्यार करता है तो फिर कहता क्यों नहीं है
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hasyakavi albela khatri along with singer pronita deshpande & her husband shekhar deshpande on u.s.a. tour |