ये ब्लोगर भी विचित्र प्राणी है भाई !
दुनिया का हर आदमी जहाँ ये चाहता है कि कोई भी बाहरी बन्दा
उसके काम पर टीका टिप्पणी न करे, वहीँ ब्लोगर चाहता है कि
हर आदमी उसके ब्लॉग पर टिप्पणी करे.............हा हा हा
कई बार तो मैं मेरे ब्लॉग पर आई किसी टिप्पणी पर बहुत ज़ोर से
हँसता हूँ । क्योंकि उस टिप्पणी का मेरी पोस्ट से दूर-दूर तक कोई
सम्बन्ध नहीं होता । साफ़-साफ़ दिखता है कि ये किसी और ब्लॉग
पर टीपने के लिए होगी जो कि गलती से मेरे यहाँ चस्पा हो गई है ।
लेकिन किसी भी काम की न होने के बावजूद मैं उसे डिलीट नहीं
करता, क्योंकि काम की हो, न हो, संख्या तो बढ़ रही है न ये
दिखाने के लिए कि देखो ! मेरे ब्लॉग पर कित्ती टिप्पणियां आई ।
उदाहरण मैंने मेरा दिया है, लेकिन कमोबेश सभी ब्लोगर्स का यही
हाल है । कई लोग तो गिनती रखते हैं कि उन्होंने फलां ब्लोगर को
कित्ती टिप्पणियां दी और बदले में उसने कित्ती लौटाई ? इस
चक्कर में वह ऐसे ब्लॉग ही पढ़ता और टीपता रहता है जिससे
उसका दैनन्दिन टिप्पणीय व्यवहार होता है । जब तक उनसे फ़ुर्सत
पाए तब तक समय बीत जाता है और वे ब्लॉग उसकी कृपा-दृष्टि
से अथवा पाठकीय कला से वंचित ही रह जाते हैं जिनमें कई बार
बहुत ही उम्दा मैटर होता है ।
पहले मेरा ये प्रबल मानना था कि टिप्पणी ब्लोगिंग में संजीवनी
का काम करती है । ख़ासकर नये और कच्चे ब्लोगर्स के लिए तो
बिलकुल हमदर्द के सिंकारा की भान्ति तुरन्त प्रभावकारी होती है
पर अब मैं ये मानता हूँ कि टिप्पणी सिवाय समय खराब करने,
सृजन रोकने, अन्य ब्लोगर्स की रचनायें पढ़ने में बाधक बनने
तथा फ़ोकट का सरदर्द देने के और कोई काम नहीं करती अगर
वह टिप्पणी उस पोस्ट से विमुख है और सिर्फ़ दोस्ती खाते में
दी गई है तो............
और इस निर्णय तक मैं इसलिए पहुंचा क्योंकि आज मैंने मुझे अब
तक मिली कुल 6 हज़ार से भी ज़्यादा सभी टिप्पणियां पढ़ी, ताकि
भविष्य में कहीं उनका उल्लेख कर सकूँ लेकिन अफ़सोस ! कुल
जमा 6-7 टिप्पणियां ऐसी मिलीं जो सचमुच टिप्पणियां थी बाकी
सब या तो मित्रवत प्रशंसा थी या फिर ऐसी बेतुकी और रटी-रटाई
शब्दावलियाँ जिनका कोई साहित्यिक व स्थायी मूल्य नहीं है ।
ऐसी टिप्पणियां लिखने वाले का भी समय बिगाड़ती हैं और पढ़ने
वाले का भी । अस्तु------------------
जो चल रहा है, भले चले लेकिन होना ये चाहिए कि दो लाइन की
टिप्पणी के बजाय दस लाइन की समीक्षा हो और पूर्वाग्रह से
मुक्त निष्पक्ष समीक्षा हो ताकि लेखक को सही दिशा भी मिले
और सन्तुष्टि भी कि उसके लेखन को टिप्पणी मिली है उसे नहीं ।
इस टीका -टिप्पणी का एक अत्यन्त रोचक व हास्यप्रद पहलू भी है
जिस पर आपको खूब हँसी आएगी लेकिन वो आपको कल पढ़ने को
मिलेगा ...क्योंकि अभी रात के डेढ़ बज चुके हैं और मुझे निन्दु आ
रही है।
शुभ रात्रि !
-अलबेला खत्री
hindi hasyakavi sammelan in mangalore by MRPL
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शानदार, शानदार, शानदार …………………
शानदार और जानदार रहा मंगलूर रिफ़ाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड द्वारा
राजभाषा विभाग के तत्वाधान में डॉ बी आर पाल द्वारा आ...
10 years ago
7 comments:
बात तो आपने काफी हद तक सही कही है कि यहाँ टिप्पणियों का हिसाब रखा जाता है कि उसने मुझे कितनी की?..और मैंने उसका एहसान उतारने के लिए पलट कर कितनी टिप्पणियाँ की? ...
लेकिन हर बार ऐसा नहीं होता... कई बार मैं छोटी टिप्पणियाँ सिर्फ इसलिए कर देता हूँ कि उसे से ज़्यादा कहने के लायक मैं खुद को नहीं समझता और कई बार इसलिए कि वो लेख मुझे इस लायक ही नहीं लगता कि उस पर ज़्यादा कुछ कहा जाए ...
टिप्पणी का हिसाब भी रखा जाता है इसलिये कि किसने दी और किसको वापस की-यह एक नई जानकारी है.
"दो लाइन की टिप्पणी के बजाय दस लाइन की समीक्षा हो और पूर्वाग्रह से मुक्त निष्पक्ष समीक्षा हो ताकि लेखक को सही दिशा भी मिले और सन्तुष्टि भी कि उसके लेखन को टिप्पणी मिली है उसे नहीं ।"
बिल्कुल सही कहा आपने!
baat to kafi thik lag rahi hai....esa hi hotahai shayad.
अलबेला भाई, इस सूत्र की सफ़लता/विफ़लता का तो पता नहीं, पर इसी बहाने से अपना एक ब्लोग चल निकला है , टिप्पी का टिप्पा, जिसकी सारी खुराक इसी पर निर्भर है ।वैसे ये दौर भी कभी न कभी तो खत्म होगा ही
अजय कुमार झा
बजा फ़रमाते हैं आप अलबेला जी। हम भी आज सोच रहे थे कि हमने अलबेला जी को कितनी टिप्पणी दी और उन्होंने ? हा हा।
ज्वलंत मुद्दा है ये भी एक किस्म का।
और आपकी यह बात सभी के लिए ग़ौर करने योग्य है कि-
टिप्पणी सिवाय समय खराब करने,सृजन रोकने, अन्य ब्लोगर्स की रचनायें पढ़ने में बाधक बनने तथा फ़ोकट का सरदर्द देने के और कोई काम नहीं करती अगर वह टिप्पणी उस पोस्ट से विमुख है और सिर्फ़ दोस्ती खाते में दी गई है तो............
आभार।
बात तो आपकी सही है लेकिन वो बेचारा भला क्या करे...जिसकी कविता, गजल इत्यादि के बारे में समझ बिल्कुल ही शून्य हो...वहाँ तो "वाह-वाह", "बहुत सुन्दर", "भावपूर्ण रचना" जैसी ही टिप्पणी की जा सकती है........निष्पक्ष समीक्षात्मक टिप्पणी तो रूचिपरक सामग्री पर ही हो सकती है......
अब आप पर एक टिप्पणी की उधारी चढ गई :)
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