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Albela Khatri

मैंने कित्ती टिप्पणियां दी और उसने कित्ती लौटाई ?




ये ब्लोगर भी विचित्र प्राणी है भाई !



दुनिया का हर आदमी जहाँ ये चाहता है कि कोई भी बाहरी बन्दा

उसके काम पर टीका टिप्पणी करे, वहीँ ब्लोगर चाहता है कि

हर आदमी उसके ब्लॉग पर टिप्पणी करे.............हा हा हा



कई बार तो मैं मेरे ब्लॉग पर आई किसी टिप्पणी पर बहुत ज़ोर से

हँसता हूँक्योंकि उस टिप्पणी का मेरी पोस्ट से दूर-दूर तक कोई

सम्बन्ध नहीं होतासाफ़-साफ़ दिखता है कि ये किसी और ब्लॉग

पर टीपने के लिए होगी जो कि गलती से मेरे यहाँ चस्पा हो गई है

लेकिन किसी भी काम की होने के बावजूद मैं उसे डिलीट नहीं

करता, क्योंकि काम की हो, हो, संख्या तो बढ़ रही है ये

दिखाने के लिए कि देखो ! मेरे ब्लॉग पर कित्ती टिप्पणियां आई



उदाहरण मैंने मेरा दिया है, लेकिन कमोबेश सभी ब्लोगर्स का यही

हाल हैकई लोग तो गिनती रखते हैं कि उन्होंने फलां ब्लोगर को

कित्ती टिप्पणियां दी और बदले में उसने कित्ती लौटाई ? इस

चक्कर में वह ऐसे ब्लॉग ही पढ़ता और टीपता रहता है जिससे

उसका दैनन्दिन टिप्पणी व्यवहार होता हैजब तक उनसे फ़ुर्सत

पाए तब तक समय बीत जाता है और वे ब्लॉग उसकी कृपा-दृष्टि

से अथवा पाठकीय कला से वंचित ही रह जाते हैं जिनमें कई बार

बहुत ही उम्दा मैटर होता है



पहले मेरा ये प्रबल मानना था कि टिप्पणी ब्लोगिंग में संजीवनी

का काम करती हैख़ासकर नये और कच्चे ब्लोगर्स के लिए तो

बिलकुल हमदर्द के सिंकारा की भान्ति तुरन्त प्रभावकारी होती है

पर अब मैं ये मानता हूँ कि टिप्पणी सिवाय समय खराब करने,

सृजन रोकने, अन्य ब्लोगर्स की रचनायें पढ़ने में बाधक बनने

तथा फ़ोकट का सरदर्द देने के और कोई काम नहीं करती अगर

वह टिप्पणी उस पोस्ट से विमुख है और सिर्फ़ दोस्ती खाते में

दी गई है तो............



और इस निर्णय तक मैं इसलिए पहुंचा क्योंकि आज मैंने मुझे अब

तक मिली कुल 6 हज़ार से भी ज़्यादा सभी टिप्पणियां पढ़ी, ताकि

भविष्य में कहीं उनका उल्लेख कर सकूँ लेकिन अफ़सोस ! कुल

जमा 6-7 टिप्पणियां ऐसी मिलीं जो सचमुच टिप्पणियां थी बाकी

सब या तो मित्रवत प्रशंसा थी या फिर ऐसी बेतुकी और रटी-रटाई

शब्दावलियाँ जिनका कोई साहित्यिक स्थायी मूल्य नहीं है

ऐसी टिप्पणियां लिखने वाले का भी समय बिगाड़ती हैं और पढ़ने

वाले का भीअस्तु------------------




जो चल रहा है, भले चले लेकिन होना ये चाहिए कि दो लाइन की

टिप्पणी के बजाय दस लाइन की समीक्षा हो और पूर्वाग्रह से

मुक्त निष्पक्ष समीक्षा हो ताकि लेखक को सही दिशा भी मिले

और सन्तुष्टि भी कि उसके लेखन को टिप्पणी मिली है उसे नहीं



इस टीका -टिप्पणी का एक अत्यन्त रोचक हास्यप्रद पहलू भी है

जिस पर आपको खूब हँसी आएगी लेकिन वो आपको कल पढ़ने को

मिलेगा ...क्योंकि अभी रात के डेढ़ बज चुके हैं और मुझे निन्दु

रही है



शुभ रात्रि !



-अलबेला खत्री




7 comments:

राजीव तनेजा January 11, 2010 at 2:00 AM  

बात तो आपने काफी हद तक सही कही है कि यहाँ टिप्पणियों का हिसाब रखा जाता है कि उसने मुझे कितनी की?..और मैंने उसका एहसान उतारने के लिए पलट कर कितनी टिप्पणियाँ की? ...
लेकिन हर बार ऐसा नहीं होता... कई बार मैं छोटी टिप्पणियाँ सिर्फ इसलिए कर देता हूँ कि उसे से ज़्यादा कहने के लायक मैं खुद को नहीं समझता और कई बार इसलिए कि वो लेख मुझे इस लायक ही नहीं लगता कि उस पर ज़्यादा कुछ कहा जाए ...

Udan Tashtari January 11, 2010 at 4:35 AM  

टिप्पणी का हिसाब भी रखा जाता है इसलिये कि किसने दी और किसको वापस की-यह एक नई जानकारी है.

Unknown January 11, 2010 at 9:05 AM  

"दो लाइन की टिप्पणी के बजाय दस लाइन की समीक्षा हो और पूर्वाग्रह से मुक्त निष्पक्ष समीक्षा हो ताकि लेखक को सही दिशा भी मिले और सन्तुष्टि भी कि उसके लेखन को टिप्पणी मिली है उसे नहीं ।"

बिल्कुल सही कहा आपने!

shikha varshney January 11, 2010 at 5:06 PM  

baat to kafi thik lag rahi hai....esa hi hotahai shayad.

अजय कुमार झा January 11, 2010 at 7:02 PM  

अलबेला भाई, इस सूत्र की सफ़लता/विफ़लता का तो पता नहीं, पर इसी बहाने से अपना एक ब्लोग चल निकला है , टिप्पी का टिप्पा, जिसकी सारी खुराक इसी पर निर्भर है ।वैसे ये दौर भी कभी न कभी तो खत्म होगा ही
अजय कुमार झा

बवाल January 11, 2010 at 7:32 PM  

बजा फ़रमाते हैं आप अलबेला जी। हम भी आज सोच रहे थे कि हमने अलबेला जी को कितनी टिप्पणी दी और उन्होंने ? हा हा।
ज्वलंत मुद्दा है ये भी एक किस्म का।

और आपकी यह बात सभी के लिए ग़ौर करने योग्य है कि-
टिप्पणी सिवाय समय खराब करने,सृजन रोकने, अन्य ब्लोगर्स की रचनायें पढ़ने में बाधक बनने तथा फ़ोकट का सरदर्द देने के और कोई काम नहीं करती अगर वह टिप्पणी उस पोस्ट से विमुख है और सिर्फ़ दोस्ती खाते में दी गई है तो............
आभार।

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" January 11, 2010 at 7:51 PM  

बात तो आपकी सही है लेकिन वो बेचारा भला क्या करे...जिसकी कविता, गजल इत्यादि के बारे में समझ बिल्कुल ही शून्य हो...वहाँ तो "वाह-वाह", "बहुत सुन्दर", "भावपूर्ण रचना" जैसी ही टिप्पणी की जा सकती है........निष्पक्ष समीक्षात्मक टिप्पणी तो रूचिपरक सामग्री पर ही हो सकती है......

अब आप पर एक टिप्पणी की उधारी चढ गई :)

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