बन्धुवर खुशदीप सहगल, सुलभ सतरंगी, दिनेश राय द्विवेदीजी,
अनूप शुक्लजी, वन्दना दुबेजी, संगीता पुरीजी, निर्मला कपिलाजी,
शरद कोकासजी, अलका मिश्राजी, ललित शर्मा जी, इरफ़ानजी,
सुधा धींगराजी एवं प्राण शर्माजी समेत सभी ब्लोगर मित्रो !
नमस्कार ।
दुनिया का सबसे छोटा चुटकुला है -
"एक बुढ़िया बचपन में ही मर गई"
इस चुटकुले का पोस्टमार्टम बाद में करेंगे पहले आपको वो बता दूँ
जो मैं अभी बताना नहीं चाहता था, लेकिन बताना ज़रूरी हो गया है :
परसों से अब तक कोई 200 फोन आ चुके हैं कुछ परिचित ब्लोगरों
के, कुछ अपरिचित ब्लोगरों के........सब का एक ही कहना है कि
सम्मान समारोह करके वाद-विवाद को हवा मत दो, देना है तो
जिसका नाम हम बताएं उसको दो, फलां को दिया गया तो ठीक
नहीं होगा, फलां को दिया गया तो फलां फलां को भी देना पड़ेगा,
कुछ लोगों का साफ़ साफ़ कहना है कि हम ब्लोगरी में पैसे का
आगमन करके इसे भ्रष्ट नहीं करना चाहते इसलिए केवल
शाल-श्रीफल से ही सम्मानित करो और रुपया खर्च करना ही है
तो ब्लोगरों को सपरिवार बुला कर एक पिकनिक करो ताकि
सब मिलजुल कर एन्जॉय कर सकें...........वगैरह वगैरह - इस
वगैरह वगैरह में वे धमकियां शामिल हैं जो उन्होंने दी कि यदि
तुमने अपनी मन मर्ज़ी से आयोजन किया तो बेटा ! कभी
हमारे शहर में मत आना, वर्ना हुलिया बिगाड़ देंगे ..
अब मैं आपको बताता हूँ कि "सम्मान समारोह" की भूमिका कैसे
बनी और इसकी पूरी रूप-रेखा और आयोजकीय परिकल्पना
मैंने क्या की थी ?
कोई 15 दिन पहले इन्दोर में ताऊ रामपुरियाजी से मुलाक़ात हुई
थी, तब उन्होंने मंशा ज़ाहिर की थी कि समीरलाल जी को मिले
बहुत दिन हो गये, यदि उनके लिए कुछ प्रोग्राम बिठाओ तो उन्हें
बुलालें ताकि उनका आने-जाने का खर्च भी न लगे और मिलना
भी हो जाये । तब मैंने कहा कि ठीक है, 4-5 प्रोग्राम मैं करवा दूंगा
गुज़रात में, बाकी आप देख लेना । इतने प्रोग्राम करके उनके लिए
डेढ़-दो लाख का जुगाड़ हो जाएगा और मज़ा भी आ जाएगा ।
इधर 24-25 अप्रेल को सूरत में दो बड़े आयोजन की बात चल रही
थी - एक जगजीत सिंह की शामे-ग़ज़ल और दूसरा मेरे मित्र
बाबा सत्यनारायण मौर्य प्रस्तुत भारत माता की आरती, तो मैंने
सोचा कि क्यों न इस भव्य अवसर पर अपने ब्लोगर साथियों को
बुला कर सम्मानित किया जाये ।
पूरा प्रोग्राम ऐसा होता : लगभग 100 चुनिन्दा ब्लोगरों को सूरत
बुलाया जाता, 24 अप्रेल को दिन भर चर्चा-सत्र चलता और रात्रि
में जगजीत सिंह की ग़ज़ल गायकी का लुत्फ़ लिया जाता । अगले
दिन तीन अलग -अलग सत्रों में काव्य -पाठ, पत्र वाचन और
अखिल विश्व हिन्दी ब्लोगर समिति का गठन किया जाता ताकि
हम सब ब्लोगर एक बैनर के साथ खड़े हो सकें।
समिति गठन का उद्देश्य ब्लोगर्स की शक्ति बढ़ाना और उसका
प्रदर्शन करना था यानी विभिन्न राजनैतिक, धार्मिक, सामाजिक
संगठनों की भान्ति हम सब कलमकार एकजुट होकर कितना
बड़ा काम कर सकते हैं ये दिखाना था ताकि कल को किसी ब्लोगर
बन्धु या बहिन को कोई भी तकलीफ या ज़रूरत हो, तो समिति के
ज़रिये उसे प्रयाप्त सहयोग तुरन्त दिया जा सके । आपसी
मन-मुटाव मिटा कर सार्थक लेखन पर ध्यान दिया जा सके
आदि आदि
उसी रात को "सम्मान समारोह" होता जिसमे सम्मान चाहे
जिनका होता लेकिन सूरत की गरवी गुजरात गौरव समिति
द्वारा समीरलालजी का नागरिक अभिनन्दन करके उन्हें रूपये
51 हज़ार रूपये का विशेष पुरुस्कार भेन्ट किया जाता, साथ ही
अन्य अनेक वरिष्ठ ब्लोगर्स को प्रशस्ति -पत्र स्मृति-चिन्ह
आदि भेन्ट कर, उनके योगदान को सराहा जाता जिसे समूचा
मीडिया कवर करता और तत्पश्चात "भारत माता की आरती"
के साथ समारोह संपन्न होता ।
अगले दिन सूरत के पास दमन में दिन भर मौज-मस्ती और
पिकनिक चलती व शाम के बाद सभी अपने अतिथि अपने शहर
के लिए प्रस्थान कर जाते ।
इसमें रुपया ख़ूब खर्च होने वाला था लेकिन ये सूरत है - भारत
का सबसे धनी शहर ! यहाँ धन -अर्जन में कोई समस्या नहीं थी
अच्छा प्रयोजन हो, तो प्रायोजकों की कमी नहीं है ।
इसमें मेरा केवल इतना स्वार्थ था कि आयोजन मेरे शहर में हो
रहा था । बाकी न तो मुझे इसमें धन कमाना था, न ही इससे
मेरा कोई इतना नाम होता कि पद्म पुरूस्कार मिल जाये, उल्टा
कई प्रोग्राम छूटते जिससे आर्थिक नुक्सान ही होता ..अस्तु-
भगवान् भला करे उन सब समझदार ,समर्पित, सजग और
जागरूक ब्लोगर्स का जिन्होंने इस poll प्रक्रिया में अनेक दोष
ढूंढ़ लिए और मैं अकेला पड़ने के कारण पूर्णतः मजबूर हो गया
ये समारोह स्थगित अथवा रद्द करने के लिए ।
लिहाज़ा बड़े दुखी मन से बहुमत का समर्थन करते हुए मैं इस
झमेले के पटाक्षेप की घोषणा के साथ "ब्लोगर 2009 सम्मान "
को अगली सूचना तक के लिए स्थगित करता हूँ । जिन लोगों ने
वोट किया है उनका धन्यवाद, जिन्होंने नहीं किये उनका विशेष
धन्यवाद ।
हालांकि नहीं बताना चाहिए फिर भी बता ही देता हूँ कि अब तक
मिले मतानुसार " ब्लोगर 2009 सम्मान " के लिए अविनाश
वाचस्पति प्रथम और बी एस पाबला द्वितीय स्थान पर हैं जबकि
"टिप्पणीकार 2009 सम्मान" के लिए समीरलाल समीर व
रूपचंद्र शास्त्री मयंक प्रथम स्थान के लिए बराबरी पर हैं तथा
दूसरे स्थान पर आशीष खंडेलवाल व पं डी के शर्मा 'वत्स'
बराबरी पर हैं
यदि संयोग बना तो मैं इस कार्य को अब किसी और रूप में पूरा
करूँगा । क्योंकि करना तो है, इस सांड को घास चरना तो है आप
अपने खेत से खदेड़ दोगे तो दूसरे के खेत में चला जाएगा । भले ही
लट्ठ खायेगा लेकिन घास तो चर के ही आएगा ।
परम्परा अनुसार लेखान्त में धन्यवाद लिखना चाहिए,लेकिन मैं
नहीं लिख सकता क्योंकि मन राज़ी नहीं है ऐसा लिखने के लिए।
इस प्रकार एक बुढ़िया बचपन में ही मर गई...मातम मना रहा हूँ ।
जय हिन्द !
-अलबेला खत्री
hindi hasyakavi sammelan in mangalore by MRPL
-
शानदार, शानदार, शानदार …………………
शानदार और जानदार रहा मंगलूर रिफ़ाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड द्वारा
राजभाषा विभाग के तत्वाधान में डॉ बी आर पाल द्वारा आ...
10 years ago
25 comments:
आप ने आयोजन की रूपरेखा जो भी बताई है। उस से किसी को क्या आपत्ति हो सकती थी। लेकिन उस में पहले पंद्रह नामों का चयन करना और फिर उन के बीच पोल कराने की बात पर ही आपत्ति दर्ज हुई थी। शायद और किसी बात पर नहीं।
समीर भाई को सम्मानित करने में किसी को आपत्ति नहीं हो सकती। उन का योगदान कौन नहीं जानता। यदि आयोजन की रूप रेखा यही थी तो उसे पहले से प्रकट करने में क्या अड़चन थी। वैसे सब से सकारात्मक बात यह निकल कर सामने आई है कि आप की सोच में एक ऐसे कोष के निर्माण की बात है जो जरूतमंद ब्लागरों की आवश्यकता होने पर उन की मदद के लिए काम में लिया जा सके। इस ओर आगे बढ़ा जा सके तो यह बहुत बड़ा काम होगा।
संतान अभी पैदा हुई थी। नामकरण पर कुछ आपत्ति हुई कि कैसे किया जाए? जो भाई घर में इस मामले में पति-पत्नी तक में सहमति बनाना असंभव होता है। नामकरण के विवाद में कोई संतान को मारता है? यह तो बहुत निर्मम होगा। कम से कम आप से तो ऐसी आशा बिलकुल नहीं की जा सकती। इस का सही ढंग से नामकरण कीजिए फलने फूलने दीजिए। दुनिया में करतब दिखाने दीजिए। अभी से उसे बुढ़िया कह कर मरने देना ठीक नहीं।
मुझे समझ में नहीं आ रहा कि इतने अच्छे आयोजन पर किसी को भी आपत्ति क्यों होना चाहिये? ज़रूरी है कि हर काम में अडंगा लगाया ही जाये? आप इस कार्यक्रम को स्थगि न करें बल्कि इस को मूर्त रूप देने का प्रयास करें.
दिनेश राय द्विवेदी जी की बातों से सहमत हूं !!
समझ गया खत्री साहब , बस इतना ही कह सकता हूँ, बेचारी !!!
सम्मान्य द्विवेदीजी !
मैं अनेक बार कह चुका हूँ कि मैं नया हूँ , मैं नहीं जानता कि हिन्दी ब्लोगिंग में कौन कितना वरिष्ठ और सर्वमान्य विद्वान है इसीलिए मैं अपने स्तर पर काम कर रहा था पूरी बात इसलिए नहीं खोली क्योंकि मैं चाहता था कि समारोह में जो ब्लोगर बन्धु आयें उन्हें उम्मीद से कई गुना बड़ा काम देखने को मिले........वो सरप्राइज़ देने के चक्कर में नहीं बताया ..लेकिन ये कोई ख़ास बात नहीं है - हम जब भोजन की बात करते हैं तो सिर्फ़ इतना पूछते हैं घर में कि सब्ज़ी क्या बनी है ? ये नहीं पूछते कि किस थाली में परोसोगी ? सब्ज़ी में घी कितना है ? चटनी पोदीने की है या धनिये की ? मिठाई में गुड़ मिलेगा या गुलाब जामुन ?
द्विवेदीजी !
मैं आपका नियमित पाठक भी हूँ और प्रशंसक भी लेकिन मैं नहीं जानता कि आप ब्लोगिंग में कितने अरसे से हैं और आपका क्या मकाम है इस क्षेत्र में..........और न जानना कोई अपराध भी नहीं है । हाँ कोई जान बूझ कर गफलत करे , तो अक्षम्य है ।
अगर आपको लगता है कि आप तथा आप जैसे कुछ और निष्पक्ष विद्वान इस बाबत विचार करके सही रूप रेखा बना सकते हैं और उसमें कोई बवाल या वाद-विवाद नहीं होगा , तो कृपया आप मेरी सहायता कीजिये और मार्ग दर्शन दीजिये ..मैं गंभीरता पूर्वक उस पर अमल करने का प्रयास करूँगा ।
मेरे दो-तीन लक्ष्य साफ़ हैं -
1 अगर सरकार अल्प संख्यकों को विभिन्न सुविधाएं देती हैं तो वो हमें ज़रूर मिलनी चाहिए क्योंकि सबसे अल्प संख्यक हम लोग हैं इस देश में,,,,, जो देश, समाज और मानवता के हित के लिए काम करते हैं ।
2 विभिन्न कलाकारों, पत्रकारों, राजनीतिकों विभागीय कर्मचारियों की भान्ति हमारे लोगों को भी रेल-बस में मुफ़्त यात्रा सुविधा मिले ताकि सृजनकार निश्चिन्त होकर यायावरी कर सके ।
3 केन्द्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय तथा राज्य जन सम्पर्क निदेशालय द्वारा प्रकाशित बुलेटिनों व पत्रिकाओं में ब्लोगर की रचनाओं को प्रमुखता से प्रकाशित किया जाये और उस पर उचित मान धन दिया जाये ।
4 अगर एक खिलाड़ी को 6 गेंदों पर 6 छक्के मारने के बदले करोड़ों रूपये दिये जा सकते हैं तो एक साहित्यकार को
अनेक पुस्तकें लिखने पर लाखों भी क्यों नहीं दिये जाते ?
5 ये अर्थ प्रधान युग है - अर्थ बिना सब व्यर्थ है । मेरे पास लगभग रोज़ कहीं न कहीं से सम्मान का निमन्त्रण मिलता है लेकिन मेरा पहला सवाल होता है कि "सम्मान" मुझे परफोर्मेंस के पारिश्रमिक के अलावा दिया जायेगा या सम्मान ही पारिश्रमिक है ? बिना पैसे का सम्मान किसी अपमान से काम नहीं मानता मैं....अरे पैसे के लिए लोग आत्म-सम्मान मार डालते हैं फिर एक शाल ओढा कर किया गया सम्मान किस चिड़िया का नाम है ।
जो महिलाएं अपनी देह बेच कर घर चलाती हैं, अपने बच्चे पढ़ाती हैं । क्या उनमें कोई आत्म सम्मान नहीं होता ?
ज़रूर होता है लेकिन पैसे की ज़रूरत उसे खा जाती है ।
क्षमा चाहता हूँ । टिप्पणी लम्बी हो गई ...इसलिए शेष फिर कभी ।
अब चार दिन हो गए हैं वोटिंग होते हुए तो औसत पचास प्रतिशत आता है साढ़े बारह हजार बनते हैं आधा शाल, एक तरफ छपा सम्मान पत्र श्रीफल में सिर्फ गिरी गिरी।
बधाई का हकदार तो नुक्कड़ हो ही गया, कमाई यह भी कम नहीं हुई है, जीत नुक्कड़ की ही है यह। न सही नोट, असली नोट तो प्यार है
हमारी मानिये तो अविनाश जी के लिए यही सच्चा उपहार है।
हमें तो अलबेला जी से प्यार है वे खत्री हैं जिनसे किसी को खतरा नहीं प्यार है भरपूर इसमें कतरा कतरा नहीं।
बुढि़या दोबारा जन्म लेगी, और पूरी उसकी आयु होगी।
अलबेला जी जी मुझे तो ये भी पता नहीं चला कि वोट कैसे करनी है? ये मामला भी समाप्त हो गया? बाकी इस मामले मे मैं तो कुछ नहीं कह सकती।ेअच्छे काम मे हमेशा अडचने आती हैं फिर जो काम करता है विरोध भी उसी का होता है जो कुछ करेगा ही नहीं उसे कोई क्या कह सकता है। ब्लाग जगत के भले के लिये आप जो कर रहे हैं वो काबिले तारीफ है। वर्ना हम तो अभी तक घर फूँक कर तमाशा देख रहे हैं। हमारे सिर से प्रकाशक चाँदी कूट रहे हैं पहली बार लगा कि साहित्यकार को भी कुछ मिलता है। शुभकामनायें
बहुत बढ़िया विचार है . यदि कार्यक्रम में कोई अड़चन हो तो जबलपुर बिगेड के झंडे तले आपका यह कार्यक्रम धवल चाँद की दूधिया लाईट में भेडाघाट में जबलपुर में कराया जा सकता है . समीर लाला जी मार्च तक आएंगे ऐसी उम्मीद है . हम सब आपको पुरजोर सहयोग प्रदान करने तैयार रहेंगे.
महेन्द्र मिश्र
जबलपुर.
बहुत बढ़िया विचार है . यदि कार्यक्रम में कोई अड़चन हो तो जबलपुर बिगेड के झंडे तले आपका यह कार्यक्रम धवल चाँद की दूधिया लाईट में भेडाघाट में जबलपुर में कराया जा सकता है . समीर लाला जी मार्च तक आएंगे ऐसी उम्मीद है . हम सब आपको पुरजोर सहयोग प्रदान करने तैयार रहेंगे.
महेन्द्र मिश्र
जबलपुर.
अरे जी यह तो बहुत अच्छा हुआ!
ब्लॉग जगत के प्रति आपका दृष्टिकोण बहुत बढिया है .. आपने भले ही इस कार्यक्रम में थोडी हडबडी की .. पर पहले ही आलेख में सबसे राय भी मांगी थी .. पर यहां बात को कुछ ऐसे ढंग से उलट पुलट दिया जाता है .. कि आम लोगों को भी समझ में नहं आता है कि वो क्या प्रतिक्रिया दे .. इस तरह के आयोजन से आपत्ति करना ब्लॉग जगत के लिए अच्छा तो नहीं माना जा सकता !!
हौले हौले से हवा चलती है
हौले हौले से दवा लगती है
हौले हौले चंदा बढ़ता है
हौले हौले घूँघट उठता है
हौले हौले से नशा चढ़ता है
तू सबर तो कर मेरे यार
चल फिकर नूँ गोली मार
यार है दिन जिंदड़ि दे चार
हौले हौले हो जाएगा ...
बी एस पाबला
अलबेला खत्री जी,
जैसा मैंने पोस्ट पर लिखा है कि दुनिया में ये किसी भी इंसान के लिए मुमकिन नहीं है कि वो सभी को संतुष्ट कर पाए...आपने विवाद को थामने के लिए सम्मान समारोह को स्थगित करने का जो फैसला किया, उसका मैं सम्मान करता हूं...आपने सदाशयता दिखाते हुए हर तरह की राय का मान रखा...मेरा विश्वास है कि अब जब भी आप ऐसा समारोह करेंगे, हर पहलू को ठोक बजा कर करेंगे...कहते हैं न हर बात में कोई न कोई अच्छाई छिपी होती है...मैं कामना करता हूं कि आप शीघ्र ही किसी बड़े कार्यक्रम का सूत्रधार बनेंगे...बाकी आप जिस मनोस्थिति से गुज़र रहे होंगे, वो मैं समझ सकता हूं...फिलहाल एक गीत की दो पंक्तियों का हवाला ही दे सकता हूं...
वो अफ़साना जिसे अंजाम तक लाना ना हो मुमकिन,
उसे एक खूबसूरत मो़ड़ देकर छोड़ देना अच्छा...
जय हिंद...
अलबेला जी के विचार पढ़ कर लगता है
हम तो लुट गये
लूट कर ले गये
दिल मेरा सभी
ब्लॉगर काम ऐसा ही कर गये
मुझे इतना पसंद कर गये
जितना मैं सबको करता हूं।
चलिए जी चलिए
फिर अगले नुक्कड़ पर मिलता हूं।
और पाबला जी
जी हां अब पाबला जी की पंक्तियां
हौले हौले ...
और खुशदीप जी का कथन
जो होता है अच्छाई के लिए होता है
उसमें जोड़ते हुए
अच्छाई के लिए और
सच्चाई के लिए
सदा ही अच्छा और
सच्चा ही होता है
होना भी चाहिए
छोटी मोटी बातों पर
नहीं मन खोटा होना चाहिए
इनसे मुकाबले के लिए
सबके पास एक सोटा होना चाहिए।
बुढि़या का बचपन
या बचपन की बुढि़या
सब सलामत रहना चाहिए
दवा हो या दुआ
मन में सबके
नसों में हमारे
बहती रहनी चाहिए
दोनों ही करती हैं
भला, वही बनता है लाभ
हानि का कहो कहां क्या काम ?
हे भगवान, ये नादान ब्लॉगर्स क्या कर गये इन्हें नहीं पता, बस पड़ गया उन लोगों को चैन, जहाँ तक बात समारोह स्थगित करने की है तो उसके बने हुए कारण अपनी समझ से बाहर हैं, क्योंकि कोई भी सम्मान समारोह ऐसा नहीं है जो विवादित हो फ़िर चाहे वो सरकारी हो या निजी। आज तक यह विवादित है कि नोबल पुरस्कार गांधीजी को क्यों नहीं मिला, और भी बहुत सारे विवाद हैं परंतु यह सब ब्लॉग जगत के लिये ठीक नहीं है।
अगर इस ब्लॉग लेखनी को प्रोत्साहन नहीं दिया गया तो ये नशा थोड़े दिनों में ही उतर जायेगा, क्योंकि इस स्वार्थी दुनिया में हर छोटी बात के पीछे कोई न कोई कारण अवश्य छुपा होता है, पता नहीं कि ये हिन्दी ब्लॉगरी और ब्लॉगर्स की दुनिया कब तक साहित्य की तूती बजती रहेगी। और कब ये ब्लॉगर अपने मन की बात कह पायेगा, साहित्य से हटकर।
फ़िलहाल केवल यही कहना है कि आयोजन होना चाहिये था परंतु कुछ या ज्यादा विघ्नसंतोषियों के कारण यह संभव नहीं हो पाया।
आप अपने मन की बात मानें।
कलमकारों का सम्मान करके
आप साहित्य की महान सेवा कर रहे हैं।
"मुण्डे-मुण्डे मतिर्भिन्ना।"
@अलबेला जी,
आप सूरत में स्वयं समर्थ है, इस तरह के किसी भी आयोजन करने के लिए. ऐसा मैंने पहले भी कहा है. मेरी ब्लोगरी का मतलब है, यथोचित सम्मान और सहयोग देना. आप याद मात्र कर लीजिये मुझे...शैक्षणिक एवं साहित्यिक कार्यों में सहयोग करने में सदैव आगे रहता हूँ. अभी ३ दिन पहले ही राष्ट्रिय कविसंगम से लौटा हूँ और कुछ वरिष्ठ एवं नौजवान मित्रों को ब्लोगरी की टिप्स दे कर आया हूँ. मतलब ब्लोगरी को विस्तार दे रहा हूँ, ऐसे में सम्मान समारोह होते रहने चाहिए... चाहे जहाँ हो या जैसे हो.
@विवेक रस्तोगी जी,
आप कहते हैं..."अगर इस ब्लॉग लेखनी को प्रोत्साहन नहीं दिया गया तो ये नशा थोड़े दिनों में ही उतर जायेगा, क्योंकि इस स्वार्थी दुनिया में हर छोटी बात के पीछे कोई न कोई कारण अवश्य छुपा होता है, पता नहीं कि ये हिन्दी ब्लॉगरी और ब्लॉगर्स की दुनिया कब तक साहित्य की तूती बजती रहेगी। और कब ये ब्लॉगर अपने मन की बात कह पायेगा, साहित्य से हटकर।"
माफ़ कीजिएगा आपने साहित्य को समझने में भूल कर दी. यहाँ जितने भी ब्लोगर्स हैं, एक प्रकार से साहित्य कर्म ही कर रहे हैं. सिर्फ मंच अलग है. व्यक्ति अपने सामाजिक जीवन के अनुभव को साहित्य में उतारता है स्वविवेक एवं आत्म मंथन के फलस्वरूप उपजे शब्द ही साहित्य है और इसी में सबका निहित है. आप बड़े साहित्यिक मंचो की सिर्फ अवहेलना कर सकते हैं ना की साहित्य से हटकर ब्लोगर की वकालत करें. जब साहित्य नहीं भाषा नहीं, तो ब्लोगरी कैसा... और कौन ब्लोगर...., कौन कलमकार....., कौन वक्ता...
विधाये अनेक है, साहित्य एक है.
आप सबका सहयात्री
सुलभ (एक ब्लोगर).
ना जाने कब तक हम यूं ही एक दूसरे कि टाँग खींचते रहेंगे...
सिर्फ यही कह सकता हूं कि दुखद...
जो हुआ ...गलत हुआ...नहीं होना चाहिए था ऐसा
बुढ़िया के बचपन में ही मरने का अफसोस हुआ।
प्यार तो होना ही था की तर्ज़ पर इतना ही कहा जा सकता है कि विवाद तो होना ही था. बहरहाल इतने भव्य आयोजन के लगभग समाप्ति पर आपका ये कथन कि एक बुढ़िया बचपन में मर गई से अधिक सटीक ये कहना होगा कि इतने बड़े और भव्य आयोजन की भ्रूण हत्या हो गई.
अब एक काम या कहें कि सलाह हम आपको ये देंगे कि आगे से कोई भी इस तरह का या कोई दूसरा आयोजन हो तो आप सबसे पहले रूप रेखा बता दें क्योंकि मानव स्वाभाव का एक विधान ये है कि वो कितनी भी सैधांतिक बातें करे किन्तु कहीं न कहीं आकर ढेर होता है. यदि पहले से ही कार्यक्रम के आयोजन की सत्यता मालूम होती तो शायद विवाद नहीं होता.
बहरहाल जो जीता वही सिकंदर...................अबकी बार सिकंदर कौन बनेगा ये देखना बाक़ी है, क्योंकि घास अभी बाकी है मेरे दोस्त......
दो दिन से नैट से दूर था...आज आया तो पता चला कि इन दो दिनों में यहाँ कितना कुछ घट चुका है। इस ब्लागिंग की दुनिया में आए हुए हमें साल डेढ साल के करीब हो चुका है ओर इस दौरान इतना कुछ देख चुके हैं कि अब ये सब देखकर किन्चित भी आश्चर्य नहीं होता।
खैर इतना ही कह सकता हूँ कि जो भी हुआ अच्छा हुआ ओर जो होगा वो शायद इस से भी कहीं अच्छा होगा। लेकिन आपकी सोच ओर किए जा रहे प्रयासों की सराहना किए बिना नहीं रहूँगा।
धन्यवाद!
ऐसा करें नए नए ब्लागरों को पुरस्कार दें और तमाम पुरानों को सम्मान , काम हो जायेगा.
पुरस्कृत होने वालों की उम्र ३० वर्ष के ऊपर न हो और सम्मान वालों की ३० से कम ..
फिर कमर कसिये जनाब ,,कुछ तो लोग कहेगें
और हाँ ,जिन लोगों की सूची प्रकाशित की थी आपने सभी को निर्णायक मंडल में डाल दें और उनसे नामांकन ले .
और हाँ कुछ नामांकन मैं भी करना चाहूंगा ! ३ वर्ष हो गया है ब्लॉग जगत में तो इतना करने के लिए क्वालीफाई माना जा सकता है ......आगे आपकीमर्जी
@ अरविन्द मिश्र
सुझाव से पूर्व अपनी उम्र का उल्लेख भी कीजिए ?
निर्णायक मंडल के सदस्यों के पारिश्रमिक कम से कम 25000 का सुझाव भी दीजिए
उन्हें सूखा क्यों टरकाने पर तुले हैं ?
प्रत्येक नामांकन करने के लिए एक सौ रुपया वसूलने का नितांत मौलिक सुझाव मेरा है।
हम व्यय सुझा सकते हैं तो आय के तरीके बतलाने का धर्म निभाना चाहिये।
नामांकन के लिए एक सौ रुपया जमा करवाने से अधिक फ्लाईंग कुछ नहीं है।
मनमर्जी किसी की नहीं चलेगी
सुझाव देने की मर्जी हो सकती है परन्तु उन्हें मानने में कोताही का कोई विकल्प नहीं दिया जाये। उसे अवश्य माना जाये। अथवा सुझावों के लिए भुगतान का विकल्प खोला जाए।
मेरी समझ से यह सारा विवाद ही आपके नाम चयन को लेकर हुआ। क्योंकि आपने वाकई कुछ नाम ऐसे चुन लिये थे, जो कहीं से भी इस सूची में आने के लायक नहीं थे।
खैर इतना तो कहा ही जाएगा, कि ये जो कुछ हुआ अच्छा नहीं हुआ। वैसे द्विवेदी जी का कहना भी सही है कि अगर यह योजना पहले बतायी गयी होती, तो शायद इतना बवाल नहीं होता।
वैसे इस सब का एक फायदा तो हुआ ही कि आपकी टी0अर0पी0 तो बढ ही गयी।
मुझे इस बात का संतोष है कि अच्छा हुआ मैं इस वोटिंग के चक्कर में पडा ही नहीं।
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बारिश की वो सोंधी खुश्बू क्या कहती है?
क्या सुरक्षा के लिए इज्जत को तार तार करना जरूरी है?
हिममते मरदा मददे खुदा
बीती ताहि बिसार दे आगे की सुधि लेय
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