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Albela Khatri

बलात्कार को पाशविक कहना बन्द करो !




घृणित
कहो


बर्बर कहो


जघन्य कहो


शर्मनाक कहो


अमानुषी कहो


घिनौना कहो



बहुत से शब्द हैं, कुछ भी कहो


लेकिन बलात्कार को पाशविक मत कहो


मुझे दु: होता है


बड़ा दु: होता है


मैं पशु नहीं


लेकिन पशुओं को जानता हूँ


वे ऐसा नहीं करते


कभी नहीं करते ........................



उन्होंने सीखा ही नहीं ऐसा करना


ये महारत तो केवल मानव ही करता है


और कर सकता है


क्योंकि


अभी केवल मानव ही इतना सभ्य


और
विकसित हुआ है


इसलिए


देखो दीवानों तुम ये काम करो


पशुओं का नाम बदनाम करो



4 comments:

Unknown January 7, 2010 at 12:17 PM  

बिल्कुल सही बात!

मैं मनुष्यता को सुरत्व की जननी भी कह सकता हूँ!
किन्तु मनुष्य को पशु कहना भी कभी नहीं सह सकता हूँ।

मैथिलीशरण गुप्त

करण समस्तीपुरी January 7, 2010 at 12:20 PM  

मान गए उस्ताद ! क्या बेवाकी से इतना मारक व्यंग्य किया है..... जहाँपनाह तुस्सी ग्रेट हो !! सच में जो मनुष्य एक नारी के शील, मर्यादा और भावनाओं का क़द्र ना जाने वो तो पशु से भी गिरा है !!!! बहुत बढियां !!!!!!!

शबनम खान January 7, 2010 at 1:16 PM  

Are wah albela ji...mast likha ha..zabardast...
aji me toh kehti hu PETA walo ko dikha dijiye...khush hoke aapko apna BRAND AMBASSADOR bna lenge ji...badiya...

राजीव तनेजा January 7, 2010 at 10:26 PM  

बेबाकी से अपनी बात कहना कोई आपसे सीखे ...

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