लो जी हो गया नारी उत्थान !
प्रगति पर है हिन्दुस्तान !
अत्यन्त हर्ष का विषय है कि अब हमारी सोसायटी यानी हमारी
बिल्डिंग में रहने वाली नारियां भी पूर्ण उत्थान को प्राप्त हो चुकी
हैं और निर्लज्जता में हम पुरुषों की बराबरी में आ खड़ी हुई हैं ।
अब मुझे कोई चिन्ता न रही.......अब ये देश पीछे नहीं रहेगा ।
बहुत आगे निकल जाएगा । मैनहट्टन की थर्ड एवन्यू से भी
आगे...थाईलैंड के पट्टाया से भी आगे.....
अभी अभी गुड्डू की माँ ने बताया कि आज उसे बहुत मज़ा
आया टैरेस पर .......मैंने पूछा - क्या था टैरेस पर ? बोली-
लेडीज़ पार्टी ! मैंने पूछा - क्या हुआ ? वो बोली- ये पूछो कि
क्या नहीं हुआ ? बाप रे ! इतना मज़ा आया कि सुनोगे तो
हँसते हँसते बावले हो जाओगे...इतनी हँसी तो तुम्हारे प्रोग्राम
में भी नहीं आती जितनी हँसी मुझे आज वहां आई....मैंने कहा-
देवी ! पूरी बात तो बता.....तब उसने खुलासा किया जो निम्न
प्रकार है :
बिल्डिंग की टैरेस पर दोपहर 12 बजे से 4 बजे तक चली इस
रंगारंग सभा में नई नवेली दुल्हन से लेकर पुरानी अम्माजी
तक लगभग सभी महिलाओं ने अपनी गरिमामयी उपस्थिति
दी । बेटे तो वहां थे ही नहीं, बेटियों को भी भगा दिया गया वहां
से और तत्पश्चात निम्नांकित रंगारंग कार्यक्रम पेश किये गये :
1 नॉनवेज जोक्स स्पर्धा -
इसके तहत सभी को कम से कम दो गन्दे जोक सुनाने अनिवार्य
थे, नहीं सुनाने वाली को सभी के लिए पाणीपुरी की व्यवस्था
का जुर्माना। गुड्डू की माँ समेत तीन महिलाओं को जुर्माना लग
गया ।
2 top less cat walk .........
3 किसको कौन अच्छा लगता है ?
इसमें ये बताना था कि अपने पति के अलावा अगर किसी के साथ
टाइम पास करना पड़े तो कौन महिला किस पुरूष के साथ जाना
पसन्द करेगी ? इसमें कुछेक महिलाओं ने तो जवाब दिया लेकिन
बाकी ने कहा कि पसन्द तो है लेकिन बताएँगे नहीं, वर्ना हम पर
हर वक्त नज़र रखनी शुरू हो जायेगी...
4 कामोत्तेजक नृत्य/ पति की ऐसी तैसी........
इसमें सुविधा ये थी कि जिसे डान्स करना है डान्स करो, डान्स नहीं
आता तो अपने पति का मखौल उड़ाओ।
5 शारीरिक सम्बन्धों का ब्यौरा
सबको बताना था कि किसका पति महीने में कितनी बार
बिस्तरीय सम्बन्ध बनाता है और किस किस आसन में बनाता है,
क्या-क्या करता है ? कैसे कैसे करता है ? कितनी देर तक करता है
आदि आदि ......मज़ा आता है कि नहीं ? सन्तुष्टि होती है कि नहीं ?
__________इसके बाद जो कुछ हुआ उसे लिखने में तो मुझ
जैसे बेशर्म आदमी में भी सामर्थ्य नहीं है । न ही आप पढ़ पायेंगे...
इसलिए आप इशारों में समझ जाओ कि आगे क्या क्या पूछा
गया होगा ?
मित्रो !
जब मैं छोटा सा, नन्हा सा, मुन्ना सा बच्चा था । लेडीज़ पार्टियाँ
तब भी होती थीं । मेरी माँ भी उसमे शामिल होती थी । मैंने वे
पार्टियाँ इसलिए देखी हैं क्योंकि तब बच्चों को वहां से भगाया
नहीं जाता था।
वैसे उन पार्टियों में सिवाय अच्छे-अच्छे खाने के और कोई
स्वाद ही नहीं था । भाषा और कन्टेन्ट के हिसाब से वे बिल्कुल
राम भरोसे हिन्दू होटल होती थीं ..यानी शुद्ध शाकाहारी वैष्णव
भोजनालय ।
उनमे सब फ़ालतू सी पारिवारिक बातें होती थीं। जैसे किस दिन
किसके घर जा कर कथा सुननी है, पूर्णिमा कब है ? किसकी
बहू का जापा कब है ? फलाने डिज़ायन के स्वेटर के लिए सलाइयाँ
कित्ते नम्बर की होनी चाहिए और किस कलर की पशम बाज़ार
में किस दूकान पर किस भाव में मिलती है ? आम के अचार में
कितना तेल डालना चाहिए ? उसकी बेटी ने सिलाई और कसीदा
बहुत अच्छा सीखा है, मेरी बेटी को भी सिखाओ, सर्दियाँ आगयीं,
जिसको गोंद के लड्डू नहीं बनाने आते, मुझसे सीखलो, गाजरें
सस्ती हैं, मोसम्बियाँ अगर सबको चाहिए तो मण्डी से एक साथ
बीस बोरियां खरीद लेते हैं, थोक में सस्ती मिल जायेगी फिर
जिसको जितनी चाहिए आपस में बाँट लेंगे । वगैरह वगैरह ,,,,
यानी सब फ़ालतू किस्म की बोर करने वाली बातें ।
लेकिन अब मुझे गुड्डू की माँ से पता चल गया है कि अब लेडीज़
पार्टी में ऐसी फ़ालतू बातें नहीं होतीं, अच्छी अच्छी रसीली बातें
होती हैं । लिहाज़ा अब भारत की प्रगति को कोई रोक नहीं
सकता । ख़ुद भारतीय भी नहीं ।
जय हिन्द !
-अलबेला खत्री
hindi hasyakavi sammelan in mangalore by MRPL
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शानदार, शानदार, शानदार …………………
शानदार और जानदार रहा मंगलूर रिफ़ाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड द्वारा
राजभाषा विभाग के तत्वाधान में डॉ बी आर पाल द्वारा आ...
10 years ago
13 comments:
अभी तो शुरुआत है प्रगति की! पश्चिम से प्रभावित हमारे देश की शिक्षा नीति तो हमें अभी बहुत आगे ले जायेगी।
ये लगा सिक्सर, कनेक्टिंग अलबेला खत्री ।
यानी प्रगति की गंध आपके घर तक पहुँच गई. आपकी पत्नि भी बेशर्मी से "ऐसी-वैसी" पार्टी में शामिल हो रही है? हे! भगवान.
क्या महिलाएं इस बात की चिंता करती है कि सत्युग के लिए पुरूष क्या करे क्या न करे? अगर नहीं तो हमें भी महिलाओं कि चिंता छोड़ देनी चाहिए. जाहिर है हमारी माँ में हमसे ज्यादा ही अक्कल होगी.
Mithilesh toh bohot khush ho gye honge ye sab padhkar.... vaise toh mene aisa na dekha ha n suna ha par agar hota bhi ha toh...toh apko itni chinta kyu???kabhi shadi se jst pehle hone wali ladko ki bechlors party ka bhi yu hi byora dijiye...ye toh apka suna sunaya hoga vo toh dikha dikhaya hoga....dekhiye yaha bhi apko dono paksh rakhne chahiye...
संजय बेंगाणी जी !
बहुत दिनों में बहुत कुछ लिखा मैंने
अच्छा भी, बहुत अच्छा भी और खराब भी --- बहुत लोग आये टिप्पणी देने लेकिन आप नहीं आये । आज आये भी तो शब्दों में कड़वाहट ले कर...
हा हा हा हा एक बात प्रमाणित हो गई बुजुर्गों की कि कौव्वा जितना ज़्यादा चतुर होगा वह उतने ही बड़े गन्दगी के ढेर पर बैठेगा ...और बोलेगा तो कर्कश ही बोलेगा ..............
अजी! आगे आगे देखिए होता है क्या ! ये तो अभी सिर्फ शुरूआत भर है.....
आप ने इस बेशर्म पार्टी का वर्णनं आखिर क्यूँ किया?आखिर कैसी मजबूरी ?कहीं टी आर पी के लिए तो नहीं?समाज में सब कुछ होता है,उसमे से आपको क्या पसंद है ..ये मर्ज़ी आपकी है...
अलबेला भाई, शबनम की बात पर एक पुरुष बैचलर पार्टी का "बखान"(?) भी हो जाये, तब पता चले कि पुरुष पहले से ही कितने प्रगतिशील हो चुके हैं… :) (फ़िल्म अपराध (शायद यही है) का एक गाना यकायक याद आ गया कि "मैं राम नहीं हूं, फ़िर क्यूं उम्मीद करूं सीता की…" ऐसा ही कुछ था), इस समय अचानक क्यों याद आ गया, पता नहीं।
वैसे मुझे यह समझ नहीं आया कि इस पार्टी(?) का ऐसा उल्लेख करने की आपको क्या आवश्यकता आन पड़ी थी। फ़िर आपने उसमें पत्नी और अम्माजी का भी वास्ता दे दिया… ये क्या हो रहा है अलबेला जी।
बढ़िया व्यंग्य!
आप मुझे कौवा कहें या जो भी आपकी मति अनुमति दे वह कहें. मगर जो बात मैने टिप्पणी में कही है उसका जवाब तो दे देते श्रीमान.
संजय बेंगानी जी!
मैं आपको कौवा कह दूँ ? इतना तो उद्दंड नहीं हूँ और न ही झूठा कि इन्सान को कौवा बोलूं....
मैंने मिसाल दी है और उस मानसिकता के लिए दी है जिसमे बुद्धि को कौवा माना गया है जो सदैव
दूसरों के काम में मीन मेख ही निकालती है, किसीका उम्दा काम देख कर भी नहीं देखती.......
रही आपकी टिप्पणी !
आपने कोई सवाल किया ही कहाँ है ? जो जवाब दूँ...
आपने तो सिर्फ ये साबित किया है कि आपने मेरा आलेख सरसरी निगाह से देखा है, पढ़ा नहीं ..और पढ़ा है तो समझे नहीं, समझे हैं तो फिर जान बूझ कर नासमझी का नाटक कर रहे हैं
आप तो मेरे घर तक पहुँच गये..कोई बात नहीं..आपका स्वागत है . " अतिथि देवो भव :" लेकिन मेरी पत्नी ऐसी वैसी पार्टी में नहीं जाती, लेकिन पार्टी ही जब बिल्डिंग में हो तो,, जाना पड़ता है..और आपने ये तोह देखा ही नहीं कि उसने तोह जुर्माना भी भरा ..शालीनता का.......हा हा हा हा
एक फ़िल्म आई थी "fakira " उसमे शशि कपूर danny से कहता है " बेटा ! कुछ दिन शागिर्दी करो, फिर गुंडागर्दी करना"
मैं भी समझता हूँ कि लिखने वाले व्यक्ति को स्वयं लेखन से पहले पढने और पढ़ कर समझने का शऊर
होना ज़रूरी है . क्योंकि कवि अपनी बात को संकेतों में लिखता है.. क्लर्क की तरह केवल टाइप ही नहीं करता है शब्द का सृजन भी करता है
जन्म दिवस की एक बार पुनः बधाई आपको !
लगे हाथ एक राज मैं भी खोल ही देता हूं
अलबेला खत्री तो अब बने हैं
पहले अलबेली खतरा थे
जब वे महिला थे
तब का महिला पुराण ही सुनाया है
उन्हें लगता है गजब ढाया है
पर यह तो सबका सुना सुनाया है
बस सब लिख नहीं रहे थे
पर अब लगता है पढ़ने को तरस रहे हैं
@ शबनम खान
दोनों पक्ष नहीं रख सकते मजबूरी है
खतरा नहीं हैं अब अलबेला खत्री हैं
@ रजनीश परिहार
सच कहा है आपने यह टीआरपी का फंडा है
कई ब्लॉग्स पर फहरा,लोकप्रियता का झंडा है
Interesting Story shared by you ever. Being in love is, perhaps, the most fascinating aspect anyone can experience. प्यार की कहानियाँ
Thank You.
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