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Albela Khatri

तनदुरूस्ती के लिए फुर्सत नहीं है




मौज
मस्ती के लिए फुर्सत नहीं है


मटर गश्ती के लिए फुर्सत नहीं है



बस्ती वालों के लिए फुर्सत कहाँ ?


घर गृहस्थी के लिए फुर्सत नहीं है



मूड है गर प्यार का तो बोलिये !


ज़बरदस्ती के लिए फुर्सत नहीं है



मैं वतन दुरूस्त करने में जुटा हूँ


तनदुरूस्ती के लिए फुर्सत नहीं है



सरफ़रोशी की तमन्ना जग गई है


सर परस्ती के लिए फुर्सत नहीं है



मुल्क की हस्ती रहे, इस फिक्र में


अपनी हस्ती के लिए फुर्सत नहीं है


--अलबेला खत्री


5 comments:

Urmi January 19, 2010 at 12:53 PM  

मैं वतन दुरूस्त करने में जुटा हूँ
तनदुरूस्ती के लिए फुर्सत नहीं है
सरफ़रोशी की तमन्ना जग गई है
सर परस्ती के लिए फुर्सत नहीं है
बहुत सुन्दर रचना लिखा है आपने! ये पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगी ! इस लाजवाब और बेहतरीन रचना के लिए बधाई!

पी.सी.गोदियाल "परचेत" January 19, 2010 at 1:14 PM  

वाह, अति उत्तम बात !

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' January 19, 2010 at 3:29 PM  

इसीलिए तो शुगर की बीमारी झेल रहे हैं!

ब्लॉ.ललित शर्मा January 19, 2010 at 3:34 PM  

धांसु रचना-आभार

राजीव तनेजा January 20, 2010 at 12:06 AM  

बहुत बढ़िया...

अच्छी रचना को कमेंट करने के लिए भी लोगों को फुर्सत नहीं है

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