आदमी की ज़िन्दगी का
हाल काहे पूछते हो,
हो चुका है ख़ाना ही ख़राब मेरे देश में
आदमी का ओढ़ के नक़ाब मेरे देश में
अपनों के ख़ून का चनाब मेरे देश में
शायर भी पीते हैं शराब मेरे देश में
आदमी की ज़िन्दगी का
हाल काहे पूछते हो,
हो चुका है ख़ाना ही ख़राब मेरे देश में
आदमी का ओढ़ के नक़ाब मेरे देश में
अपनों के ख़ून का चनाब मेरे देश में
शायर भी पीते हैं शराब मेरे देश में
Labels: छन्द घनाक्षरी कवित्त
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3 comments:
बहुत ही बढ़िया सामयिक रचना
बहुत सुंदर रचना
धन्यवाद
सच कहा इस रचना के माध्यम से.
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