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Unknown
Saturday, December 31, 2011
गन्ध ये बारूद की है शायद
जिसे सहना मेरे बूते से बाहर है
लेकिन मैं सह रहा हूँ
कर कुछ नहीं सकता
इसलिए सिर्फ़ कह रहा हूँ
कि हटादो ये कुहासा
क्योंकि इस सियाह आलम में
महज़ हैवानियत पलती है
बन्दगी को खतरा है
मौत के इस खेल में
ज़िन्दगी को खतरा है
दुनिया पर कब्ज़ा करने की खूंफ़िशां मन्शा वालो !
ख़बरदार !
तुम ही नहीं, तुम्हारी पुश्तों को भी ले डूबेगी
तुम्हारी ख़ुदगर्ज़ी .........
मैं तो फ़क़त इल्तज़ा कर सकता हूँ
आगे तुम्हारी मर्ज़ी ...............
मालिक करे नये साल में होश आ जाये आपको
बनाने वाला हैवान से अब इन्सां बनाए आपको
___नव वर्ष अभिनन्दन !
2012 मुबारक हो !
जय हिन्द !
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Unknown
Friday, December 30, 2011
25 दिसम्बर की रात, राजस्थान के पिलानी में सर्वाधिक सर्दी
..और उस महा सर्दी की रात दो बजे तक चला कवि-सम्मेलन !
BITS के चेयर पर्सन श्री हर्षवर्धन जी बिरला के मुख्य आतिथ्य में
संपन्न हुए इस रंगारंग कवि-सम्मेलन में 'जन गण मन' के
समय सभी कवि/कवयित्री ठण्ड के मारे कंप-कंपा रहे थे ऐसे में
दो सक्रिय हिन्दी ब्लोगर्स सामने आये और एक सिरे पर
अलबेला खत्री और दूजे सिरे पर सुनीता शानू ने दीवार की तरह
खड़े रह कर मंचस्थ लोगों को सर्दी से बचाया....भरोसा न होतो
फोटो देख कर लें .
महान उद्योगपति स्व. राधाकृष्ण बिरला की जन्मशती के अवसर
पर आयोजित इस विराट कवि-सम्मेलन में उनके सुपुत्र श्री हर्षवर्धन
बिरला ने भी ख़ूब शेरो-शायरी सुना कर कवियों को अचंभित और
दर्शकों को मनोरंजित किया . दर्शक दीर्घा में बिरला परिवार के
समस्त लोग थे जो कि देश-विदेश से जन्मशती समारोह में शिरकत
करने आये थे .
उस रात मैंने सुनीता शानू को पहली बार सुना और महसूस किया कि
वह एक बेहतरीन कवयित्री है . उन्हें मंच पर आना चाहिए ताकि
अच्छी रचना का अभाव मंच से दूर हो सके .
जय हिन्द !
 |
jan gan man by birla harshvardhanji alongwith hasyakavi albela khatri left to sunita shanoo right all kavi/kavyitris at pilani on 25-12-2011 |
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Unknown
Wednesday, December 21, 2011
नेताओं का काम रुलाना है
अपना तो काम हँसाना है
होगई दो दिन की आरामगी
अब फिर सफ़र पर जाना है
______________22 -23 अहमदाबाद
_________________24 सांपला ( हरियाणा )
_________________25 पिलानी (राजस्थान)
_____________लाज रखना प्रभो !
सभी मित्रों को तब तक नमस्कार और जय हिन्द !
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Unknown
Friday, December 16, 2011
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Unknown
Tuesday, December 13, 2011
प्यारे मित्रो !
बहुत दिन पहले मैंने एक पोस्ट चित्रकार और कार्टूनिस्ट बन्धुओं के नाम
लगा कर उनसे अनुरोध किया था कि वे मेरे ऑडियो एलबम
"हे हनुमान बचालो"
के लिए कवर पृष्ठ छापने के लिए कार्टून बना कर भेजें . इसके लिए मैंने मेरी ज़रूरत
के मुताबिक निर्देश भी दिए थे और दो दिन की समय सीमा भी. परन्तु मुझे यह
कहते हुए अच्छा नहीं लग रहा है कि सबकुछ स्पष्ट लिखने के बावजूद मेरे मित्र
कार्टूनिस्टों ने परफेक्ट कार्टून बना कर नहीं भेजा ..
केवल सागर कुमार का भेजा हुआ कार्टून ही मेरी थीम के आस पास पहुंचा
____________________________________________________________
लिहाज़ा आप सब बधाई दे सकते हैं श्री सागर कुमार को कि उनकी मेहनत
व्यर्थ नहीं गई ..घोषणा अनुसार मान धन के रूप में उन्हें रूपये 3000 भेजे जा
रहे हैं और सी डी कवर पर उनका नाम भी दिया जा रहा है
बधाई हो भाई सागर कुमार जी !
-अलबेला खत्री
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Wednesday, December 7, 2011
भ्रष्टाचार, हिंसाचार तथा व्यभिचार से पूरी तरह त्रस्त, ग्रस्त और अभ्यस्त हो चुके मेरे प्यारे देशवासियों, सादर वन्दे !
बजरंग बली की प्रेरणा एवं कृपा से निर्मित, मेरे लोकप्रिय एवं बहुचर्चित हनुमान भजनों का ऑडियो सी. डी. हे हनुमान बचालो अब पूरी तरह तैयार है और इसे घर-घर तक पहुँचाने का प्रयास जारी है .
मित्रो ! ये भजन कोई आम भजन नहीं हैं बल्कि आज के माहौल को देखते हुए लीक से हट कर रचे गये आइटम भजन हैं . जिस प्रकार त्रेतायुग में जामवंतजी ने अपने शब्दों से हनुमानजी को उनका बल याद दिलाया था उसी तरह इन ९ भजनों के ज़रिये अन्जनी के लाल को हमने उनकी ज़िम्मेदारी याद दिलाने का प्रयास किया है .
दुर्भाग्य से जिस प्रकार के गीत-संगीत पूर्ण माहौल में हम जी रहे हैं उसमे किसी स्वस्थ और साफ़-सुथरे देश-भक्ति ऑडियो एलबम को लोग बाज़ार से खरीद कर सुनेंगे, इसकी उम्मीद करना बेकार है . इसलिए इस एलबम को हम आप जैसे समर्थ एवं उदार हस्तियों के सहयोग से घर-घर पहुँचाना चाहते हैं . हम चाहते हैं कि आप इसे खरीद कर अपने ग्राहकों, मित्रों, सम्बन्धियों और धार्मिक स्थलों को अपनी ओर से मुफ़्त भेन्ट करें . इसके लिए हम आपको बहुत ही कम मूल्य पर ये एलबम उपलब्ध कराएँगे . साथ ही आपका विज्ञापन भी पूर्णतः नि:शुल्क लगायेंगे .
एक ऑडियो सी डी का बाज़ार मूल्य ४५ रूपये है परन्तु हम आपको २५ रूपये में देंगे और कम से कम १००० सी डी लेने पर आपका विज्ञापन नि:शुल्क रूप से सी डी कवर पर प्रकाशित करेंगे . यहाँ उल्लेखनीय है कि आपका विज्ञापन कम से कम ८००० सी डी पर छपेगा भले ही आप १००० सी डी लें, २००० लें या ५००० लें .
ये देश राम का है और राम के देश को बचाने के लिए अब हनुमानजी के सिवा हमारे पास कोई विकल्प नहीं है . इस बात को समझते हुए एक राष्ट्र-भक्त कवि-कलाकार के नाते मैंने अपना समूचा सामर्थ्य और परिश्रम लगा कर देश बचाने की राह में यह कृति तैयार कर दी है अब इसे आपके सम्बल की ज़रूरत है. यदि आप चाहते हैं कि ऐसे प्रयास को सफलता मिलनी चाहिए और इस देश को बचाने के लिए दैविक कृपा बरसनी चाहिए तो आज अभी मुझसे सम्पर्क करें और अपना योगदान दें .
संख्या महत्वपूर्ण नहीं है, आप एक से लेकर एक लाख तक कितनी भी सी डी खरीद सकते हैं लेकिन सी डी कवर पर आपका विज्ञापन तभी लग पायेगा जब आप कम से कम एक हज़ार सी डी मंगवाएंगे .
आपके सहयोग की अपेक्षा में
-अलबेला खत्री - सूरत
mobile : 92287 56902 , Email : albelakhatri.com@gmail.com ,
www.facebook.com/albelakhatri
______________________________________________________________
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Tuesday, December 6, 2011
जैसे ही जलगाँव से ट्रेन चली, मानो तूफ़ान सा आ गया बोगी में.........
हालाँकि वातानुकूलित यान में बाहरी फेरी वालों का आना और चिल्लाना
मना है परन्तु दो-तीन लोग घुस आये अन्दर और सुबह सुबह लगे शोर
करने, " चौधरी की चाय पियो ...चौधरी की चाय पियो " मेरा दिमाग ख़राब
हो गया । होना ही था ।
अरे भाई क्यों पीयें हम चौधरी की चाय ? चौधरी की हम पी लेंगे तो वो क्या
पीयेगा बेचारा ? कंगाल समझा है क्या ? अपनी चाय भी खरीद कर नहीं पी
सकते क्या हम ? चौधरी ने क्या राज भाटिया की तरह हमको ब्लोगर मीट
में बुला रखा है कि उसकी चाय फ़ोकट में पीलें ?
घर आकर टी वी ओन किया तो और दिमाग ख़राब हो गया । विज्ञापन आ
रहा था - 'रूपा के जांघिये पहनें, रूपा के जांघिये पहनें ..' यार फिर वही बात,
ये हो क्या गया है लोगों को ? क्यों पहनें हम रूपा के जांघिये ? हम अपने
ख़ुद के पहन लें, तो ही बड़ी बात है और फिर हम ठहरे पुलिंगी, तो स्त्रीलिंगी
जांघिये पहना कर तुम हमारा जुलूस क्यों निकालना चाहते हो भाई ? चलो,
तुम्हारे इसरार पर हमने रूपा के जांघिये पहन भी लिए तो तुम्हारा क्या
भरोसा..कल को तुम तो कहोगे रूपा की ब्रा भी पहन लो..........न भाई न !
हम नहीं पहनते रूपा के जांघिये...........जा के कह दो अपनी रूपा से कि
अपने जांघिये ख़ुद ही पहनें - हमारे पास ख़ुद के हैं लक्स कोज़ी ।
नेट खोला तो पता चला कि मुन्नी की बदनामी और शीला की जवानी
वाले गानों का विरोध हो रहा है । कमाल है भाई......गाना गाने वाली नारी,
गाने पर नाचने वाली नारी और नचाने वाली भी नारी और विरोध करने
वाली भी नारी !
एक वो भली मानस नारी जो अभी अभी बिग बोस के "चकलाघर" से
बाहर आई है, कह रही है कि उसने जो किया वो तहज़ीब के अनुसार ही
था यानी उसने कोई सीमा नहीं लांघी..........यही तो दुःख है कि सीमा नहीं
लांघी ! अब लांघ जाओ बाई ! जाओ तुम्हारे देश की सीमा में घुस जाओ ।
यहाँ का माहौल गर्म मत करो.........थोड़ी बहुत लाज बची रहने दो बच्चों
की आँख में, पूरी नस्ल को बे-शर्म मत करो ।

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Unknown
Sunday, December 4, 2011
जन्म से मैं हिन्दू हूँ और अपने कुल देवता से ले कर इष्टदेव तक सभी को
नमन करता हूँ । अपने आराध्य सतगुरू के बताये आन्तरिक मार्ग पर
चलने की कोशिश भी कभी कभी कर लेता हूँ । मेरे स्वर्गवासी पिताजी ने
श्री गुरूनानकदेवजी की शरण ले रखी थी और उनपर गुरू साहेब की
प्रत्यक्ष मेहर थी । माताजी जगदम्बा की साधना करती हैं, भाई लोग
शिव भक्त हैं और पत्नी मेरी चूँकि मुस्लिम मोहल्ले में पली बढ़ी है इसलिए
वह नमाज़ भी पढ़ लेती है और रोज़े भी रखती है । कुल मिला कर सब
अपनी अपनी मर्ज़ी के मालिक हैं, कोई किसी पर अपनी मान्यता की
महानता का थोपन नहीं करता ।
परन्तु मैंने अक्सर महसूस किया है, महसूस की ऐसी-तैसी....साक्षात्
देखा है कि यहाँ ब्लोगिंग क्षेत्र में अनेक विद्वान बन्धु, जो कि समाज का
बहुत ही भला और कल्याण करने का सामर्थ्य रखते हैं, अकारण ही
आपस में उलझे रहते हैं सिर्फ़ इस मुद्दे को ले कर कि तेरे धर्म से मेरा
धर्म बड़ा है अथवा मेरा खुदा तेरे ईश्वर से ज़्यादा महान है या ईश्वर
रचित वेदों पर पवित्र कुरआन भारी है इत्यादि इत्यादि । इस लफड़े में
समय भी खर्च होता है और ऊर्जा भी जबकि परिणाम रहता है
"ठन ठन गोपाल"
मैंने अब तक सिर्फ़ ये महसूस किया है कि आदमी को ईश्वर ने इसलिए
बनाया है ताकि उसकी बनाई इस सुन्दर और विराट सृष्टि को वह ढंग से
चला सके । जिस प्रकार एक बाप अपने बेटे को दूकान खोल कर दे देता
है "ले बेटा, इसे चला और कमा - खा ।" अब बेटे का फ़र्ज़ है कि वह उस
दूकान को अपनी मेहनत से और ज़्यादा सजाये, संवारे, विस्तार दे
........यदि वह ऐसा न करके केवल बाज़ार के अन्य दूकानदारों से ही
झगड़ता रहे कि मेरी दूकान तेरी दूकान से बड़ी है या मेरा बाप तेरे बाप
से ज़्यादा पैसे वाला है तो बाप के पास सिवाय माथा पीटने के और
कोई विकल्प नहीं बचता ।
हम सब एक ही बाप के बेटे हैं, एक ही समुद्र के कतरे हैं, ये जानते बूझते
भी हम क्यों ख़ुद को धोखा दे रहे हैं भाई ?
जब हमारे पुरखों ने अपने अनुभव से बार बार ये फ़रमाया है कि " अव्वल
अल्लाह नूर उपाया, कुदरत के सब बन्दे - एक नूर ते सब जग उपज्या
कौन भले कौन मन्दे" तो फिर आखिर हमें ऐसी कौन सी लत पड़ गई है
दूसरों पर अपनी श्रेष्ठता लादने की ?
मैं किसी धर्म का विरोध नहीं करता । लेकिन बावजूद इसके हिन्दूत्व
पर मुझे गर्व है क्योंकि भले ही इसमें विभिन्न प्रकार के पाखण्ड और
कर्म-काण्ड प्रवेश कर गये हैं परन्तु इसकी केवल चार पंक्तियों में ही
धर्म का सारा सार आ जाता है और ये चार पंक्तियाँ मैं बचपन से सुनता
- बोलता आया हूँ ..आपने भी सुनी-पढ़ी होंगी :
1 धर्म की जय हो
2 अधर्म का नाश हो
3 प्राणियों में सद्भावना हो
4 विश्व का कल्याण हो
ध्यान से देखिये और समझिये कि यहाँ "धर्म" की जय हो रही है । किसी
ख़ास धर्म का ज़िक्र नहीं है, धर्म मात्र की जय हो रही है याने सब
धर्मों की जय हो रही है ।
"अधर्म" के नाश की कामना की जा रही है । अर्थात जो कृत्य " अधर्म"
में आता है उसके विनाश की कामना है, किसी दूसरे के धर्म को अधर्म बता
कर उसके नाश का सयापा नहीं किया जा रहा ।
"प्राणियों" में सद्भाव से अभिप्राय जगत के तमाम पेड़ पौधों, कीड़े-मकौडों,
जीव -जन्तुओं,पशुओं और मानव सभी में आपसी सद्भाव और सहजीवन
की प्रेरणा दी जा रही है । केवल हिन्दुओं में सद्भावना हो, ऐसा नहीं कहा
गया है ।
"विश्व" का कल्याण हो, इस से ज़्यादा और मंगलकारी कौन सा वरदान
परमात्मा हमें दे सकता है , ये नहीं कहा गया कि भारत का कल्याण हो
कि राजस्थान का कल्याण हो, सम्पूर्ण सृष्टि के मंगल की कामना की
जा रही है । न किसी पाकिस्तान का विरोध, न चीन का, न ही
अरब या तुर्क का ...
यदि इन चार सूत्रों के जानने और मानने के बाद भी कोई विद्वान
अन्य बातों पर समय व्यर्थ करे तो वह मेरी समझ में क्रोध का नहीं,
करुणा का पात्र है, कारण ये है करुणा का कि वो बेचारा जीवन को जी
नहीं रहा है, फ़ोकट ख़राब कर रहा है । क्योंकि धर्म जिसे कहते हैं,
वो तो इन चार पंक्तियों में आ गया ..बाकी सब तो बातें हैं बातों का क्या !
इन तथाकथित धर्म के ठेकेदारों से तो
वे फ़िल्मी भांड अच्छे जो नाचते गाते ये कहते हैं :
गोरे उसके,काले उसके
पूरब-पछिम वाले उसके
सब में उसी का नूर समाया
कौन है अपना कौन पराया
सबको कर परणाम तुझको अल्लाह रखे.................$$$$$$
-अलबेला खत्री
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Unknown
Saturday, December 3, 2011
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Unknown
भई कमाल की जगह है पिथोरा !
कहने को छत्तीसगढ़ का एक छोटा सा क़स्बा है, परन्तु जो बात
वहां देखने को मिली, वो गत 28 वर्षों में मुझे कहीं दिखाई नहीं दी.
कविता - साहित्य के प्रति इतना लगाव और समर्पण कि पिछले 23
वर्षों से " श्रृंखला साहित्य मंच " नाम की एक संस्था लगातार छोटी
बड़ी संगोष्टियां आयोजित करने के अलावा साल में एक बड़ा कवि-
सम्मेलन भी करवाती है जिनमे आयोजक भी कवि, दर्शक-श्रोता भी
कवि और वक्ता तो कवि होते ही हैं . उल्लेखनीय यह है कि इन आयोजनों
के लिए किसी से न कोई चन्दा लिया जाता है, न प्रायोजक बनाया जाता
है और न ही टिकट रखा जाता है बल्कि सारा का सारा खर्च मंच के
सदस्यों द्वारा स्वयं वहन किया जाता है .
मैंने देखा कि इस संस्था के कवि-सम्मेलन में शामिल होने लोग बहुत
दूर-दूर से भी आये थे....क्योंकि वहाँ के कार्यक्रम में कविता का स्तर
भी औसत से ऊँचा रहता है . मनोरंजन चलता है परन्तु अश्लीलता,
उन्माद, चुटकुलेबाज़ी और भड़काऊ टिप्पणियों से सर्वथा मुक्त रखा
जाता है .
भले ही वहाँ कवियों को मानदेय बहुत कम मिलता है, परन्तु पैसा ही
तो सब कुछ नहीं, आन्तरिक संतुष्टि भी तो कोई चीज होती है जो
भरपूर मिलती है . मैं बधाई देता हूँ श्री शिव मोहंती और उनके समस्त
साथियों को व कामना करता हूँ कि ये चराग सदा सदा प्रज्ज्वलित रहे
जय हिन्द !
अलबेला खत्री
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Unknown
Saturday, November 26, 2011
लो जी फिर चले हम तो लोगों को हंसाने.....
कल 27 को मुम्बई, 28 को राजनांदगांव और 29 को रायपुर
के पास पिथोरा में कवितायें सुना कर 1 दिसम्बर को पुणे में
एकल प्रस्तुति करके 2 को वापिस लौटूंगा .....और लौटूंगा ही
ऐसा मेरा विश्वास है ..हा हा हा हा
तब तक के लिए,
जय हिन्द !
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Unknown
Friday, November 25, 2011
लो जी ,
होगया मंत्रीमंडल का विस्तार .....
अनेक महानुभावों ने
ओथ "ली"
शपथ "ग्रहण की"
या
कसम "खाई "
और ये कार्य सब के सामने सम्पन्न हुआ
कोई चोरी छुपे नहीं
अब कल कोई इन पर किसी प्रकार के भ्रष्टाचार का आरोप
मत लगाना
_________________अरे यार जिस काम की शुरुआत ही
"लेने"
+ग्रहण करने
+खाने से होती है
उस में खाने पीने की छूट तो होनी ही चाहिए
..हा हा हा हा हा हा हा हा
जय हिन्द !
अलबेला खत्री
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Unknown
Thursday, November 24, 2011
महक ये कहती है कि गुलात से बनी है
कार्तिक के शबनमी क़तरात से बनी है
नाज़ुकी ऐसी, गोया जज़्बात से बनी है
पर ये सब कयास है
पूरी तरह बकवास है
क्योंकि तज़ुर्बा कहता है कि
दर्दात से बनी है
ज़र्फ़ से, ज़ुर्रत से, ज़ोर के
हालात से बनी है
सुबहा न जिसकी आ सकी,
उस रात से बनी है
ये औरत,
आज की औरत है !
इस्पात से बनी है
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Unknown
वीरप्पन निपट गया
प्रभाकरन निपट गया
फूलन निपट गई
लादेन भी निपट गया
सद्दाम हुसैन का हुआ सफ़ाया
गद्दाफी की भी निपटी काया
अब दाउद की माँ भी आखिर कब तक खैर मनाएगी ?
आएगी आएगी....यमराज को इसकी याद भी आएगी
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Unknown
Wednesday, November 23, 2011
न तो जीना सरल है न मरना सरल
आ लिखें ऐसे परिवेश में हम ग़ज़ल
कल नयी दिल्ली स्टेशन पे दो जन मरे
रेलवे ने बताया कि ज़बरन मरे
अब मरे दो या चाहे दो दर्जन मरे
ममतामाई की आँखों में आये न जल
आ लिखें ऐसे परिवेश में हम ग़ज़ल
तप रहा है गगन, तप रही है धरा
हर कोई कह रहा मैं मरा, मैं मरा
प्यास पंछी की कोई बुझादे ज़रा
चोंच से ज़्यादा सूखे हैं बस्ती के नल
आ लिखें ऐसे परिवेश में हम ग़ज़ल
एक अफज़ल गुरू ही नहीं है जनाब
जेलों पर है हज़ारों दरिन्दों का दाब
ख़ूब खाते हैं बिरयानी, पी पी शराब
हँस रहे हैं कसाब, रो रहे उज्ज्वल
आ लिखें ऐसे परिवेश में हम ग़ज़ल
कुर्सी के कागलों ने जहाँ चोंच डाली
देह जनता की पूरी वहां नोंच डाली
सत्य अहिंसा की शब्दावली पोंछ डाली
मखमलों पे मले जा रहे अपना मल
आ लिखें ऐसे परिवेश में हम ग़ज़ल
- अलबेला खत्री
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Unknown
Monday, November 21, 2011
लीजिये प्यारे दोस्तों !
अलबेला खत्री हाज़िर है अपना नया ऑडियो एलबम लेकर...........जहाँ
तक मेरा मानना है, इस नये सृजन को लोगों का भरपूर स्नेह मिलेगा और
ये घर-घर बजेगा
निवेदन यही है कि इसे अपनी मंगल कामनाओं से पोषित करें, कई दिनों
की कड़ी मेहनत के बाद हमारी टीम ये काम पूर्ण कर पाई है
जय हिन्द !
-अलबेला खत्री
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Unknown
Friday, November 18, 2011
कल शाम को जब मैं मुम्बई से सूरत आ रहा था तो मेरे सामने की सीट पर
मेरी ही उम्र का एक व्यक्ति, अपेक्षाकृत कम उम्र की और ज़बरदस्त खूबसूरत
महिला के साथ बैठा था और लगातार मुझे देखे जा रहा था . पहले तो मैंने
ध्यान नहीं दिया लेकिन जब वो कुछ ज़्यादा ही बारीकी से देखने लगा तो मैंने
पूछा - क्यों भाई साहेब ? क्या मैंने आपसे कभी कुछ उधार लिया था ?
वो बोला नहीं....तो मैंने कहा - फिर क्या कारण है कि आप लगातार मुझे इस
तरह घूर रहे हैं ?
वो बोला - मैं जानना चाहता हूँ कि आपके बाल असली हैं या नकली ? मैंने कहा -
असली . वो बोला - लगते नहीं...........मैंने कहा - खींच कर देखलो भाई...........
पूछा कौनसा शैम्पू लगाते हो ? मैंने कहा - कोई नहीं, मैं शैम्पू से नहीं नहाता..
साबुन ही लगाता हूँ बस......
तो फिर और कुछ लगाते होंगे...उन्होंने पूछा तो मैंने मज़ाक में कहा -
हाँ तेल लगाता हूँ . वो बोले कौनसा ? मैंने कहा - नहीं बताऊंगा वरना आप हंसोगे
...........वो बोला - कोई बात नहीं हमारे हंसने से आपको क्या फ़र्क पड़ता है ?
आप तो बता दो ..मैंने कहा - किसी को बताओगे तो नहीं . वो बोला - नहीं..........तो
मैंने कहा - जापानी तेल लगाता हूँ....इत्ता सुनते ही वो भाई तो चुप हो गया लेकिन
उसके साथ बैठी महिला खिलखिला कर हँस पड़ी और उससे बोली - मैं कहती थी न
...जापानी तेल बहुत अच्छी चीज़ है रोज़ लगाना चाहिए..........इत्ता सुनना था कि
आस पास के लोग भी ठहाके लगाने लगे .
जय हिन्द !
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Unknown
Thursday, November 10, 2011
भाई देश चलाने वाले
डेढ़ हुशियार नेताओ, प्रशासको, अधीनस्थ अधिकारी इत्यादियो !
आपको अफज़ल गुरू
या अजमल कसाब को फांसी पर लटकाने में दिलचस्पी नहीं है
तो कोई बात नहीं,
मुझे भी कोई जल्दी नहीं है उनकी मौत का समाचार बांचने की
लेकिन इतना तो बताओ कि अगर ये लोग तुम्हारे बिना कुछ किये, अगर अपनी
मौत मर गये तो क्या होगा ?
ये सच है कि जो जन्मा है वह एक दिन मरेगा ही..........कब मरेगा ये कोई भी नहीं
जानता, भगवान न करे अगर कसाब या अफजल अगर टें बोल गये और तुम्हारी
हिरासत में बोल गये तो कितना रुपया चुकाओगे मुआवज़े का ?
ये मानवाधिकार वाले, ये राष्ट्रसंघ वाले, ये पाकिस्तान वाले, ये वाले, वो वाले जब
हिसाब मांगेंगे कि कैसे मर गये, तब क्या कहोगे ? इस बात का विचार करो और
फ़ांसी देने वाला रस्सा तैयार न हो तो फिर करोड़ों रुपया तैयार रखो अपने
दामादों का मौताणा चुकाने के लिए
जय हिन्द !
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Unknown
Wednesday, November 9, 2011
वैसे तो मैंने अनेक अवसरों पर दैविक चमत्कारों का अनुभव किया है
परन्तु 06-11-2011 की शाम राजस्थान के केलवा में जैन आचार्य
श्री महाश्रमणजी के चातुर्मास उपलक्ष्य में आयोजित कवि-सम्मेलन से पूर्व
जब मैं उनसे मिलने गया तो पहली ही मुलाकात में उनके दिव्य रूप का
दीवाना हो गया . मुखमंडल अलौकिक तेज़स्विता और अधरों पर चित्ताकर्षक
मुस्कान बरबस ही मुझे प्रेरित कर रही थी कि मैं उस महान सन्त के चरणों में
झुक जाऊं और उनके स्पर्श को प्राप्त करने का प्रयास करूँ परन्तु नज़रें थीं कि
हटाये नहीं हट रही थीं उनकी नज़रों से.........फिर उन्होंने दोनों हाथ उठा कर
जब यशश्वी होने का आशीर्वाद दिया तो मैं धन्य ही हो गया ...........कवि-सम्मेलन
हो गया, बढ़िया हो गया . हरिओम पंवार, नरेन्द्र बंजारा, गोविन्द राठी और मैंने
ठीक-ठाक काम कर दिया . सब लोग चले गये ...मैं सो गया लेकिन एक घंटे बाद
ही जैसे किसी ने मुझे झकझोर कर उठा दिया...कहा - उठ ! तेरे सोने के दिन
लद गये...अब जागृत होकर......धर्मसंघ की सेवा कर ! आँख खुली...तो वहां कमरे में
कोई नहीं था फिर भी जाने क्यों मन में ऐसा एहसास हो रहा था कि कोई है
.................कहीं ये वो ही तो नहीं.......................हो भी सकता है ये मेरा भ्रम हो,
लेकिन यदि सच है तो फिर मेरे अहोभाग्य हैं .
जय हिन्द !
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Unknown
Wednesday, November 2, 2011
करगिल में अपना बलिदान देने वाले बुंदेलखंड के बहाद्दुर सुपूत
कालीचरण तिवारी के बलिदान दिवस पर सागर शहर में पिछले
१२ वर्षों से एक शानदार और भव्य सांस्कृतिक कार्यक्रम होता है
जिसमे फ़िल्म, टी वी और मंच के सितारे अपनी प्रस्तुतियां देकर
हुतात्मा के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं
सुप्रसिद्ध साहित्यप्रेमी विद्वान और राजस्व अधिकारी सुबचन राम
के सहयोग से डॉ अंकलेश्वर दुबे अन्नी व उनके मित्र इस आयोजन
को बड़े मन और चाव से करते हैं
इस बार भी यह कार्यक्रम अत्यन्त सफल रहा . फ़िल्म अभिनेता
सुदेश बेरी, लाफ़्टर चैम्पियन हास्यकवि अलबेला खत्री एवं जगदीश
सोलंकी,मदन मोहन समर इत्यादि वीर रस के बड़े कवियों ने ख़ूब
समां बाँधा
ऐसे आयोजन शहर में देश भक्ति के माहौल को बनाये रखने में बड़े
कारगर होते हैं ..मेरी अंतर्मन से बधाई सभी आयोजकों को..........
..................जय हिन्द !
घूस सुन्दरी ने यहाँ, यों फैलाये केश
दो नम्बर में रंग गया, इक नम्बर का देश
सबको पैसा चाहिए, सबको सुविधा भोग
इसीलिए तो घूस का, फैला इतना रोग
Posted by
Unknown
Friday, October 21, 2011
ज्योति-पर्व की ख़ूब बधाई
सबको मुबारक़ हो मंहगाई
आई फिर दीपावली, ले कर नव उल्लास
उजियारे का हो रहा, भीतर तक आभास
भीतर तक आभास, लगी सजने दूकानें
धीरे धीरे ग्राहकगण, भी लगे हैं आने
बरतन-वरतन, कपड़ा-सपड़ा, जूता-वूता
हर वस्तु का भाव भले आकाश को छूता
खर्चो खर्चो, खर्च दो, जितना जिसके पास
आई फिर दीपावली, ले कर नव उल्लास
-अलबेला खत्री
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Unknown
Saturday, August 27, 2011
पिछले कुछ महीनों में दुनिया के अनेक देशों से वहां की ज़ालिम
सत्ता के प्रति जनता के भारी आक्रोष के स्वर सुनाई व दिखाई
दिए थे . सारे संघर्ष रक्त रंजित थे, ख़ूनी थे अर्थात हिंसक थे .
छोटे-छोटे देशों के आन्दोलनों में भी बड़े स्तर पर लोग मारे गये
या अपंग हुए थे. परन्तु धन्य है भारत की धरती और भारत की
समझदार जनता ...लोकतन्त्र में विश्वास करने वाली, अहिंसा में
आस्था रखने वाली हमारी अन्नामय जनता, जिसके समर्थन के
बल पर 74 वर्ष के बुजुर्ग, एक आम आदमी ने वो कर दिखाया
जिस पर यक़ीन करने में उन देशों को बड़ा वक्त लगेगा .
12 दिन तक भूखा रह कर, देश और देश के लोगों की ख़ुशहाली
के लिए अपने प्राणों की बाज़ी लगा देने वाले असली जांबाज़
अन्ना हज़ारे ने साबित कर दिया कि भारत वही देश है जहाँ
कभी लंगोटी धारी बूढ़े महात्मा गांधी ने अहिंसा के दम पर
समूची अँगरेज़ हुकूमत को हिला दिया था .
देख लो दुनिया वालो देखलो ! आंखें खोल कर देख लो.....
त्याग है बलिदान है ये इण्डिया
शौर्य की पहचान है ये इण्डिया
कर लो माथे पर तिलक इस माटी का
बहुत गरिमावान है ये इण्डिया
भक्ति और शक्ति का संगम है जहाँ
ऐसा तीर्थ स्थान है ये इण्डिया
जय हिन्द !
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आदरणीय अन्ना जी !
जिस महान मकसद के लिए आपने कदम उठाया, वह लगभग हासिल
हो चुका है . भले ही अभी काम पूरा नहीं हुआ लेकिन जितना हुआ है वह
ऐतिहासिक है और अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है . वह कोई कम नहीं है .
सारी पार्टियाँ, सारे दल एक ही मुद्दे पर संसद में चर्चा करते हुए जिस
प्रकार भ्रष्टाचार के विरुद्ध आपकी जंग को समर्थन दे रहे थे उसे देख
कर मेरी पीढ़ी के लोगों को गर्व हो रहा था कि भले ही हमने गांधी को
अंग्रेजों से लड़ते हुए नहीं देखा, परन्तु हम अन्ना को भ्रष्टाचार के
खिलाफ लड़ते हुए न केवल देख रहे हैं अपितु यथाशक्ति अपना साथ
भी दे रहे हैं
अब आप अनशन तोड़ दीजिये प्रभु ! अब और जिद्द मत कीजिये .
आपका हठ अब तक हमें प्रेरित कर रहा था परन्तु अब हमें चिंतित
और परेशान करने लगा है .
12 दिन से आपने कुछ खाया नहीं है सिवाय लोकसमर्थन के, जिससे
बाकी सारे काम भले ही हो जाएँ पर पेट नहीं भरता और ज़िन्दा रहने
के लिए पेट भरना ज़रूरी है
देश के लिए मरना कोई बड़ी बात नहीं है ...देश के लिए जीना बड़ी बात
है . क्योंकि मरते तो लोग रोज़ हैं यहाँ ..कौन पूछ रहा है उनके बारे
में ? वो हेमंत करकरे, वो संदीप उन्नीकृष्णन और हज़ारों हज़ार
फौजी जो सरहद पर मर मिट गये देश के लिए.. देश ने कहाँ याद
रखा किसी को, लेकिन जो लोग देश के लिए जिए ऐसे अन्ना हज़ारे
को, किरण बेदी को, बाबा रामदेव को, नरेन्द्र मोदी को, सोनिया गांधी
को, कपिल देव को, सचिन तेंदुलकर को, बिड़ला को, टाटा को और
अमिताभ बच्चन को पूरा देश जानता, पहचानता और मानता है .
आप रहेंगे तो सब होगा, सबके सपने पूरे होंगे. अगर आप ही अनशन
पर डटे रहे, तो............हम सब चिन्तित हैं अन्ना !
देश के लिए मरना नहीं, बल्कि देश की तमाम बुराइयों को मारना है,
देश के दुश्मनों को मारना है, मारते-मारते मरना और मरते मरते भी
मारना है, ख़त्म करना है उन तिलचट्टों को जो देश को चट कर रहे हैं
ये पोस्ट बहुत लम्बी होती जा रही है और इत्ती लम्बी पोस्ट कोई
पढता नहीं है इसलिए मेरी कर बद्ध प्रार्थना है ..कृपया कुछ अन्न
ग्रहण कर लीजिये .
जय हिन्द !
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Friday, August 26, 2011
मेरे मासूम देश के ज़ालिम हुक्मरानों !
इन्सान की खाल ओढ़े हुए हैवानों !
तुम्हें ज़रा भी लज्जा नहीं आती अपने आप से....हराम का सीमेन्ट,
सरिया,लोहा, लंगड़ खा खा कर क्या तुम इतने कठोर हो गये हो कि
तुम्हे भारत माँ का आर्तनाद भी अब सुनाई नहीं देता ? करोड़ों
लोगों का हुजूम दिखाई नहीं देता ?
74 -75 साल का एक बुजुर्ग आदमी पिछले 11 दिन से केवल
पानी पी कर ज़िन्दा है और तुम तमाशा देख रहे हो ?
शर्म आनी चाहिए तुम्हें मेरे मुल्क के नेताओं ! जो काम तुम्हारा
था, जिस काम के लिए तुमको भेजा गया था वह आज अन्ना
के नेतृत्व में अगर अवाम कर रहा तो तुम उसका समर्थन
करने के बजाय उसका विरोध कर रहे हो ?
थू है तुम पर...........और तुम्हारी हिजड़ा पार्टियों पर
देश से भ्रष्टाचार मिटाने के लिए यदि देश के नागरिकों को
अनशन पर बैठना पड़े तो राम ही राखे इस देश को ...
जय हिन्द !
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Tuesday, August 23, 2011
प्यारे मित्रो,
अभी अभी फेस बुक पर यह दुखद समाचार अरविन्द मिश्र जी की
पोस्ट से मिला कि वरिष्ठ ब्लोगर डॉ. अमर कुमार नहीं रहे...........
सहसा मुझे यकीं नहीं हुआ...
कृपया कोई पता लगा कर सही कन्फर्म करे......कहीं ऐसा तो नहीं
अरविन्द मिश्र जी के नाम से किसी और ने मजाक किया हो..........
भगवान करे मजाक ही किया हो किसी ने......
यह सच न हो...झूठ हो....डॉ. अमर कुमार जी जीवित ही हों
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Thursday, August 18, 2011
हर सीने से आग उठी है
देश की जनता जाग उठी है
अब
भरोसा है अवाम को
हुकूमत अब दिल्ली में ज़ुल्म और ज़ोरों की नहीं रहेगी
बद्ज़ुबान, बदतमीज़, बदमिजाज़ छिछोरों की नहीं रहेगी
अरे.........
तब बापू ने बीड़ा उठाया था
आज अन्ना ने प्रण किया है
तब गोरों की नहीं रही थी और अब चोरों की नहीं रहेगी
जय हिन्द !
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BHRASTACHAAR BHAGAAO, DESH BACHAAO |
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Tuesday, July 26, 2011
आज कारगिल विजय की वर्षगाँठ के गौरवपूर्ण अवसर पर
विश्व भर के समस्त भारतीयों को
हास्यकवि अलबेला खत्री
और
रचनाकार साहित्य संस्थान का सादर जय हिन्द !
यही सोच कर रचता हूँ मैं भजन रोज़ हनुमान का
झंडा ऊँचा रहे हमेशा, अपने हिन्दुस्तान का
मैं याचक हूँ, बजरंगी से, केवल इस वरदान का
झंडा ऊँचा रहे हमेशा, अपने हिन्दुस्तान का
भ्रष्टाचारी नेताओं के तन पर भूत चिपट जाये
गद्दारों के गूमड़ फूटे, काला नाग लिपट जाये
बाबा का हो करम तो पल में काम तमाम निपट जाये
सुख की धार बहे भारत में, संकट सारा कट जाये
फिर से डंका बजे विश्व में भारत देश महान का
झंडा ऊँचा रहे हमेशा, अपने हिन्दुस्तान का
मंहगाई के मुँह में मसाला भर जाये बारूद का
नक्कालों की नाक में घोचा फस जाये अमरूद का
दुश्मन देश का रहे न बाकी नामो-निशान वजूद का
गुप्त रोग से मर खप जाये, हर गुर्गा दाऊद का
देशभक्ति का जज़्बा जागे, अब तो हर इन्सान का
झंडा ऊँचा रहे हमेशा, अपने हिन्दुस्तान का
- अलबेला खत्री
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Monday, July 25, 2011
मानसून का भीना भीना मौसम
विशाखापत्तनम के प्राकृतिक सौन्दर्य की छटा
ऊपर से तापमान भी घटा
ऐसे मस्त आलम में गीतों की गुनगुनाहट हो जाय
शेरो-शायरी की जगमगाहट हो जाय
और कभी ठहाके, कभी मुस्कुराहट हो जाय
तो काम हसीन हो जाय
औ शाम रंगीन हो जाय
_____________________जी हाँ, यही हुआ था 11 जुलाई 2011 की शाम
राष्ट्रीय इस्पात निगम लिमिटेड के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक
श्री पी के बिश्नोई के मुख्य आतिथ्य में, विशाखापत्तणम इस्पात संयंत्र के
हिंदी विभाग द्वारा एक 'रंगारंग हास्य कवि-सम्मेलन व मुशायरा' हुआ
और ऐसा हुआ कि बल्ले-बल्ले हो गयी .
रचनाकार साहित्य संस्थान-सूरत के लिए, लाफ़्टर चैम्पियन हास्यकवि
अलबेला खत्री द्वारा प्रस्तुत इस ज़बरदस्त कार्यक्रम के मुख्य संयोजक
सहायक महाप्रबंधक श्री ललन कुमार और हिंदी कक्ष के श्री नीलू गोपाल
ने आयोजन की सफलता हेतु जो धुंआधार प्रचार, प्रसार तथा अन्य
तैयारियां की थीं उनकी सारी थकान तब काफूर हो गयी जब दर्शकों से
खचाखच भरा उक्कु क्लब का एम पी हॉल आनंद में गोते लगाने लगा
सर्वप्रथम आमंत्रित कवि/कवयित्री का फूलों से सम्मान हुआ
श्री ललन कुमार ने आयोजन की रूपरेखा बताई तथा मुख्य अतिथि
श्री पी के बिश्नोई, श्रीमती बिश्नोई समेत समस्त उच्चाधिकारियों का
शब्द-सुमनों से सम्मान किया
श्री बिश्नोई दम्पति एवं कविजन ने मंगलदीप प्रज्ज्वलित किया यहाँ
यह बताना ज़रूरी है दीप को, दीप से ही ज्योतित किया गया - जबकि
आमतौर पर मोमबत्ती का प्रयोग किया जाता है
सुपरिचित मंच संचालक अलबेला खत्री ने अपना काम शुरू किया
अवधकुमारी सूरत निवासी उर्मिला उर्मि ने सरस्वती वन्दना की
भोपाल के जलाल मयकश, उज्जैन के गोविन्द राठी, पानीपत के
योगेन्द्र मौदगिल और सूरत के अलबेला खत्री ने अपनी बातों से,
गीतों - ग़ज़लों - छंदों और चुटकुलों से ऐसा समाँ बाँधा कि तीन
घंटे कब बीत गए,पता ही नहीं चला
सीएमडी श्री बिश्नोई जो केवल आधे घंटे के लिए आये थे, पूरे समय
विराजमान रहे और समापन के समय कविजन को विशेष उपहारों
से सम्मानित करने के अलावा उर्मि के काव्य-संग्रह " कुछ मासूम
से पल " को विमोचित करके ही प्रस्थान किया .
अनेक दर्शक जन और विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार यह कवि-
सम्मेलन अब तक का सर्वाधिक सफल कवि-सम्मेलन था . इस
बात से मुझे बड़ी संतुष्टि मिली . वैसे इस सफलता में जितना
योगदान कवियों का था, उतना ही दर्शकों का भी था . सचमुच
ऐसे दर्शक, ऐसे परिश्रमी आयोजक और ऐसे शानदार कवि हों
तो फिर सफलता की गारंटी तो है ही....हा हा हा हा हा
जय हिन्द !