आज गुरुनानक देव जी के प्रकाश पर्व पर गुरु कृपा का एक सच्चा किस्सा
आपको बताता हूँ । इस में लेश मात्र भी बनावट नहीं है, पूर्णतः सत्य है .....
पोकरण राजस्थान में जन्मे मेरे पिताजी जब कुल 11 माह के थे तभी उनके
माता-पिता एक ही दिन गुज़र गए थे । दिन में मेरे दादा और उनके दुःख में
रात को मेरी दादी गुज़र गई थी. उन्हें उनकी नानी बाड़मेर ले गई और पाल
पोस कर बड़ा किया । पिताजी बचपन से ही कड़े परिश्रमी लेकिन ज़बर्दस्त
मज़ाकिया और चंचल स्वभाव के थे । वे बाड़मेर में रंगाई छपाई का काम
करते थे जो कि आमतौर पर राजस्थान के ब्रह्मक्षत्रिय करते हैं । दिन भर
कड़ी मेहनत करते और रात को सत्संग या फ़िल्म में जा कर आनन्द करते....
चूँकि मेरे दादाजी का काम रंगने-छापने का नहीं था, साहूकारी का था, लेकिन
उनकी मृत्यु के बाद लोगों ने लिया हुआ क़र्ज़ लौटाया नहीं और कोई वसूल
करने वाला था भी नहीं । अतः सब डूब गया और पिताजी को वही सब करना
पड़ा जो वे नहीं करना चाहते थे क्योंकि बाड़मेर या पोकरण में और कोई काम
होता भी नहीं था। खैर.........
जब उनकी शादी हो गई और एक पुत्र भी हो गया तब उन्होंने मन बना लिया
कि मैं अपनी सन्तान को इस रंगाई-छपाई के नर्क में नहीं जलाऊंगा बल्कि
खूब पढ़ा लिखा कर बड़ा आदमी बनाउंगा । तब तक वे खूब माल कमा भी चुके
थे और उनके नीचे कोई 100 लोग काम करते थे। यानी सेठजी बन चुके थे
और बाज़ार में उनका नाम बिकता था । लेकिन जँच गई मन में कि बाड़मेर
छोड़ना है । लोगों ने बहुत समझाया कि जमा जमाया काम है यहाँ जात
बिरादरी के लोग भी हैं, पता नहीं नई जगह क्या होगा ?
लेकिन पिताजी ने किसी की नहीं सुनी... उन्होंने आधे-पौने दामों में बाड़मेर
का सारा ताम-झाम निपटाया और नए नए बसे शहर श्रीगंगानगर पहुँच
गए ताकि नव विकसित इस सर सब्ज़ इलाके में कोई व्यापार कर सके ।
उन्होंने वहाँ अनाज और शक्कर का होलसेल व्यापार शुरू किया लेकिन
चूँकि इस काम में नौसिखियाँ थे इसलिए उन्होंने कई लोग रख लिए थे
व्यापार सम्हालने के लिए । यहीं से उनकी दुर्गति शुरू हुई ।
एक माह के अन्दर ही उनके बीस साल की मेहनत का सरमाया ख़त्म
हो गया । जो लोग उन्होंने रखे थे वे रात को सोते भी पिताजी की दूकान
या गोदाम में थे और चाबियाँ भी उनके रहती थी पिताजी चूँकि स्वयं
चोर नहीं थे इसलिए सबको अच्छा ही समझते थे...लेकिन वे बेईमान
निकले...उन्होंने कुछ माल तो रातो रात बेच कर पैसा चुरा लिया और
कुछ ये कह कर कि बाज़ार में उधार दिया है सारा अनाज ख़त्म कर दिया,
फ़िर सब चम्पत हो गए , पिताजी को काटो तो खून नहीं ...अब क्या करे ?
किस मुंह से वापिस बाड़मेर जाए ? जहाँ मेरी माँ उनका रास्ता देख रही थी
कि कब वो आयें और अपने साथ लेकर जाएँ.......
जब खाने के भी वान्दे हो गए तो वे बैठ गए ट्रेन में बाड़मेर जाने के लिए ।
बहुत उदास थे क्योंकि ज़िन्दगी में पहली बार रोये थे । ट्रेन में उन्हें एक
अकाली सन्त मिले । उन्होंने उदासी का सबब पूछा तो पिताजी ने सब बता
दिया । तब उस सन्त ने कहा - " बेटा, घबरा मत ! गंगानगर छोड़ मत,
वापिस जा...मेहनत कर,मजदूरी कर ..कुछ भी कर लेकिन वहीं रह > और
एक काम ज़रूर करना । सबसे पहले किसी भी गुरुद्वारे में जा के, माथा टेक के
श्री गुरुनानक देव जी की शरण ले लेना , अपने आप को उनके हवाले कर देना,
और सुख दुःख जो भी मिले उसे गुरु का प्रसाद समझना . सब ठीक हो जाएगा ।
पिताजी ने ऐसा ही किया । बाद में क्या क्या हुआ उसके विस्तार में मैं नहीं
जाऊंगा लेकिन उन्होंने वहां नाम भी कमाया, दाम भी कमाया...हम पाँच
भाई बहन को उच्चस्तरीय परवरिश दी और जीवन में खुल कर साध
सांगत की सेवा भी की।
नित्य गुरूद्वारे जाना । पूनम, अमावस, सक्रान्त आदि अवसरों पर वे
अपने हाथ से पूरा रसोई घर धोके , ख़ुद नहा धोके बिना कुछ खाए पिए,
कड़ाह प्रसाद बनाते थे और अपने सर पर रख कर गुरुद्वारे ले जाते थे ।
हलवा तो वे वैसे भी बना कर हमें खिलाते रहते थे लेकिन गुरु के लिए
जो बनता था उसका स्वाद ही कुछ और होता था ..उसकी महक ही कुछ
और होती थी । मैंने वैसी महक और वो स्वाद दोबारा नहीं देखा ..जब से
पिताजी का देहान्त हुआ गुरुद्वारे के पाठी भी बोले कि स्वाद डालने वाला
चला गया...
अब मैं आपको एक ख़ास बात बताता हूँ । वैसे तो पिताजी हर आमद और
खर्च का हिसाब रखते थे लेकिन जब हिसाब करते थे महीने के महीने तो
खूब हँसते थे और खूब रोते थे तथा भाव विभोर हो कर श्री जपुजी साहेब
का पाठ करते थे.. यह मैंने अपनीं आँखों से देखा है । तब मेरी आयु रही
होगी कोई 10-11 वर्ष , जब माँ ने एक दिन उनसे पूछ ही लिया कि
हिसाब करते करते क्या होजाता है आपको ? तो उन्होंने कहा कि हिसाब
देख कर मेरा मन वाहे गुरु का कृतज्ञ हो जाता है क्योंकि कमाई के
सामने खर्च का व्यवहार देखूं तो समझ ही नहीं आता कि घर चल
कैसे रहा है ?
सब सतगुरु की कृपा है
कुछ और विशेष तो छूट ही गया लेकिन अब मैं कुछ भी टाइप नहीं कर
पा रहा हूँ क्योंकि आँखों से झरती पिताजी की याद और वाहे गुरु की कृपा
से पूरा की बोर्ड गिला हो चुका है ..आँखे धुंधला गई हैं ।
सतनाम श्री वाहे गुरु !
नानक नाम चढ़दी कला
तेरे भाणे सरबत दा भला
hindi hasyakavi sammelan in mangalore by MRPL
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शानदार, शानदार, शानदार …………………
शानदार और जानदार रहा मंगलूर रिफ़ाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड द्वारा
राजभाषा विभाग के तत्वाधान में डॉ बी आर पाल द्वारा आ...
10 years ago
11 comments:
वाहे गुरू जी दा खालसा, वाहे गुरू जी दी फतह।
आज तो गुरुनानक जी का जन्मदिन है ! बहुत ही बढ़िया लिखा है आपने! गुरुनानक जी की कृपा आप और आपके परिवार पर हमेशा बना रहे !
अलबेला जी,सच्ची आस्था और विश्वास हमे आत्मबल देता है.........बहुत ही भावुकता भरा संस्मरण है। धन्यवाद।
गुरुप्रकाश पर्व की हार्दिक शुभकामना.
सच्चा प्रेम और विश्वास का एक सुंदर उदाहरण...गुरुनानक जी की कृपा हम सभी पर बनी रहें...प्रणाम
सतनाम श्री वाहे गुरु !
नानक नाम चढ़दी कला
तेरे भाणे सरबत दा भला
आज आप ने भावूक कर दिया...
सतनाम श्री वाहे गुरु...गुरु पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं
वाहे गुरु ! सतश्री अकालमुरत को मेरा कौटि कौटि प्रणाम !!! सचमुच बहुत ही सच्चा उदहारण है !!! वाहे गुरु से प्रार्थना है की मुझे कुछ न भी दे पर मेरी प्रार्थना सुन ले मैं गुरुदुवारे जाउंगा और मत्था टेक के जरुर आउंगा !!!
माता -पिता तो भगवान् का ही रूप होते हैं ...बहुत ही अच्छा लगा .इस सच्ची घटना को सुन कर
कमी तो उनकी तभी महसूस होती है जब वो नही रहते हैं ....फ़िर आंसू ही हमारा साथ देते हैं
भाई सब को गोली मरो और बाड़मेर आ जाओ
PRANAM , NAMAN
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