ये क्या मित्रो ?
एक भी जवाब नहीं.................
सही तो छोड़ो ग़लत भी नहीं................
मेरी सारी भेजा खपाई की टाँय टाँय फिस्स कर डाली आपने.....
पर मैंने तो कौल किया है ...
मुझे तो बताना ही पड़ेगा, जो मैंने आपसे इस पोस्ट में पूछा था :
तो साहेब !
जैसे ही नेहरू पार्क वाले नेहरूजी ने गांधी बाग़ वाले गांधी जी से
घोड़े की डिमाण्ड की, गांधीजी को क्रोध आ गया और उन्होंने डांटते
हुए कहा : घोड़ा ? घोड़ा चाहिए तुम्हें ? क्यों ?
" क्योंकि बाकी सभी देश भक्त लोग घोड़े पे बैठे हैं । झाँसी की रानी
के पास घोड़ा, छत्रपति शिवाजी महाराज के पास घोड़ा, महाराणा
प्रताप के पास भी घोड़ा और महाराजा गंगासिंहजी के पास भी घोड़ा,
बस.............हमारे ही पास नहीं घोड़ा इसलिए मन होगया थोड़ा ....
अगर हमें भी मिल जाए एक एक घोड़ा तो आराम आजाये थोड़ा, खड़े-
खड़े गोड्डे अकड़ गए हैं बापू !
बापू : बेटा जवाहर !
घोड़े योद्धाओं को दिए जाते हैं , जान पर खेलने वाले लड़ाकों को दिए
जाते हैं , स्वाधीनता संग्राम में रात-दिन लड़ने वाले व लड़-लड़ कर
मरने-मारने वाले महारथियों को दिए जाते हैं, तुम हम जैसे मार खाऊ
सत्याग्रहियों को नहीं .........जो ख़ुद भी लाठियां खाते थे और अपने
अनुयायियों को भी पिटवाते थे.........
अरे घोड़े सम्हालने के लिए भी रजपूती जूनून चाहिए... खबरदार ! जो
फिर कभी घोड़े की मांग की...किसी घोड़े ने सुन लिया तो वो भी हँसेगा
हम पर.. ..हुंह ! आया बड़ा घोड़ा मांगने वाला....हा हा हा हा
एक भी जवाब नहीं.................
सही तो छोड़ो ग़लत भी नहीं................
मेरी सारी भेजा खपाई की टाँय टाँय फिस्स कर डाली आपने.....
पर मैंने तो कौल किया है ...
मुझे तो बताना ही पड़ेगा, जो मैंने आपसे इस पोस्ट में पूछा था :
घोड़ा मांगने पर गांधीजी ने डांट दिया नेहरू जी को॥
तो साहेब !
जैसे ही नेहरू पार्क वाले नेहरूजी ने गांधी बाग़ वाले गांधी जी से
घोड़े की डिमाण्ड की, गांधीजी को क्रोध आ गया और उन्होंने डांटते
हुए कहा : घोड़ा ? घोड़ा चाहिए तुम्हें ? क्यों ?
" क्योंकि बाकी सभी देश भक्त लोग घोड़े पे बैठे हैं । झाँसी की रानी
के पास घोड़ा, छत्रपति शिवाजी महाराज के पास घोड़ा, महाराणा
प्रताप के पास भी घोड़ा और महाराजा गंगासिंहजी के पास भी घोड़ा,
बस.............हमारे ही पास नहीं घोड़ा इसलिए मन होगया थोड़ा ....
अगर हमें भी मिल जाए एक एक घोड़ा तो आराम आजाये थोड़ा, खड़े-
खड़े गोड्डे अकड़ गए हैं बापू !
बापू : बेटा जवाहर !
घोड़े योद्धाओं को दिए जाते हैं , जान पर खेलने वाले लड़ाकों को दिए
जाते हैं , स्वाधीनता संग्राम में रात-दिन लड़ने वाले व लड़-लड़ कर
मरने-मारने वाले महारथियों को दिए जाते हैं, तुम हम जैसे मार खाऊ
सत्याग्रहियों को नहीं .........जो ख़ुद भी लाठियां खाते थे और अपने
अनुयायियों को भी पिटवाते थे.........
अरे घोड़े सम्हालने के लिए भी रजपूती जूनून चाहिए... खबरदार ! जो
फिर कभी घोड़े की मांग की...किसी घोड़े ने सुन लिया तो वो भी हँसेगा
हम पर.. ..हुंह ! आया बड़ा घोड़ा मांगने वाला....हा हा हा हा
7 comments:
घोड़ा वाकई बहुत मुश्किल सवारी है...कुर्सी थोड़े ही है घोड़ा.
घोड़ा तो मिला नही। गद्दी और गाड़ी जरूर मिल गई!
गांधी जी ने गुड़ नही दिया भेली दे दी!
गांधी जी ने घोड़ा नहीं दिया तो क्या हुआ ...............हम सब थे , है और रहगे इनका और इनके खानदान का बोझा ढ़ोने के लिए.........परमानेंट गधो के आगे घोडो की क्या बिसात !
हा हा हा...:)
हा हा!!
बहुत बड़ी बात कह दी आपने खत्री जी!
"राम का धनुष उठाना", "कृष्ण का अर्जुन को युद्ध के लिये प्रेरित करना" ही सही कार्य है। स्वाभिमान की रक्षा और अपनी स्वतन्त्रता के लिये शत्रु का दमन करना ही नीति है।
थोथी अहिंसा तो कायरता है।
भारत की स्वतन्त्रता के लिये
कितने ही क्रान्तिकारी वीरों ने
क्रान्ति की
लहू बहाई,
पर हमें पढ़ाया जाता है
कि देश में आजादी
अहिंसा से आई।
इस देश में सच्चा क्रान्तिकारी वीर हिंसक कहलाता है।
और मार खा कर भी जिसका स्वाभिमान न जागे,
वह देशभक्त महात्मा बन जाता है।
मज़ा आ गया खत्री जी! लाजवाब पोस्ट!
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