नम्रता यदि ज्ञान से कुछ कम नहीं
तो अहम अज्ञान से कुछ कम नहीं
सड़ रहे हैं शव जहां पर प्राणियों के
वे उदर श्मशान से कुछ कम नहीं
जिस हृदय में प्रेम और करुणा नहीं
वो हृदय पाषाण से कुछ कम नहीं
इतनी महंगाई में भी ज़िन्दा हैं हम
यह किसी बलिदान से कुछ कम नहीं
आचरण यदि दानवों का छोड़ दे तो
आदमी भगवान से कुछ कम नहीं
काव्य में जिसके कलेजे की क़शिश है
वह कवि रसखान से कुछ कम नहीं
आपने अलबेला की कविताएं पढ़ लीं
यह किसी ऐहसान से कुछ कम नहीं
hindi hasyakavi sammelan in mangalore by MRPL
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शानदार, शानदार, शानदार …………………
शानदार और जानदार रहा मंगलूर रिफ़ाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड द्वारा
राजभाषा विभाग के तत्वाधान में डॉ बी आर पाल द्वारा आ...
10 years ago
11 comments:
इतनी महंगाई में भी ज़िन्दा हैं हम,,,,, यह किसी बलिदान से कुछ कम नहीं .....
bilkul sahi kaha aapne....
अरे नहीं सर जी एहसान तो आप करते है जो हमे अच्छी रचनायें पढ़ने को देते है ।
"जिस हृदय में प्रे और करुणा नहीं
वो हृदय पाषाण से कुछ कम नहीं"
बहुत सुन्दर!
अलबेला जी,
कविता से आपके अंदर की आग झलक रही है...वैसे मिस्टर नटवरलाल का एक गाना आपने भी सुना होगा...
ये जीना भी कोई जीना है... लल्लू
मैंने एक पोस्ट लिखी थी...सपनों की रोटी...उसका लिंक दे रहा हूं...पढ़िएगा ज़रूर
http://deshnama.blogspot.com/2009/08/blog-post_6948.html
जय हिंद...
जिस हृदय में प्रेम और करुणा नहीं
वो हृदय पाषाण से कुछ कम नहीं
बिल्कुल सही बात है ! दिल को छू गई आपकी ये पंक्तियाँ!
आपने अलबेला की कविताएं पढ़ लीं
यह किसी ऐहसान से कुछ कम नहीं
खत्री जी इसमें ऐहसान कैसा? बल्कि आपकी रचनाएँ पढ़ना तो मुझे बेहद अच्छा लगता है!
प्यार का पल चाहते पाषाण भी हैं।
इन पहाड़ों में बसे कुछ प्राण भी हैं।।
पत्थरों में भी हृदय है, पत्थरों में भी दया है।
चीड़ का परिवार, इनके अंक में ही बस गया है।
पत्थरों के देवता हैं,पत्थरों के घर बने हैं।
पत्थरों में पक्षियों के,घोंसले सुन्दर घने हैं।
पत्थरों में प्राण भी हैं,और हैं, पाषाण भी।
पत्थरों में आदमी हैं,और हैं भगवान भी।
मात्र ये कंकड़ नही,कल्याण भी हैं।
इन पहाड़ों में बसे,कुछ प्राण भी हैं।।
"आपने अलबेला की कविताएं पढ़ लीं
यह किसी ऐहसान से कुछ कम नहीं"
आपका यह कहना हमारे लिए किसी जूत्ते से कम नहीं !
आपको पसंद करते है सो पढ़ते है , आप पर नहीं यह हम खुद पर ऐहसान करते है !
सत्य वचन।
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11वाँ राष्ट्रीय विज्ञान कथा सम्मेलन।
गूगल की बेवफाई की कोई तो वजह होगी?
बहुत ही सुन्दर लाईनें.. :
सड़ रहे हैं शव जहां पर प्राणियों के
वे उदर श्मशान से कुछ कम नहीं
आभार
प्रतीक माहेश्वरी
आपने हमारी की टिपण्णी पढ़ लीं
यह किसी ऐहसान से कुछ कम नहीं
बहुत सुंदर जी
रूलाने के लिये तो बहुत से मर्ज हैं
हसाने के लिए आप का ब्लाग है ये कम नहीं(बहुत ज्यादा है)
आप का ब्लाग पढ़ के मन खुस हो गया इसी तरह लिखते रहें ।
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