मेरे काव्य-गुरू डॉ सारस्वत मोहन "मनीषी" की ये दो पंक्तियाँ सब कुछ
कह देती हैं । कुछ भी शेष नहीं रहता ।
ले आँख मीच अन्याय देख,
वह खून नहीं है, पानी है
हिन्दी से जिसको प्यार नहीं,
वो कैसा हिन्दुस्तानी है
फ़िर भी कल की घटना पर कुछ कहने के लिए मेरा मन भीतर से
आवाज़ दे रहा है लिहाज़ा हिन्दी को अपमानित किए जाने पर मैं
एक खुला आलेख लिख रहा हूँ ...........चूँकि 25 साल तक मुंबई
में रहा हूँ....और हज़ारों बार हिन्दी के आयोजनों में स्वयं को प्रस्तुत
किया है इसलिए मेरा लिखना तो बहुत ही ज़रूरी है ।
आप सभी आमन्त्रित हैं थोड़ी ही देर बाद इसी जगह
एक नए आलेख पर :
हिन्दी हास्य कवि अलबेला खत्री का
खुला पैगाम
मनसे प्रमुख भाऊ राज ठाकरे के नाम .....
अति शीघ्र प्रकाश्य
hindi hasyakavi sammelan in mangalore by MRPL
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शानदार, शानदार, शानदार …………………
शानदार और जानदार रहा मंगलूर रिफ़ाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड द्वारा
राजभाषा विभाग के तत्वाधान में डॉ बी आर पाल द्वारा आ...
10 years ago
3 comments:
प्रतीक्षा है आपके लेख की।
सही कहा है!
आपकी जागरूकता को प्रणाम!
अलबेला जी आपके काव्य-गुरु के विचारों से पूर्णतः सहमत
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