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Albela Khatri

किसी की बहन - बेटी वो भी कहलाती है..........




माना
तेरी मेरी कुछ

लगती नहीं है पर

किसी की बहन - बेटी वो भी कहलाती है


उदर की भूख के

तन्दूर में जो मोम सम

तड़प-तड़प, तिल - तिल जली जाती है


सीने के नासूरों से है

बे-ख़बर वो मगर

गैरों के बदन, दोनों हाथों सहलाती हैं


यही तो समाज उसे

रात भर भोगता है

इसी ही समाज में वो वेश्या कहलाती है



16 comments:

निर्मला कपिला November 21, 2009 at 9:26 AM  

औरत की विडंवना की तस्वीर बहुत बडिया धन्यवाद्

Anil Pusadkar November 21, 2009 at 9:42 AM  

क्या कहा जा सकता है अलबेला जी,समाज की इस कड़ुवी सच्चाई पर अफ़्सोस है।

पी.सी.गोदियाल "परचेत" November 21, 2009 at 9:43 AM  

वाह जी वाह , बहुत खूब !

हरीश करमचंदाणी November 21, 2009 at 10:09 AM  

jhakjhor kar pathrili zameen par patak de aesa kadava sach

Mithilesh dubey November 21, 2009 at 10:12 AM  

गजब कर दिया अलबेला जी, सच मानियेँ मुझे आपकी ये सर्वश्रेस्ठ रचना लगी । बहुत ही सुन्दर तरिके से चित्रण किया है आपने औरत का , और जिस तरह से आप ने उनके दर्द को बयाँ किया काबिले तारीफ है।

दीपक 'मशाल' November 21, 2009 at 10:12 AM  

बहुत ही संवेदनशील और सार्थक कविता है.. सर..

मुकेश कुमार तिवारी November 21, 2009 at 10:44 AM  

अलबेला जी,

अंतरतम को झकझोरती हुई कविता नश्तर सी चुभी रह गई।

यह सच कहा गया है कि हास्य संवेदनाओं की चरम स्थिति पर निर्मित होता है, नही तो एक हास्यकवि इतनी मार्मिक और संवेदनाओं से भरी कविता?


सादर,


मुकेश कुमार तिवारी

Anonymous November 21, 2009 at 10:51 AM  

एक कड़वी सच्चाई

बी एस पाबला

शिवम् मिश्रा November 21, 2009 at 11:24 AM  

बहुत बढ़िया बड़े भाई ...............क्या आईना दिखाया है समाज को !

शरद कोकास November 21, 2009 at 12:13 PM  

काश हर कोई ऐसा सोचता !!

Chandan Kumar Jha November 21, 2009 at 2:19 PM  

बहुत सुन्दर्………………………

राज भाटिय़ा November 21, 2009 at 5:23 PM  

अलबेला जी बहुत अच्छी बात कही, इन सब की मजबुरियो का लाभ ऊठाने वाले कभी अपने घर मै अपनी बहन ओर बेटियो को भी देखे,धन्यवाद इस को यहां लिखने के लिये

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' November 21, 2009 at 6:19 PM  

रिस्तों का सटीक चित्रण!

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर November 21, 2009 at 11:54 PM  

yadi kahaa jaaye ki ye DARD hai NARI ka to galat nahin. CHINTANPARAK........
is par wah nahin AAH nikalti hai.

Asha Joglekar November 22, 2009 at 8:44 AM  

तेरी मेरी कुच न लगते हुए भी वह हमारी बहन बेटी भाभी सब कुछ होती है । कोई सोचे तब तो ।

राजीव तनेजा November 22, 2009 at 8:46 PM  

औरत तेरी यही कहानी...आंचल में है दूध और आँखों में है पानी

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