घृणित कहो
बर्बर कहो
जघन्य कहो
शर्मनाक कहो
अमानुषी कहो
घिनौना कहो
बहुत से शब्द हैं, कुछ भी कहो
लेकिन बलात्कार को पाशविक मत कहो
मुझे दु:ख होता है
बड़ा दु:ख होता है
मैं पशु नहीं
लेकिन पशुओं को जानता हूँ
वे ऐसा नहीं करते
कभी नहीं करते ........................
उन्होंने सीखा ही नहीं ऐसा करना
ये महारत तो केवल मानव ही करता है
और कर सकता है
क्योंकि
अभी केवल मानव ही इतना सभ्य
और विकसित हुआ है
इसलिए
देखो ओ दीवानों तुम ये काम न करो
पशुओं का नाम बदनाम न करो
hindi hasyakavi sammelan in mangalore by MRPL
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शानदार, शानदार, शानदार …………………
शानदार और जानदार रहा मंगलूर रिफ़ाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड द्वारा
राजभाषा विभाग के तत्वाधान में डॉ बी आर पाल द्वारा आ...
10 years ago
13 comments:
अति उत्तम!
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जी की ये पंक्तियाँ याद आ गईं:
"मैं मनुष्यता को सुरत्व की जननी भी कह सकता हूँ
किन्तु मनुष्य को पशु कहना भी कभी नहीं सह सकता हूँ"
VAH ALBELA JI ,
Is Mamle men to sabhii pashuon ko mera SADAR NAMAN gyapit kar dijiyega. Sab kuch sabii kaha apne.
बचपन से यही पढाया जाता है man is a social animal ये एनिमल याने पशु ही होता है ना अलबेला भाई ?
शरद जी सही कह रहे हैं क्या गीत बनाया है वाह शुभकामनायें
यही तो रोना है शरद जी !
हमें पढाया ही ग़लत गया है । या हमने पढा ग़लत है ।
मैं तो खैर कुछ पढा ही नहीं, कभी स्कूल के पीछे से भी नहीं निकला, लेकिन जिन्होंने पढ़ा उनकी बात कर रहा हूँ ।
सोशल एनीमल कह कर मनुष्य को सामाजिक पशु बता दिया गया जबकि सामाजिक प्राणी कहना चाहिए था । कारण कि प्राणी और जानवर समानार्थी हैं । जान है इसलिए जानवर और प्राण हैं इसलिए प्राणी ! यानी मनुष्य सामाजिक प्राणी तो है लेकिन पशु नहीं है क्योंकि पशु का अर्थ प्राणी नहीं होता ..पशु , पक्षी, पेड़ पौधे व मनुष्य तो प्राणियों की विभिन्न प्रजातियाँ हैं
बहुत बढ़िया !! पर अगर मैं गलत नहीं तो शायद यह पोस्ट आप पहले भी लगा चुके हो !
Bahut hi sahi likha hain aapne.
बहुत अकाट्य तर्क दिये है।
सुन्दर अभिव्यक्ति!
waah sachmuch ekdum sahi tark diye hain aapne
jyotishkishore.blogspot.com
कितनी बड़ी बड़ी बड़ी और अच्छी अच्छी बातें लगातार करते चले जा रहे हैं अलबेला भाई। क्या बात है? या तो कहीं से बड़ा दर्द पाए हुए हैं या फिर कोई बड़ी ख़ुशी ? ख़ैर जो भी हो फ़ायदा तो पढ़ने वालों को ही हो रहा है। आपका बहुत बहुत आभार, अलबेला जी। यूँ ही हँसते और हँसाते रहिए। आपके मुरीद।
आदमी को आदमी की औकात दिखाती रचना है ये....
सटीक।
सार्थक रचना
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