भाई अपनेराम चूँकि पढ़े लिखे नहीं हैं,
इसलिए अपनी जानकारी भी ज़्यादा नहीं है लेकिन एक सवाल
बहुत ज़ोर से आ रहा है मेरे ज़ेहन में यदि इसका ठीक ठाक जवाब
मिल जाए.....तो जीते जी शान्ति मिल जाए मुझे............
हाँ , अब इत्ती सी बात के लिए मरने भी कौन जाए ?
पूरी दुनिया में सुबह सूर्योदय होता है और शाम को सूर्यास्त ..
अलग -अलग भाषा में उसे कुछ भी कहा जाता हो,
लेकिन इसका मतलब यही होता है
मेरा सवाल ये है कि जब खगोल शास्त्रियों और वैज्ञानिकों ने ये
सिद्ध कर दिया है कि सूर्य अचल है व शाश्वत रूप में कायम है,
धरती ही स्वयं घूमती घूमती सूर्य के चक्कर लगाती है और
इसी कारण धरती पर जहाँ प्रकाश पड़ता है वहां दिन और जहाँ
नहीं पड़ता वहां रात मान लिया जाता है तो फिर ये रोज़ रोज़
हम झूठ क्यों बोलते हैं कि सूर्योदय होगया और सूर्यास्त हो गया ॥
जबकि सूर्य महाराज तो न उदय होते हैं न ही अस्त !
क्या हमारे पास इस दैनंदिन घटना के लिए सही शब्द नहीं हैं ?
कृपया बताएं...............
hindi hasyakavi sammelan in mangalore by MRPL
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शानदार, शानदार, शानदार …………………
शानदार और जानदार रहा मंगलूर रिफ़ाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड द्वारा
राजभाषा विभाग के तत्वाधान में डॉ बी आर पाल द्वारा आ...
10 years ago
7 comments:
अब क्या है खत्रीजी, जिसके पास रहना उसी के गुण गाने पड़ते हैं। जमीं पर रह कर धरती से कौन बैर करे? वैसे भी फितरत है, जैसी बहे बयार, पीठ पुनि तैसी किजै। और फिर जिसका खाते हैं उसे क्यों नीचा दिखाया जाय। फिर सच्चाई तो सच्चाई ही रहेगी पर कोई मुगालते में रहे तो रहे, क्या बिगड़ता है सब खुश तो हैं।
लिजिए रात गयी हुआ सबेरा,
धरती ने पूरा किया अपना फेरा।
महान वैज्ञानिक आइंस्टीन के अनुसार प्रत्येक वस्तु साक्षेप है अर्थात् हम किसी भी वस्तु को किसी न किसी दूसरे वस्तु की तुलना में ही देखते हैं।
उदाहरण के लिये यदि कोई मुझे मुझसे किसी कम ज्ञानवान व्यक्ति की तुलना में देखेगा तो मैं उसे ज्ञानी लगूँगा किन्तु वही व्यक्ति मुझे अलबेला खत्री जी की तुलना में देखेगा तो मैं उसे अज्ञानी लगूँगा।
एक गिलास में फ्रीजर का ठंडा पानी लीजिये, एक दूसरे गिलास में गुनगुना किया गया पानी लीजये और एक गिलास में सादा पानी लीजिये। उलटे हाथ की एक उँगली को फ्रीजर वाले पानी में डालिये और सीधे हाथ की एक उँगली को गुनगुने पानी में। दस सेकंड के बाद उन दोनों उँगलियों को सादे पानी में डाल दीजिये। आपके उलटे हाथ की उँगली को सादा पानी गरम लगेगा और सीधे हाथ की उँगली को वही सादा पानी ठंडा लगेगा।
पृथ्वी में रहने के कारण हम सूर्य को पृथ्वी की तुलना में देखते हैं इसीलिये हमें सूर्योदय और सूर्यास्त का आभास होता है।
जैसे कि आप ट्रेन में होते हैं और लखनऊ आने पर कहते हैं कि 'लखनऊ' आ गया .. जबकि लखनऊ तो वहीं पर होता है .. जिस तरह ट्रेन की गति के साथ उसे स्थिर मानते हुए हम पूरे वातावरण को देखते हैं .. उसी तरह पृथ्वी पर स्थिर हम पृथ्वी के सापेक्ष ही पूरे ब्रह्मांड को देखते हैं .. इसलिए सूर्य को स्थिर होते हुए भी उदय और अस्त कहते हैं !!
आपका कथन बहुत सुन्दर, सटीक और यथार्थपरक है अवधियाजी !
आपको बहुत बहुत धन्यवाद..........
लेकिन हमें अगर ऐसा आभास होता है
तो उसका ठीकरा हम सूरज पर क्यों फोड़ते हैं ?
सूरज की क्या गलती है भाई साहेब !
जो उसे रोज़ उगने और छिपने वाला मान लेते हैं ..
जबकि सच तो यही है कि
न वो उगता है, न वो छिपता है
वो तो स्थिर है.........
अलबेला जी संगीता जी की बात से सहमत है
स्वाइन-फ्लू के साथ बाघ (शेर) भी आ गया!
बात तो आपकी सही जान पड़ती है लेकिन जैसे पानी में रह कर मगर से वैर नहीं लिया जाता वैसे ही हम धरती पे रह के धरती से वैर कैसे मोल लें?...इसलिए अपनी साहूलियत के चलते कभी सूर्य देवता को ही डुबो देते हैँ तो कभी उन्हें उगा देते हैँ
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