एक-एक चेहरा
मायूस सा हताश सा है
एक-एक चेहरा उदास मेरे देश में
बहू को जला रही है सास मेरे देश में
तोड़ो नहीं बन्धु यह आस मेरे देश में
-अलबेला खत्री
एक-एक चेहरा
मायूस सा हताश सा है
एक-एक चेहरा उदास मेरे देश में
बहू को जला रही है सास मेरे देश में
तोड़ो नहीं बन्धु यह आस मेरे देश में
-अलबेला खत्री
Labels: छन्द घनाक्षरी कवित्त
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5 comments:
सामाजिक संदर्भ से जोड़ दिया कुछ खास।
आये नए सुभाष फिर खूब जगा दी आस।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
अब आये ना सही राह पे।बस यही आस तो अलख जगाये हुये है।
आमीन !!
आमीन !!
tathastu!!!
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