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Albela Khatri

बलात्कार को पाशविक मत कहो प्लीज़..............

घृणित कहो


बर्बर कहो


जघन्य कहो


शर्मनाक कहो


अमानुषी कहो


घिनौना कहो



बहुत से शब्द हैं, कुछ भी कहो


लेकिन बलात्कार को पाशविक मत कहो


मुझे दु: होता है


बड़ा दु: होता है


मैं पशु नहीं


लेकिन पशुओं को जानता हूँ


वे ऐसा नहीं करते


कभी नहीं करते ........................



उन्होंने सीखा ही नहीं ऐसा करना


ये महारत तो केवल मानव ही करता है


और कर सकता है


क्योंकि


अभी केवल मानव ही इतना सभ्य


और
विकसित हुआ है


इसलिए


देखो दीवानों तुम ये काम करो


पशुओं का नाम बदनाम करो



13 comments:

Unknown November 4, 2009 at 11:31 AM  

अति उत्तम!

राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जी की ये पंक्तियाँ याद आ गईं:

"मैं मनुष्यता को सुरत्व की जननी भी कह सकता हूँ
किन्तु मनुष्य को पशु कहना भी कभी नहीं सह सकता हूँ"

SHIVLOK November 4, 2009 at 12:42 PM  

VAH ALBELA JI ,
Is Mamle men to sabhii pashuon ko mera SADAR NAMAN gyapit kar dijiyega. Sab kuch sabii kaha apne.

शरद कोकास November 4, 2009 at 12:55 PM  

बचपन से यही पढाया जाता है man is a social animal ये एनिमल याने पशु ही होता है ना अलबेला भाई ?

निर्मला कपिला November 4, 2009 at 1:14 PM  

शरद जी सही कह रहे हैं क्या गीत बनाया है वाह शुभकामनायें

Unknown November 4, 2009 at 1:33 PM  

यही तो रोना है शरद जी !

हमें पढाया ही ग़लत गया है । या हमने पढा ग़लत है ।

मैं तो खैर कुछ पढा ही नहीं, कभी स्कूल के पीछे से भी नहीं निकला, लेकिन जिन्होंने पढ़ा उनकी बात कर रहा हूँ ।

सोशल एनीमल कह कर मनुष्य को सामाजिक पशु बता दिया गया जबकि सामाजिक प्राणी कहना चाहिए था । कारण कि प्राणी और जानवर समानार्थी हैं । जान है इसलिए जानवर और प्राण हैं इसलिए प्राणी ! यानी मनुष्य सामाजिक प्राणी तो है लेकिन पशु नहीं है क्योंकि पशु का अर्थ प्राणी नहीं होता ..पशु , पक्षी, पेड़ पौधे व मनुष्य तो प्राणियों की विभिन्न प्रजातियाँ हैं

शिवम् मिश्रा November 4, 2009 at 1:48 PM  

बहुत बढ़िया !! पर अगर मैं गलत नहीं तो शायद यह पोस्ट आप पहले भी लगा चुके हो !

Rajesh Sharma November 4, 2009 at 2:18 PM  

Bahut hi sahi likha hain aapne.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' November 4, 2009 at 2:31 PM  

बहुत अकाट्य तर्क दिये है।
सुन्दर अभिव्यक्ति!

kishore ghildiyal November 4, 2009 at 6:58 PM  

waah sachmuch ekdum sahi tark diye hain aapne
jyotishkishore.blogspot.com

बवाल November 4, 2009 at 9:22 PM  

कितनी बड़ी बड़ी बड़ी और अच्छी अच्छी बातें लगातार करते चले जा रहे हैं अलबेला भाई। क्या बात है? या तो कहीं से बड़ा दर्द पाए हुए हैं या फिर कोई बड़ी ख़ुशी ? ख़ैर जो भी हो फ़ायदा तो पढ़ने वालों को ही हो रहा है। आपका बहुत बहुत आभार, अलबेला जी। यूँ ही हँसते और हँसाते रहिए। आपके मुरीद।

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर November 4, 2009 at 10:20 PM  

आदमी को आदमी की औकात दिखाती रचना है ये....

Anil Pusadkar November 5, 2009 at 10:19 AM  

सटीक।

राजीव तनेजा November 6, 2009 at 2:46 AM  

सार्थक रचना

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