जाने कब कोई आ के
चूर-चूर कर डाले,
ज़िन्दगी है स्वप्न समान मेरे देश में
देख लो विडम्बना कि
राशन हो न हो किन्तु
हाज़िर है मौत का सामान मेरे देश में
उजड़े सुहाग लाखों,
लाखों ही यतीम हुए,
शहर ही बने शमशान मेरे देश में
कैसे कहूं बन्धु ये
ज़ुबान जली जाती है कि
इन्सां आज हो रहे हैवान मेरे देश में
hindi hasyakavi sammelan in mangalore by MRPL
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शानदार, शानदार, शानदार …………………
शानदार और जानदार रहा मंगलूर रिफ़ाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड द्वारा
राजभाषा विभाग के तत्वाधान में डॉ बी आर पाल द्वारा आ...
10 years ago
10 comments:
कैसे कहूं बन्धु ये
ज़ुबान जली जाती है कि
इन्सां आज हो रहे हैवान मेरे देश में
आप की पुरी कविता ही आज का एक कडबा सच है, लोग पेसे के पीछे लगे है, देश,मान सम्मान कुछ नही.
धन्यवाद
दोस्त हों ना हों...
हर तरफ आस्तीन में साँप छिपे बैठे हैँ मेरे देश में
"जाने कब कोई आ के
चूर-चूर कर डाले,
ज़िन्दगी है स्वप्न समान मेरे देश में"
सुंदर रचना|
अच्छी और सच्ची रचना।
जाने कब कोई आ के
चूर-चूर कर डाले,
ज़िन्दगी है स्वप्न समान मेरे देश में
शब्दों को मोतिओं की तरह पिरो दिया है आपने.. गजब कर दिया है... वैसे आपको गुड कहना मतलब सूरज को दिया दिखने के बराबर है
कैसे कहूं बन्धु ये
ज़ुबान जली जाती है कि
इन्सां आज हो रहे हैवान मेरे देश में
सत्य से कबतक इंकार किया जा सकता है ?
बहुत बढ़िया.
वाह! वाह!! आज के सच को उजागर करती हुई रचना
बहोत बढिया। सोचने पर मज़बूर कर देनेवाली रचना।
कैसे कहूं बन्धु ये
ज़ुबान जली जाती है कि
इन्सां आज हो रहे हैवान मेरे देश में।।
बिल्कुल सत्य कहा बन्धु!!!!!!
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