गंगा जैसी पावन है
आत्मा तो सूरज सा
रौशन हर एक का शरीर मेरे देश में
माटी भी है चन्दन-अबीर मेरे देश में
किन्तु अनमोल है ज़मीर मेरे देश में
एक-एक कवि है कबीर मेरे देश में
गंगा जैसी पावन है
आत्मा तो सूरज सा
रौशन हर एक का शरीर मेरे देश में
माटी भी है चन्दन-अबीर मेरे देश में
किन्तु अनमोल है ज़मीर मेरे देश में
एक-एक कवि है कबीर मेरे देश में
Labels: छन्द घनाक्षरी कवित्त
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6 comments:
एकदम सही कहा सर, कवी और कवियत्री तो बहत है मगर श्रोता किराए पर लाने पड़ते है !
छा गए गुरु .... बहुत बढ़िया !
बहुत सुन्दर रचना...वाह
नीरज
har rang me aap ghazab dhaate ho !!
उत्तम अभिव्यक्ति...देश गान का एक और काव्य...साधू!!
ekdum sahi baat kahi apne
apka blog bhi bahut sundar hai
badhai
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