चलो माना
काल तो काल है
सचमुच काल है
उसके नाख़ून भयनाक हैं विकराल हैं
दान्त पैने और जबड़े विशाल हैं
इक बार जो जीव काल के गाल में चला जाता है
यह प्राणाहारी उसे नख से शिख तक खा जाता है
परन्तु किसको?
इस प्रश्न पर
काल बड़ा बौना नज़र आता है
आदमी के समक्ष
इससे भी पौना नज़र आता है
क्योंकि काल के दान्त का ज़ोर
सिर्फ़ व्यक्ति पर चलता है,
व्यक्तित्व पर नहीं
व्यक्ति के कृतित्व पर नहीं
रचनात्मक अस्तित्व पर नहीं
सो
कवि पर भी इसका ज़ोर नहीं चल पाएगा
यह अन्धेरा, उजाले को नहीं छल पाएगा
सूरज, भला किस आँच में जल पाएगा
हमें विश्वास है
कवि के कृतित्व का दुर्ग
कभी ध्वस्त नहीं होगा
सृजन का आदित्य अमर है,
कभी अस्त नहीं होगा
hindi hasyakavi sammelan in mangalore by MRPL
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शानदार, शानदार, शानदार …………………
शानदार और जानदार रहा मंगलूर रिफ़ाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड द्वारा
राजभाषा विभाग के तत्वाधान में डॉ बी आर पाल द्वारा आ...
10 years ago
7 comments:
अलबेला जी आपने बेहतरीन रचा है | ग़ज़ब की ऊर्जा बिखेरती है आपकी ये रचना |
waah wah !
vajpayee ji ki yad dila di apne
kaal ke gaal par likhta aur mitata hoon
geet nya koi gata hoon
bahut khoob !!
जिस्म ही जला पाती हैं, वक्त की तीलियाँ
हवा में रहेंगी तेरे ख्यालों की बिजलियाँ
हम ना रहेंगे..तुम ना रहोगे...
हमारा लिखा हमेशा रहेगा
बहुत ही उर्जापूर्ण रचना. आभार
सृजन का आदित्य अमर है,
कभी अस्त नहीं होगा
--बिल्कुल...जिंदाबाद!!
बंधू, कमाल कर दिया. नई ऊर्जा भरती बढ़िया रचना.
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