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Albela Khatri

आदमी को यहां खा रहा आदमी

हम भी हैं आदमी, तुम भी हो आदमी

सोचता हूं मगर... है चीज़ क्या आदमी

बन में हैवां जो हैवां को खाए तो क्या

आदमी को यहां खा रहा आदमी

12 comments:

Fauziya Reyaz September 7, 2009 at 8:55 AM  

waah...bahut khoob

Unknown September 7, 2009 at 9:17 AM  

वाह खत्री जी! सही है सिर्फ आदमी ही आदमी को खा रहा है।

उठ जाए तो देव से भी ऊँचा
गिर जाए तो पशु से भी बदतर
तो उठना छोड़ कर निरंतर
क्यों गिरा जा रहा है आदमी?

निर्मला कपिला September 7, 2009 at 9:27 AM  

बिलकुल सही कहा है शुभकामनायें

संगीता पुरी September 7, 2009 at 9:45 AM  

बहुत सही !!

Single Word Expression September 7, 2009 at 10:06 AM  

मानव और मानवता के बारे में जो आपने सही परिभाषा दी है, कबीले तारीफ है।

शिवम् मिश्रा September 7, 2009 at 10:54 AM  

बहुत बढ़िया |

शिवम् मिश्रा September 7, 2009 at 11:16 AM  

बहुत बढ़िया |

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून September 7, 2009 at 1:26 PM  

यही है आदमी

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" September 7, 2009 at 6:14 PM  

"सोचता हूं मगर... है चीज़ क्या आदमी"

खोज जारी है!!!किन्तु इस रहस्य का उद्घाटित हो पाना शायद संभव नहीं जान पडता...

Chandan Kumar Jha September 7, 2009 at 10:49 PM  

बहुत खूब ……आदमी हीं तो आदमी का सबसे बड़ा दुश्मन है ।

अजय कुमार झा September 7, 2009 at 11:22 PM  

सह कह रहे हैं अलबेला भाई...सुना है सलाद के साथ खा रहा है...टेस्ट बढाने के लिये...

Sudhir (सुधीर) September 12, 2009 at 8:05 AM  

satya vachan albela jee

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