सूरज की किरणें
सियाह होती दीखती हैं,
चाँद हुआ जा रहा है स्वाह मेरे देश में
विपदा की खाइयां अथाह मेरे देश में
हरिणों की ज़िन्दगी तबाह मेरे देश में
सूरज की किरणें
सियाह होती दीखती हैं,
चाँद हुआ जा रहा है स्वाह मेरे देश में
विपदा की खाइयां अथाह मेरे देश में
हरिणों की ज़िन्दगी तबाह मेरे देश में
Labels: छन्द घनाक्षरी कवित्त
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5 comments:
चन्द भेडियो ने --
जी हाँ ! चन्द भेडियो ने ही तो तबाह कर रखा है
बहुत सुन्दर
bahut hi achha likha hai sir aapne... hamare desh me... aur bhi bahut kuchh ho raha hai...
वाह सुंदर. भाई.
हिरणों को एकजुट होना चाहिए !!
वाह वर्तमान के बोध के साथ लिखी कविता साधू
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