मधुर-मधुर, मीठा-मीठा और मन्द-मन्द मुस्काते हैं
सुन्दर-सुन्दर स्वप्न सलोने हमें रात भर आते हैं
बस्ती-बस्ती बगिया-बगिया,परबत-परबत झूमे है
मस्त पवन के निर्मल झोंके प्रीत के गीत सुनाते हैं
उभरा है तन पे यौवन ज्यों चमके बिजली बादल में
शीतल शबनम के क़तरे तन-मन में आग लगाते हैं
रात चाँदनी में नदिया की सैर कराता जब मांझी
कई तलातुम तुझ जैसे साहिल की याद दिलाते हैं
कुछ और नहीं हैं 'अलबेला' ये तो यादों के पैक़र हैं
जो विरह वेदना के ज़ख्मों को जब देखो सहलाते हैं
hindi hasyakavi sammelan in mangalore by MRPL
-
शानदार, शानदार, शानदार …………………
शानदार और जानदार रहा मंगलूर रिफ़ाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड द्वारा
राजभाषा विभाग के तत्वाधान में डॉ बी आर पाल द्वारा आ...
10 years ago
9 comments:
बेह्तरीन और सटीक रचना!
'अलबेला' जी जन साधारण में हास्य-कवि कहलाते हैं
लिखते लिखते हास्य कविताएँ, श्रृंगार गान भी गाते हैं।
bahut hee satik aur lajvab
अल्बेलाजी की हर रचना कुछ कहती रहती है। गुनगुनानेको दिल करता है।
सुंदर रचना |
उफ!...कहीं आपको प्यार तो नहीं हो गया है?...
सुन्दर रचना
राशन हो न हो किन्तु
हाज़िर है मौत का सामान मेरे देश में
यह पंक्तियाँ बहुत अच्छी हैं अलबेला भाई -शरद कोकास
हर बार की तरह सुन्दर्।तारीफ़ तो करना ही पडेगा।
प्यारी अभिव्यक्ति....विशेष रूप से अन्तिम शेर बहुत अच्छा लगा
Post a Comment