बीते हुए दौर की
कहानी जैसे लगते हैं
प्रेम-प्रीत-प्यार-अनुराग मेरे देश में
बेटा-बाप-भाई व सुहाग मेरे देश में
अपने ही आंगन को आग मेरे देश में
आदमी की सूरत के नाग मेरे देश में
बीते हुए दौर की
कहानी जैसे लगते हैं
प्रेम-प्रीत-प्यार-अनुराग मेरे देश में
बेटा-बाप-भाई व सुहाग मेरे देश में
अपने ही आंगन को आग मेरे देश में
आदमी की सूरत के नाग मेरे देश में
Labels: छन्द घनाक्षरी कवित्त
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10 comments:
मै तो रोज देखता हूँ
आदमी की सूरत के
नाग मेरे देश में
बहुत सुन्दर खत्री साहब !
BTW: मैं कैसा दीखता हूँ आपको :-)
आदमी की सूरत के नाग मेरे देश में... अलबेला जी आप की कविता से सहमत है जी
भाई जी ,
आज सच में बहुत कमाल किये हो !! आनंद आ गया |
आदमी की सूरत के नाग मेरे देश में
बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति दी है आपने
बेहतरीन
आदमी की सूरत में तो यहाँ बडे बडे अजगर,डायनासोर भी मिल जाएंगे
आदमी की सूरत के नाग मेरे देश में,
लोग लुटते होती बरबाद रोज बस्तियां,
फैलती जाए जो दंगो की आग मेरे देश में.
नेता फन खोलते बोलते तोलते माल मेरे देश का
कूटने फूटने लूटने पर मची भागमभाग मेरे देश में.
कुछ ऐसी ही पंक्तिया आपसे प्रभावित हो कर मन में आ रही है.
अपने राष्ट्र का दुर्भाग्य है कि हर गली नुक्कड पर मिलते है ऐसे नाग मेरे देश मे...
पर इस कविता को पढ़ कर
सुधार लेंगे स्वयं को और
लोग जायेंगे जाग मेरे देश में!
सत्य वचन
बहुत सुन्दर ।
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