न मुन्सिफ़ से ही निकलेगा,
न ये क़ातिल से निकलेगा
न बनवारी से निकलेगा,
न ये बिस्मिल से निकलेगा
तुम्हारी चाह का चाकू .......
बड़ी मुश्क़िल से निकलेगा
कि दिल भी साथ निकलेगा
अगर ये दिल से निकलेगा
hindi hasyakavi sammelan in mangalore by MRPL
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शानदार, शानदार, शानदार …………………
शानदार और जानदार रहा मंगलूर रिफ़ाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड द्वारा
राजभाषा विभाग के तत्वाधान में डॉ बी आर पाल द्वारा आ...
10 years ago
13 comments:
वो नौबत ही क्यों आये कि यह चाकू दिल तक जाये ??
बड़ा फ़ालतू टाइप का चाकू है.
वाह वाह अब चाकू चलने तक नौबत आ गयी?
क्या बात है लगन भर लगने की देर है ......अतिसुन्दर
हाँ शिवम की बात भी सही लगती है। वो नौबत ही क्यों आये?
निकालते क्यों हो खत्री साहब, घुसा रहने दो !
दिल मे गर चाहत का चाकू है तो फिर क्या कहने --
और पैबस्त कर दो इस चाकू को
बहुत खूब लिखा है आपने -- बहुत खूब
अरे क्यो इन चाकू वाजो से दोस्ती करते है....वेसे अब तक तो निकल गया होगा ? वेसे मुझे लगता है यह चाकू २०,२२ साल पुराना ही घुसा है... लेकिन अगले हसीन चाकू वाज से अब पंगा ना लेना, पुराने वाले को घुसा रहने दो
अद्भुत...*****
बेज़ोड रचना………
वाह क्या चाकू है....मानना पड़ेगा..थोड़ा अजीब है न...
bahut khoob .........
beyond comparision. albela jii aisi hi kuch or rachnaye post karen. hame intezar hai.
क्या बात है अलबेला जी....सुन्दर
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