सृष्टा ने, सृष्टि रचयिता ने अर्थात परमपिता परमात्मा ने यों तो पूरी रचना
ही पाँच तत्त्वों से बनाई है लेकिन मानव एक मात्र ऐसा प्राणी है जिस में
पाँचों तत्त्व काम में लिए .........बाकी प्राणियों को तो किसी को एक में, किसी
को दो में, किसी को तीन में और किसी को चार तत्त्वों में निपटा दिया ..क्योंकि
उन सब से साधन का काम लेना था ..सृजन का नहीं । सिर्फ़ और सिर्फ़ मानव
को उसने अपने जैसा यानी सृजनकर्ता बनाया ताकि ये कायनात चलाने में
मानव उसे सहयोग कर सके.........
जैसे कोई पिता अपनी सन्तान को पढा लिखा कर, सब कुछ सिखा कर, तैयार
करता है ताकि वह घर -व्यवहार और कारोबार चलाने में उसकी मदद कर
सके । लेकिन अफ़सोस ! बहुत ही अफ़सोस ! हमने अपने पिता की आशाओं
पर पानी फेर दिया...........हम अपने आप को इतना हुशियार समझते हैं कि
ख़ुद को अपने बाप का भी बाप समझते हैं । उसने हमें निर्माण के लिए और
निर्मित वस्तुओं के संरक्षण के लिए बनाया लेकिन हमने विनाश का ही
काम किया । उसकी बनाई नदियों को प्रदूषित कर दिया , उसके बनाए
जंगलों को काट काट कर ख़त्म कर दिया, पर्यावरण की वाट लगादी और
वन्य जीवों को मार मार कर कुदरत का पूरा संतुलन ही बिगाड़ दिया ।
विध्वंस में हम इतने निपुण हो गए कि ऐसी ऐसी बीमारियाँ फैलादी
जिससे पूरी कायनात एकसाथ काँपने लगे.........खैर ये तो मामला
दूसरी तरफ़ जाने लगा है .........मैं मुख्य मुद्दे पर आता हूँ ...........और वो
मुख्य मुद्दा है गणेश जी कि प्रतिमाओं की दुर्गति का जिसे देख कर मेरा
मन आहत हुआ था...............
परमात्मा ने हमें मिटटी का बनाया........क्योंकि वो जानता था कि ये पट्ठा
जो पैदा हुआ है वह एक न एक दिन मरेगा भी..........तो मरने के बाद इस
गरीब की दुर्गति न हो........ इसलिए उसने हमें ऐसी सामग्री से बनाया कि
प्राण निकलते ही हवा हवा में विलीन हो जाती है, अग्नि अग्नि में मिल
जाती है, पानी भाप बन कर अपने मूल स्रोत में जमा होजाता है, आकाश
आकाश में समा जाता है और अंततः मिटटी मिटटी में मिल कर कचरा
साफ़ कर देती है । ज़रा सोचिये, ईश्वर ने हमें मिट्टी के बजाय प्लास्टिक्स
से या प्लास्टर ऑफ़ पैरिस से बनाया होता तो कितनी दुर्गति होती
हमारी ? हमारा अन्तिम संस्कार करना ही भारी हो जाता .......हाथ कहीं,
पड़ा होता, लात कहीं पड़ी होती और दांत कहीं पड़े मिलते..........ठीक वैसे
ही जैसे अभी गणपति के दिख रहे हैं .........
जब मालिक ने हमें दुर्गति को प्राप्त नहीं होने दिया तो हम मालिक के
स्वरुप की दुर्गति क्यों करते हैं यार !
क्यों नहीं बनाते अपने देवी देवताओं की प्रतिमाएँ मिटटी से, ताकि उनके
विसर्जन की प्रक्रिया सम्मानजनक हो और किसी श्रद्धालु को ठेस भी न
पहुंचे । और छोटी क्यों नहीं बनाते ? रावण के पुतले की भान्ति भीमकाय
प्रतिमा क्यों बनाते हैं ? सिर्फ़ इसलिए कि दूसरे गणपति के सामने हमारा
गणपति छोटा न दिखे ? हम उत्सव कर रहे हैं कि ईर्ष्या ? हमारा ध्यान
कहाँ है ? क्या हम को नहीं मालूम कि देवताओं का अपमान कभी कभी
कहर भी ढा देता है............
अरे छोटा सा गजानन बनाओ, बढ़िया थाली में सजाके सर पे उठाओ, भावपूर्ण
ह्रदय से विसर्जन यात्रा निकालो और जल में प्रवाहित करदो......न गणपति
को कोई शिकायत और न ही नदियों व तालाबों को कोई नुक्सान !
लेकिन हम ऐसा करेंगे नहीं.........हम वो हैं जो कभी सुधरेंगे नहीं ...इसलिए
हे विघ्नेश्वर ! आपको हमारी हाथ जोड़ कर, कान पकड़ कर, नाक रगड़ कर
विनती है कि अगले बरस मत आना............मत आना ...मत आना ।
वरना फ़िर यही दुर्गति होगी और मुझे दुःख होगा ।
# इसी के साथ " हे गणपति बाप्पा ! ज़रा भी शर्म.............अगले बरस नहीं आना "
वाला आलेख इति को प्राप्त हुआ ।
पाठकों को धन्यवाद...........टिप्पणियों का विशेष धन्यवाद !
hindi hasyakavi sammelan in mangalore by MRPL
-
शानदार, शानदार, शानदार …………………
शानदार और जानदार रहा मंगलूर रिफ़ाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड द्वारा
राजभाषा विभाग के तत्वाधान में डॉ बी आर पाल द्वारा आ...
10 years ago
11 comments:
भई इस पीओपी गणेश से तो हमारे गोबर गणेश भले , मिट्टी मे मिलकर उसे उपजाउ तो बनाते हैं ऊपर वाले ने हमे भी गोबर से बनाया होगा कांलांतर मे हम हाड़-माँस के बन गय .इसका प्रमाण यह है कि अभी भी कुछ लोगोके दिमाग से यह निकला नही है जी हाँ गोबर
बहुत सटीक लिखा है भाई जी, एकदम बिंदास कोई लाग-लपेट नहीं |
बधाई |
हम नहीं सुधरेंगे........
पक्का मत आना!!
बहुत सही बात लिखी है आपने यदि ये मूर्तियाँ मिटटी की बनाई जाय तो न तो इन मूर्तियों की दुर्गति होगी और न ही पर्यावरण को कोई नुकशान पहुंचेगा |
सुझाव तो आपने बहुत ही बढिया दिया है लेकिन कोई माने ..तभी इसका फायदा दिखाई देगा
काश आपकी बात गणपति बप्पा की समझ में आ जाये |
बहुत सटीक रचना है !!
अब आगे भगवान की मर्ज़ी
बी एस पाबला
सच कहा है आपने आपके ही सूरत में भगवान गणेशजी की ये दुर्दशा देखकर बडा अफ़्सोस होता है। आपकी पोस्ट विचारने लायक़ है।
लेकिन हम ऐसा करेंगे नहीं.........हम वो हैं जो कभी सुधरेंगे नहीं ... ---अलबेला जी आपने तो सब कुछ कह ही दिया, वो भी सुन्दर शब्दों मैं |
पता नहीं हमारी सरकार क्या कर रही है ? अपनी सरकार क्यों नहीं प्लास्टर ऑफ़ पेरिस से बनी प्रतिमा पर रोक लगाती है ? ...
Post a Comment