कवि हूँ मैं
कोई कथा वाचक नहीं हूँ
नेह करता हूँ तुम्हें
पर देह का याचक नहीं हूँ
मैं तुम्हारी धमनियों में प्रीत भरना चाहता हूँ
छन्द भरना चाहता हूँ ..गीत भरना चाहता हूँ
चाहता हूँ
मैं तुम्हारी राह के कंटक उठालूं
हर ख़ुशी दे दूँ तुम्हें
और ख़ुद पे सब संकट उठालूं
प्यार से
मनुहार से
शृंगार से
संसार भर दूँ
गीत की
नवगीत की
संगीत की
रसधार भर दूँ
यों तो अपना मिलना जुलना
दुनिया भर को
चुभ रहा है
पर हमारे वास्ते तो
सुखद है और
शुभ रहा है
आओ हम वादा करें
यह दीप जलता ही रहेगा
हो कोई मौसम मगर
यह फूल खिलता ही रहेगा ..................
कोई कथा वाचक नहीं हूँ
नेह करता हूँ तुम्हें
पर देह का याचक नहीं हूँ
मैं तुम्हारी धमनियों में प्रीत भरना चाहता हूँ
छन्द भरना चाहता हूँ ..गीत भरना चाहता हूँ
चाहता हूँ
मैं तुम्हारी राह के कंटक उठालूं
हर ख़ुशी दे दूँ तुम्हें
और ख़ुद पे सब संकट उठालूं
प्यार से
मनुहार से
शृंगार से
संसार भर दूँ
गीत की
नवगीत की
संगीत की
रसधार भर दूँ
यों तो अपना मिलना जुलना
दुनिया भर को
चुभ रहा है
पर हमारे वास्ते तो
सुखद है और
शुभ रहा है
आओ हम वादा करें
यह दीप जलता ही रहेगा
हो कोई मौसम मगर
यह फूल खिलता ही रहेगा ..................
13 comments:
नवगीत के शिल्प मे यह प्रेम कविता उदात प्रेम की सम्पूर्ण सम्भावनाओं से भरी है । इस युग के त्वरित प्रेम पर यह एक दिशासूचक काव्यात्मक सन्देश भी है ।
अहा!! क्या खूब गीत रचा है अलबेला जी!! छा गये आप तो.
वाह बहुत सुंदर लिखा है आपने ! रचना की हर एक पंक्ति दिल को छू गई ! बढ़िया लगा ! नवरात्री की हार्दिक शुभकामनायें!
बहुत बढ़िया लिखा है आपने!
लेखनी को नमस्कार।
बधाई
यह् फूल खिलता ही रहेगा -
बेहतरीन कहा है
बहुत ही सुन्दर व लाजवाब रचना। बहुत-बहुत बधाई
अतिसुन्दर प्रस्तुति!
"चाहता हूँ
मैं तुम्हारी राह के कंटक उठालूं
हर ख़ुशी दे दूँ तुम्हें
और ख़ुद पे सब संकट उठालूं"
बहुत बढ़िया कविता..बधाई!
"चाहता हूँ
मैं तुम्हारी राह के कंटक उठालूं
हर ख़ुशी दे दूँ तुम्हें
और ख़ुद पे सब संकट उठालूं"
बहुत ही सुन्दर व लाजवाब रचना। बहुत-बहुत बधाई |
शानदार अभिव्यक्ति के लिए शुभकामनायें !!
love is great and it is in giving
बड़ी प्यारी रचना ! रसिक प्रेम की सात्विक अभिव्यक्ति...
कवि हूँ मैं कोई कथा वाचक नहीं हूँ
नेह करता हूँ तुम्हें पर देह का याचक नहीं हूँ
मैं तुम्हारी धमनियों में प्रीत भरना चाहता हूँ
कवि हूँ मैं कोई कथा वाचक नहीं हूँ
नेह करता हूँ तुम्हें पर देह का याचक नहीं हूँ
मैं तुम्हारी धमनियों में प्रीत भरना चाहता हूँ
सच हैं कवि हूँ याचक नहीं ....... आभार
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