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Albela Khatri

तब जा के इस कलम ने इक कलाम लिखा है.........

छुप छुप के नहीं मैंने सरे-आम लिखा है

कालेज की दीवारों पे तेरा नाम लिखा है



मेरी ये ज़िन्दगी है एक वीणा की तरह

जिसके सभी तारों पे तेरा नाम लिखा है



ख़त भी लिखा तो ऐसा कि कुछ भी नहीं लिखा

सलाम ही सलाम ही सलाम लिखा है



जाने कितनी रातों का लोहू भरा गया

तब जा के इस कलम ने इक कलाम लिखा है



पत्थर की बात छोड़िये कलयुग में 'अलबेला'

नेता भी तर गया है जिस पे राम लिखा है

11 comments:

ओम आर्य September 9, 2009 at 11:03 AM  

वाह आपका भी जवाब नही ......अतिसुन्दर
बहुत ही खुब
बेहतरीन

शिवम् मिश्रा September 9, 2009 at 11:22 AM  

"पत्थर की बात छोड़िये कलयुग में 'अलबेला'

नेता भी तर गया है जिस पे राम लिखा है"


बहुत खुब एक और लाजवाब प्रस्तुती। बहुत-बहुत बधाई|

Anil Pusadkar September 9, 2009 at 11:42 AM  

मै भी सोच रहा हूं नाम के आगे राम लगा लूं,अनिल राम कैसा रहेगा अलबेला जी,तर जाऊंगा या नही?बहुत बढिया लिखा आपने।

Urmi September 9, 2009 at 12:41 PM  

वाह वाह क्या बात है! लाजवाब रचना! इस बेहतरीन रचना के लिए बधाई!

Murari Ki Kocktail September 9, 2009 at 1:11 PM  

zabardast lekhan |

संगीता पुरी September 9, 2009 at 2:07 PM  

अच्‍छी रचना !!

रज़िया "राज़" September 9, 2009 at 3:40 PM  

पत्थर की बात छोड़िये कलयुग में 'अलबेला'

नेता भी तर गया है जिस पे राम लिखा है|

वाह भई वाह!!


वाह! अल्बेला तुमने तो ये कविता लिख्कर।

हादसा/ वाक़ेआ/पूरा और तमाम लिखा है।

डॉ टी एस दराल September 9, 2009 at 8:35 PM  

वाह, अलबेला जी, वाह क्या खूब लिखा है.

अमिताभ मीत September 9, 2009 at 9:32 PM  

मस्त है भाई.

राज भाटिय़ा September 9, 2009 at 10:38 PM  

"पत्थर की बात छोड़िये कलयुग में 'अलबेला'

नेता भी तर गया है जिस पे राम लिखा है"
बहुत सुंदर अलबेला जी जबाब नही,

राजीव तनेजा September 9, 2009 at 11:05 PM  

प्रेम गीत ने अंत में व्यंग्य का रूप ले लिया ...बहुत बढिया

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