इसे कहते हैं चार आने का चना और चौदह रूपये का मसाला.. मसाला भी
साला ऐसा कि दोनों टाइम हाहाकार मचा दे..इनपुट में भी और आउटपुट
में भी। ये ज्ञान वाली बात मैंने मुफ़्त में इसलिए कही, क्योंकि लम्बे
अध्ययन और गहन चिन्तन के उपरान्त ये दो कौड़ी का निष्कर्ष मेरी
समझदानी में फिट हुआ है कि संसद में बैठने वाले हमारे नेता
तथा सड़क पर तमाशा दिखाने वाले मदारी, दोनों एक ही मिट्टी के
बने हैं। इसलिए दोनों में गहरी समानता देखने को मिलती है।
साला ऐसा कि दोनों टाइम हाहाकार मचा दे..इनपुट में भी और आउटपुट
में भी। ये ज्ञान वाली बात मैंने मुफ़्त में इसलिए कही, क्योंकि लम्बे
अध्ययन और गहन चिन्तन के उपरान्त ये दो कौड़ी का निष्कर्ष मेरी
समझदानी में फिट हुआ है कि संसद में बैठने वाले हमारे नेता
तथा सड़क पर तमाशा दिखाने वाले मदारी, दोनों एक ही मिट्टी के
बने हैं। इसलिए दोनों में गहरी समानता देखने को मिलती है।
सड़क का मदारी डमरू बजा-बजा कर लोगों को आकर्षित करता
है, अजगर, नेवला, सांप और खोपिड़यां..पता नहीं क्या-क्या दिखाकर भीड़
जमा करता है लेकिन जैसे ही भीड़ सांप-नेवले की लड़ाई देखने को
उत्सुक होती है, वह मदारी दन्तमन्जन या ताबीज़ निकालकर बेचना शुरू
कर देता है। लोग कहते हैं - सांप नेवले की लड़ाई कराओ तो वो कहता है
- कराऊंगा, पहले इस पापी पेट के लिए कुछ रोकड़ा तो दो... लोग बेचारे
तमाशा देखने को लालायित हो चुके होते हैं इसलिए कोई पैसा देता है,
कोई मन्जन खरीदता है, लेकिन सारा पैसा जमा होने के बाद मदारी कुछ ऐसे
मन्तर वन्तर का ढोंग करता है कि सब लोग वहां से खिसक लेते हैं और
मदारी सारा माल लेकर, बांसुरीबजाता हुआ अपने घर कू चल देता है
इसी प्रकार हमारे नेता सौ-सौ झांसे देकर हमारा वोट ले लेते हैं और बाद
है, अजगर, नेवला, सांप और खोपिड़यां..पता नहीं क्या-क्या दिखाकर भीड़
जमा करता है लेकिन जैसे ही भीड़ सांप-नेवले की लड़ाई देखने को
उत्सुक होती है, वह मदारी दन्तमन्जन या ताबीज़ निकालकर बेचना शुरू
कर देता है। लोग कहते हैं - सांप नेवले की लड़ाई कराओ तो वो कहता है
- कराऊंगा, पहले इस पापी पेट के लिए कुछ रोकड़ा तो दो... लोग बेचारे
तमाशा देखने को लालायित हो चुके होते हैं इसलिए कोई पैसा देता है,
कोई मन्जन खरीदता है, लेकिन सारा पैसा जमा होने के बाद मदारी कुछ ऐसे
मन्तर वन्तर का ढोंग करता है कि सब लोग वहां से खिसक लेते हैं और
मदारी सारा माल लेकर, बांसुरीबजाता हुआ अपने घर कू चल देता है
इसी प्रकार हमारे नेता सौ-सौ झांसे देकर हमारा वोट ले लेते हैं और बाद
में ऐसे चम्पत होते हैं कि अगले चुनाव तक पब्लिक उन तक पहुंच ही
नहीं पाती।ताज़ा उदाहरण है श्रीमान बालगोपाल राहुल गांधी का जिनके युवा
आभामण्डल को फैलाते हुए ये प्रचार किया गया कि इस बार नये और
ऊर्जावान उत्साही लोगों को ही मंत्री मण्डल में लिया जाएगा ताकि राजीव
गांधी के अधूरे सपनों को पूरा किया जा सके। जनता ने सोचा-अब मज़ा
आएगा। नये लोग आएंगे तो काम भी नया करेंगे, लेकिन नयेपन
के नमूनों के ढोल की पोल उस वक्त खुल गई जब डा. मनमोहन सिंह ने उन्हीं
खुर्रांट बुजु़र्गों को मंत्री बनाया जिनसे हम बुरी तरह ऊबे हुए हैं
नहीं पाती।ताज़ा उदाहरण है श्रीमान बालगोपाल राहुल गांधी का जिनके युवा
आभामण्डल को फैलाते हुए ये प्रचार किया गया कि इस बार नये और
ऊर्जावान उत्साही लोगों को ही मंत्री मण्डल में लिया जाएगा ताकि राजीव
गांधी के अधूरे सपनों को पूरा किया जा सके। जनता ने सोचा-अब मज़ा
आएगा। नये लोग आएंगे तो काम भी नया करेंगे, लेकिन नयेपन
के नमूनों के ढोल की पोल उस वक्त खुल गई जब डा. मनमोहन सिंह ने उन्हीं
खुर्रांट बुजु़र्गों को मंत्री बनाया जिनसे हम बुरी तरह ऊबे हुए हैं
ज़रा शक्लें तो देखो इन तथाकथित युवा मंत्रियों की...जिनमें से कोई
महापुरूष 60 से कम का नहीं है। ले दे के एक राहुल बाबा की उम्मीद
थी तो वो भी खिसक लिए पतली गली से...यानी मंत्री मण्डल में
शामिल नहीं हुए। अब कोई क्या उखाड़ लेगा इनका...वो तो बाद
में मन्त्री मण्डल के विस्तार में कुछ नए लोगों को ले लिया वरना तो.........
वही घोड़े
और वही मैदान था हर बार की तरह......
कई साल पहले मेरे एक दोस्त, अरे वही....डी.वी.पटेल (नैशविल टेनिसी वाले)
ने मुझसे पूछा था कि राजीव गांधी, वी.पी.सिंह, चंद्रशेखर और मनमोहनसिंह
में क्या फ़र्क है- मैंने कहा-राजीव गांधी का प्रधानमंत्री बनना ये दर्शाता
है कि कोई भी आदमी, हमारे देश का प्रधानमंत्री बन सकता है, वी.पी. सिंह
ने ये साबित किया कि कोई भी आदमी जब प्रधानमंत्री बन जाता है, तो देश की
हालत क्या हो जाती है, चंद्रशेखर को देखकर हमें भरोसा हो गया कि इस देश
का काम बिना प्रधानमंत्री के भी चल सकता है और डा. मनमोहन सिंह की
ऊर्जा बताती है कि कुर्सी मिल जाए तो बुढ़ापे में भी जवानी के वायरस
जेनरेट हो जाते हैं।
महापुरूष 60 से कम का नहीं है। ले दे के एक राहुल बाबा की उम्मीद
थी तो वो भी खिसक लिए पतली गली से...यानी मंत्री मण्डल में
शामिल नहीं हुए। अब कोई क्या उखाड़ लेगा इनका...वो तो बाद
में मन्त्री मण्डल के विस्तार में कुछ नए लोगों को ले लिया वरना तो.........
वही घोड़े
और वही मैदान था हर बार की तरह......
कई साल पहले मेरे एक दोस्त, अरे वही....डी.वी.पटेल (नैशविल टेनिसी वाले)
ने मुझसे पूछा था कि राजीव गांधी, वी.पी.सिंह, चंद्रशेखर और मनमोहनसिंह
में क्या फ़र्क है- मैंने कहा-राजीव गांधी का प्रधानमंत्री बनना ये दर्शाता
है कि कोई भी आदमी, हमारे देश का प्रधानमंत्री बन सकता है, वी.पी. सिंह
ने ये साबित किया कि कोई भी आदमी जब प्रधानमंत्री बन जाता है, तो देश की
हालत क्या हो जाती है, चंद्रशेखर को देखकर हमें भरोसा हो गया कि इस देश
का काम बिना प्रधानमंत्री के भी चल सकता है और डा. मनमोहन सिंह की
ऊर्जा बताती है कि कुर्सी मिल जाए तो बुढ़ापे में भी जवानी के वायरस
जेनरेट हो जाते हैं।
हालांकि बूढ़ा होना कोई अपराध नहीं है, लेकिन बूढ़े लोगों द्वारा सत्ता पर
कब्ज़ा किए रहना ज़रूर अपराध है। ठीक उसी प्रकार जैसे ब्रह्मचारी होना
कोई पाप नहीं है, लेकिन ब्रह्मचारी के पुत्र होना तो हन्ड्रेड परसेन्ट पाप है,
आज के ज़माने में राम जैसी मर्यादित सन्तान की इच्छा करना कोई
अपराध नहीं है, लेकिन इस चक्कर में दशरथ की तरह तीन-तीन लुगाइयां
लाना अवश्य अपराध है। ये बात मैंने इसलिए की क्योंकि हमारे यहां
पुरातन परम्परा रही है, राजा-महाराजाओं की ये रीत रही है कि जैसे ही
सन्तान युवा हो जाए, शासन का दायित्व उसे सौम्प कर, स्वयं वाया
वानप्रस्थ होते हुए सन्यास आश्रम की ओर निकल लो, ताकि प्रजा को सतत
ऊर्जावान राजा की छत्रछाया उपलब्ध रहे और समय के साथ-साथ सत्ता का
तेवर भी बदले। लेकिन अपने यहां शास्त्रों को पूजा तो जाता है, पढ़ा भी जाता है
और उनके कारण दंगा-फ़साद भी हो जाता है, लेकिन शास्त्रों की बात
मानता कोई नहीं।
कब्ज़ा किए रहना ज़रूर अपराध है। ठीक उसी प्रकार जैसे ब्रह्मचारी होना
कोई पाप नहीं है, लेकिन ब्रह्मचारी के पुत्र होना तो हन्ड्रेड परसेन्ट पाप है,
आज के ज़माने में राम जैसी मर्यादित सन्तान की इच्छा करना कोई
अपराध नहीं है, लेकिन इस चक्कर में दशरथ की तरह तीन-तीन लुगाइयां
लाना अवश्य अपराध है। ये बात मैंने इसलिए की क्योंकि हमारे यहां
पुरातन परम्परा रही है, राजा-महाराजाओं की ये रीत रही है कि जैसे ही
सन्तान युवा हो जाए, शासन का दायित्व उसे सौम्प कर, स्वयं वाया
वानप्रस्थ होते हुए सन्यास आश्रम की ओर निकल लो, ताकि प्रजा को सतत
ऊर्जावान राजा की छत्रछाया उपलब्ध रहे और समय के साथ-साथ सत्ता का
तेवर भी बदले। लेकिन अपने यहां शास्त्रों को पूजा तो जाता है, पढ़ा भी जाता है
और उनके कारण दंगा-फ़साद भी हो जाता है, लेकिन शास्त्रों की बात
मानता कोई नहीं।
जब कोई मानता ही नहीं और मानना चाहता भी नहीं
तो मैं क्यों माथा मारूं यार? हटा सावन की घटा, जो होता है हो जाने दे....
चल हवा आने दे......
11 comments:
शीर्षक से हम सहमत नहीं जी,
ब्रह्मचारी ने पुत्र पैदा किया तो इसमें पैदा होने वाले पुत्र की क्या गलती ?
वह मना तो नहीं कर सकता न कि मुझे नहीं पैदा होना!
( हमारी टिप्पणी को विनम्र टिप्पणी माना जाय )
बहोत मजेदार.... लेकिन अगर हर बार हटा सावन की घटा और चल बाजु हवा आने दे कहेंगे... तो क्या कभी सच में हवा आ पायेगी...!!!
www.nayikalam.blogspot.com
क्या दूर की लगायी है बहुत बडिया बधाई
बहुत बढ़िया अलबेला जी, खुब सटिक कहा आपने।
शीर्षक देखकर सीधे इधर चले आये, और मौज भी लिये इधर विवेक सिंह जी टिप्पणी पर गंभीर हो गये है, डिसक्लेमर साथ ही दे दिया है। :)
इसे कहना ब्लॉगर का सतर्क होना। सब आधुनिक नारी का कमाल है !
सत्य वचन |
अब जनता को जागरुक होना चाहिये, ओर इन मदारियो ओर मदारन को सवक सीखना चाहिये, इसी ब्लांग जगत मै बहुत बधाईया आ रही थी, आ गई काग्रेस लायेगी खुशियो के टोकरे, बुडो को हटाओ हमारा युवराज आ रहा है, देश की बाग डोर इस से अच्छी कोई नही समभाल सकता.
वो झोपडी मे सोना, वो तसले, वो भारत खोज यह सब ड्रामे नही तो ओर क्या था??? लाओ फ़िर से इन्हे ही लाओ ओर खुब खुशियां मनाओ,आप ने बहुत सुंदर लिखा
गज़ब ढा दिया अलबेला जी आपने,वैसे मै भी ब्रह्मचारी हूं और मेरा कोई पुत्र भी नही हूं इसलिये मै पापी नही हूं ना।
मदारी और नेता के साथ पटाखा भी जोड़ा जा सकता था एक बार जोर की आवाज़ फिर एकदम शांति !! मनमोहन सिंह की जांच करके आपने जवानी के जो वायरस ज्ञात किये हैं उससे तो यही लगता है की ये वायरस ही फैल कर बूढों को जवान बनाते है और वही उनके मंत्री मंडल में सरिक हो जाते है !!! !
कुछ कहने को छोडा भी है ?
agreed. :)
लिखते रहिये और हवा आने देते रहिये… कभी तो नयी हवा आ ही जायेगी। be positive !
धन्यवाद।
आपके व्यंग्य पढने में अलग ही आनंद आता है
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