मुंबई
21 सितम्बर 2009
शाम 7 बजे के आस पास
प्रभा देवी में मेरे गाने की डबिंग पूरी हो चुकी थी और अब वरली सी फेस
जाना था कविता प्रस्तुति के लिए... समय कम था और पहुँचने की जल्दी थी
लेकिन कोई टैक्सी वाला खाली नहीं मिल रहा था ........सो मैं एक लाल डब्बा
बस में बैठ गया ...क्षमा करें बैठ नहीं गया, बस.......चढ़ गया........और खड़े
खड़े यात्रा का मज़ा लेने लगा........
मेरे ठीक आगे लगभग 18 वर्ष की एक खूबसूरत कन्या खड़ी थी जिसके सुन्दर
सान्निध्य में यात्रा थोड़ी हसीं हो गई थी क्योंकि वो मुझे पहचान गई थी.....और
अच्छी अच्छी बातें कर रही थीं......उसने बताया कि उसने कई साल पहले मुझे
फलां कालेज में सुना था और तभी से वह कवितायें लिखने को प्रेरित हो गई
थी .....करीब 100 कवितायें लिख चुकी है तथा मंच पर आना चाहती है.......
मैंने उसे अपना कार्ड दे दिया और एक तारीख भी लिखवादी अगले महीने की
जिसमे वो मुंबई में ही काव्य प्रस्तुति कर सकती है..........
बस में भीड़ बहुत थी और मैं पूरा प्रयास कर रहा था कि हम दोनों में फ़ासला
बना रहे लेकिन इसके बावजूद वह थोड़ी बिन्दास थी और हर 3-4 सेकेण्ड बाद
मुझसे टकरा ही जाती थी, न सिर्फ़ टकरा जाती थी बल्कि लिपट सी जाती थी....
कंडक्टर आया और मैं टिकट लेने लगा तो उसने ज़िद्दपूर्वक मुझे रोक दिया
और स्वयं लेने लगी.........लेकिन जैसे ही उसने पर्स खोला , पीछे से भीड़ का
ज़ोरदार दबाव बढ़ा और मेरे साथ साथ वह भी लड़ खड़ा गई , स्वयं तो सम्हल
गई लेकिन उसका पर्स नीचे गिर गया और सारा सामान बिखर गया ।
सामान में कुछ रूपये थे, दो मोबाइल थे , सौन्दर्य सामग्री थी और कंडोम के
2 पैकेट थे...........
कंडोम देख कर अन्य यात्री हँस पड़े ....मैं भौचक्का रह गया ...लेकिन उस कन्या
के चेहरे पर कोई भाव नहीं था........उसने चुप चाप सारा सामान उठाया और
पर्स में भर लिया ......भीड़ में से किसी फिकरा कसा - छोकरी चालु है रे.........
तभी एक स्टाप आया और बस रुकी । वह उतर गई........मुझे नहीं उतरना था
लेकिन जाने क्यों मैं भी उतर गया.........और उसके साथ साथ चलने लगा........
मेरा मन प्रोग्राम से उचाट हो गया था इसलिए मैंने आयोजकों को फोन कर
दिया कि एक घंटा देरी से आऊंगा........क्योंकि मैं अब उस लड़की के बारे में
पूर्ण जानकारी के लिए उत्सुक हो गया था.........
"कुछ पियोगी ?" मैंने पूछा तो उसने कहा - हाँ ! बियर ..........
तृप्ति परमिट रूम पास ही था । मैंने व्हिस्की मंगाई लेकिन पी नहीं, क्योंकि
नवरात्रि चल रहे हैं........उसने दो बियर मारी........और इस बीच हुई वार्ता में
मैंने जाना कि वह छात्रा एक कॉल गर्ल बन चुकी है क्योंकि घर में कमाने वाला
कोई नहीं है .......उस पर पढ़ाई का खर्चा भी भारी है .....दोनों मोबाइल कस्टमर्स
के दिए हुए थे.........वह एक बार का तीन हज़ार रुपया और एक रात का दस हज़ार
रुपया लेती है.....उसे कोई शर्म नहीं है इस काम से क्योंकि उसने अपनी इच्छा से
नहीं बल्कि हालत से मजबूर.........हो कर ये रास्ता चुना है..........
मैंने उसे कहा - अगर मैं तुम्हें अपनी कुछ कवितायें दे दूँ.......प्रोग्राम भी दिलवा दूँ....
अच्छा पैसा भी दिलवा दूँ........तो क्या ये रास्ता छोड़ देगी ? उसने मना कर दिया ...
बोली - " नहीं....अब नहीं छोड़ सकती...क्योंकि अब तो मुझे भी मज़ा आता है......
और मैं एन्जॉय करने लगी हूँ............"
मैंने बिल चुकाया, उससे हाथ मिलाया और टैक्सी पकड़ कर रवाना हो गया
प्रोग्राम के लिए ...लेकिन रास्ते भर उसी के बारे में सोचता रहा.........
क्या शिक्षा इतनी महंगी हो गई है कि उसके लिए शरीर बेचना पड़ जाए ?
मेरा मन वितृष्णा से भर गया...........
hindi hasyakavi sammelan in mangalore by MRPL
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शानदार, शानदार, शानदार …………………
शानदार और जानदार रहा मंगलूर रिफ़ाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड द्वारा
राजभाषा विभाग के तत्वाधान में डॉ बी आर पाल द्वारा आ...
10 years ago
13 comments:
albela khatri ji,
koi shouk se is dadaly me shayad hi jata hai,
kahi n kahi majburi hoti hai...
fir bad me vaha itani badanam ho jati hai,
ki chaha kar bhi vapas mood nahi sakati hao..
is visaya shigra meri ek kavita mere blog par post karoonga....
अलबेला जी,
घटना ने बड़े ही आजीब तरीके से मोड़ लिया, पर इसी बहाने ज़िन्दगी ने अपने पन्ने खोल कर रख दिए आप के सामने !!
सच में पढने के बाद काफी दुःख हुआ कि क्या लाभ उस सरकार का जो अपनी कथनी और करनी में अलग अलग हो ??
कहाँ तो यह लोग लड़कियों को आगे बडाने की बात करते है कहाँ आज भी देश में एसी लड़किया है जो पढने के लिए कॉल गर्ल बनी है !!
कोई खरीददार हो तभी कुछ बिकता है...खरीददार को कोई कुछ नहीं कहता...बेचने वाले के सब पीछे पड़े रहते हैं...ये ही है ज़माने का दस्तूर...
नीरज
यह लोकतंत्र सबको उसी रास्ते पर ले जाएगा.
क्या कहा जाये!
बहुत पहले एक फ़िल्म देखी थी, "मदर इडियां" ओर तब से हम ने अपना नियम बना लिया कि चाहे भुखे मर जाये कभी आन नही बेचेगे, ऎसी पढाई का क्या लाभ जो इज्जत बेच कर हासिल कि जाये, ओर एसी जिन्दगी का क्या लाभ जो जिस्म बेच कर जी जाये, कारण कुछ भी हो मुझे नफ़रत है ऎसे लोगो से, जो अपनी ऎश के लिये इसे मजबुरी का नाम देते है...
माफ़ी चाहुंगा अपनी कडुबी टिपण्णी के लिये, लेकिन यह एक सच है
मजबूरी जो कराए...कम है
kuchh majburiya sabkuch karwa deti hain
majburi cheez hi aisi hain
Hame hamdardi hai..par vahi luck jab hath badhakar use nai jindgi dene ko betab hai..tab uske dwara khud apna hath pichhe khich lene par hame afsos hai!!!....kyoki majboori jindgi me ek bar to aa sakti hai..par bar bar nahi;;;;;;
nice
सत्य घटना प्राय: हर बड़े शहरों में ऐसी लडकियां जो पढाई के साथ साथ आर्थिक स्थिति से लड़ाई करती है मिल जाती हैं !!
is albebli duniya mein albela abhi tak sachmuch albela hai.
agar kissi ladke ke pocket se yeh packet niklte to koi kahani nahi banti.......... to phir agar kissi ladkis ke paas se mile to kya baat huie.
jo aapne usme dard ka rang milakar ek kahani bana di. yeh sab kuch nahi............ duniya bahut badi aur is duniya mey bahut aasman hain.
har kissi ki muthi mey aaap ek naya aasman dekhenge. rang sabhi ke paas hain. jo chhaye choose kariye.........
dard... majburi... enjoy... siksha... paisa... rishtey... aur bahut tarah ke....
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